सोमवार, 2 जुलाई 2018

फिलॉसॉफीकल दलील

वो जब मिटटी गूंथते दीखते हैं
तो लगता है किसी मूर्ति को आकार देंगे।
वो ऐसा नहीं करते।
मूर्ति को नहीं बल्कि जिन्दा लोगो को
जिन्दा रखने के लिए 
दुनिया गोल की तरह
गोल गोल रोटियों को आकार देते हैं।
मिट्टी में नमक
नमकहलाल की तरह ही तो है
जो मिलाकर पेट की भूख को थापने की
जद्दोजहद करते हैं वो।
कितना काला काल है
कि लोग रिपोर्ट बनाते हैं।
तस्वीरे खींचते है
बच्चे, जवान ,बूढ़ों को
मिट्टी की रोटी खाते देखती है दुनिया
मगर कोई समाधान नहीं।
मजबूर लोगो के पेट से
मिट्टी हटा कर आटा भरने की
कोई तो हो कवायद !
कि मिट्टी के लोग
मिट्टी में मिल जाने की
फिलॉसॉफीकल दलील
लीलती रहेगी जिंदगियां?
( हैती, जहाँ मिट्टी की रोटी बनाकर खाने पर मजबूर हैं लोग ,ये दुनिया के विकास की सबसे दर्दनाक खबर है-मगर जिजीविषा देखो..उफ़।)

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