सोमवार, 2 जुलाई 2018

स्त्री-पुरुष

अपने जीवन, प्रेम और संसार में
कितनी व्यस्त हो तुम
बावजूद वक्त निकालती हो मेरे लिए!
पता है वो कितना खरा है ?
मेरे लिए ठीक ठीक वैसा
जैसे समुद्र मंथन से निकला अमृत!
ये तो जाना मैंने!
किन्तु क्यों न जान सका कि
मुझे अमृत देकर तुमने
विष का क्या किया ?
निकलता तो वो भी है।
कभी बताती नहीं स्त्री
और
पूछता भी कहाँ है पुरुष।

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शायद तभी पुरुष कभी स्त्री न हो पाया जबकि स्त्री पिता पुत्र सब हो जाती है ...