ओम से नहीं, अब शांति ओबामा से मिलती है। इससे बडा चमत्कार और क्या हो सकता है कि जिसे दुनिया आठ-नौ महीने पहले तक जानती नहीं थी उसे शांति का सबसे बडा दूत बना दिया गया। जिसने अपने लिये, अपने कुनबे के लिये लडाई लड कर सत्ता हासिल की उसे दुनिया का महान शांति वाहक मान लिया गया। सच तो यह है कि अब मुझे काला जादू पर विश्वास होने लगा है। गोटियां फिट करने वाले फनकार की फतह कैसे होती है, जान गया हूं। यह भी समझ में आया कि दुनिया में नोबेल पुरस्कार आखिर नोबेल क्यों है? माफ करना 'बापू' आप गलत दिशा में थे, आपकी शांति, अहिंसा, सदाचार सबकुछ दुनिया के लिये, जनमानस के लिये था, अगर आप अपने लिये सोचते तो शायद आज आप भी ओबामा की तरह शांति दूत होते, नोबेल विजेता होते। वैसे आज के नेता बडे खुश हैं। वे भी सपने देख सकते हैं किसी नोबेल के। अजी उनका पूरा-पूरा हक़ है। इस नये शांति के नोबेल विजेता के गुण देखिये- ओबामा ने अमेरिका इतिहास बदला, एक अश्वेत या कहें अर्ध-श्वेत व्यक्ति ने अमेरिका जैसी महाशक्ति को अपने कब्जे में लेकर सत्ता हासिल की। केन्याई मूल के अश्वेत पिता और अम्रेरिकी श्वेत माता की संतान होना ओबामा के लिये फायदेमन्द साबित हुआ। नस्लवादी पूर्वाग्रहों से ग्रस्त अमेरिका की राजनीति के बीच संघर्ष करते हुए देश की गद्दी तक पहुंचना आसान थोडे होता है। हमारे गांधीजी जैसे थोडी कि पूरी जिन्दगी जनसेवा में लगा दी, देश के दिलो दिमाग में बस जाने तथा सर्वोपरि होने के बावज़ूद किसी प्रकार के सत्ता सुख से अलग रहे। जीवनपर्यंत दूसरों के सुखों के लिये, शांति के लिये तन-मन सब कुछ अर्पित कर दिया। छी, यह भी कोई काम हुआ भला। इसलिये गान्धीजी को हमेशा नज़रन्दाज रखा गया और ओबामा को आज नोबेल दिया गया। किसकी पूजा करने से ज्यादा लाभ होता है? यह नोबेल आयोजक बखूबी जानते हैं। इसीलिये तो उन्होने लगभग ज़ोर्ज़ बुश की राह चलने वाले 48 साल के ओबामा को चुना। आप देखिये, ओबामा सत्ता में आये उधर उत्तर कोरिया ने परमाणु परिक्षण किया। और ईरान भी इसके काफी करीब है। इराक से जो अमेरिकी सेना लौट रही है अगर उसे मापदंड माना गया हो तो जय हो नोबेल वालों, क्योंकि वो पूर्वनियोजित कार्यक्रम है। ओबामा के सामने चुनौती के तौर पर अफगानिस्तान का मामला लिया जा सकता है। किंतु वहां के हालात और अधिक दयनीय हो रहे हैं। अब तक ना तालिबान का सफाया हो सका ना कोई शांति का रत्तीभर दर्शन। और तो और बुश की पाकिस्तान को लेकर जितनी गलत नीतियां थीं उससे भी दो कदम आगे हैं अपने 2009 शांति के नोबेल विजेता बराक ओबामा। पाकिस्तान को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता राशि बढाकर तीन गुनी ज्यादा कर दी गई है। जिसे पाकिस्तान ज्यादा भारत के खिलाफ उपयोग में लाता है। ओबामा ने यह सोचने में अपनी शांति भंग नहीं की कि पाकिस्तान इस राशि का इस्तमाल पडौसी देशों में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने में नहीं करेगा। हां शांति के इस नये दूत ओबामा ने इजराईल-फिलिस्तीन वार्ता में जरूर एक नया युग शुरु करने की पहल की। मगर अफसोस यहां भी है कि अमेरिका की जो ईजराइल लाबी है वो काफी शक्तिशाली है और ओबामा उसके आगे बेबस हैं। लिहाज़ा इस वार्ता में अब तक कुछ भी खास नहीं हुआ है। उधर सिर-ऐढी का जोर लगा देने के बावज़ूद ओबामा अपने देश के लिये ओलम्पिक मेजबानी नहीं ला सके, देश को मन्दी की मार से नहीं बचा सके। चीन के आगे दबना और दलाई लामा से ना मिलना, क्या संकेत देता है यह सोचा जा सकता है? अब नोबेल आयोजकों को इतना धैर्य कहां कि फिलहाल थोडा रुक कर ओबामा को परख लेते। अभी तो उन्होने अपना जीवन शुरू ही किया है और उन्हें यह कह कर अपने मापदंड की भी ऐसी कि तैसी कर दी कि कम समय के भीतर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को मज़बूती देने के उनके 'असाधारण' प्रयासों के लिये यह नोबेले दिया गया। वाकई असाधारण ही तो है। नोबेल, नोबेल ही तो है, कोई शक़ ?????????
16 टिप्पणियां:
awaak aur hatprabh hun.... abhi tak is khbar par bharosa nahi ho rahaa ..
arsh
कल जब पता चला था तो हम भी चौंक़ गए थे। समझ नही आता है ऐसा कौन सा काम कर दिया ओबामा जी ने। सोचता हूँ जब अयोग्य और तीकडम बाज लोग पुरस्कार लेते होगे तब क्या उनके अंदर का आदमी कचोटता नही होगा? खैर छोडिए।
yes maine bhi subh news me padha...sirf shanti ki baat karne bhar se shanti purskar???/
खुद से बनाओ खुदही खा जाओ के तर्ज पर पुरस्कार वितरं होता है आज कल
सच लिखा है amitaabh जी .......... अपने में kahaavat है ना .......... andha bante revdi mud mud अपने दे .......... nobel puruskaar के साथ इस से बड़ा मज़ाक और क्या होगा .......
और भी क्या क्या स्वीकार कराएगी दुनिया के पुरुष्कार देने वालों की समझदारी.
नए आदर्श, मापदंड गढे जा रहे हैं, हमें तो सिर्फ समाचार पत्रों में जुन्हे ओअध कर स्वीकारना भर है, न भी स्वीकार करें, तो क्या फर्क पड़ता है, "जी के" के लिए तो याद करना ही पड़ेगा पर......
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
हम तो समझते थे कि पुरस्कारों कि बन्दर बाँट सिर्फ अपने यहा ही होती है पर इसकी जडें तो अन्तराष्ट्रीय है |वैस भी पुरस्कार ,प्रतियोगिताये ,अवार्ड सब इर्ष्या द्वेष को ही जन्म देते है इसलिए इन पर से विश्वास उठ गया है |
आपने गांधीजी के परिप्रेक्ष्य में बहुत अच्छे विचार रखे है |नोबल कि नोबलता को दर्शाता सटीक आलेख |ऐसे में सारे पुरस्कार अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे है |
aap ne bilkul sahi likha hai..aap ka sochna sahi hai..
yahan bhi Main English newspaper mein front page par yahi Heading thi--nobel prize for Obama-for what?
शक करने नहीं
कश लेने को
जी चाहता है
शांति से
हो सकता है
कश लेने का
शांति पुरस्कार
मिल जाए
हमें भी।
पुरस्कार समिति के दिग्गज लोगों की शान्ति की परिभाषा में यासिर अराफात और ओबामा तो फिट बैठते हैं,लेकिन बापू नहीं.
शांति प्रयासों को सबसे ज्यादा
योगदान देने महापुरुष इस देश में है . ओबामा
को ये पुरस्कार देना उचित नहीं
है . उनका शांति प्रयासों के लिए
कोई योगदान नहीं है
Kal Hindustan me ek cartoon dekha.
Bush :
" sara shrey mujhe jata hai.Agar maine itni ashanti na phailayi hoti to shanti ka nobel obama ko kaise milta"
माफ करना 'बापू' आप गलत दिशा में थे, आपकी शांति, अहिंसा, सदाचार सबकुछ दुनिया के लिये, जनमानस के लिये था, अगर आप अपने लिये सोचते तो शायद आज आप भी ओबामा की तरह शांति दूत होते, नोबेल विजेता होते।
amitabh ji...
kal hi to padha tha kahin pe ki gandhi ji ko nobel nahi milne ke kaaran aur kaunse kaunse varsh main unke liye ye prize propose hua tha....
...Sab propoganda hai bahi sa'ab.
Slumdog milliniare wala bhi...
...aapki post main kehna to bahut kuch chah raha hoon...
...par pata nahi kyun keh nahi paa raha ki kyun mujhe is baar (ya har bar)ka nobel mujhe prabhavit nahi karta.
Maafi chahoonga, mujhe 'mother teresa' ek stri ke roop main bahut acchi lagti hain aur unke niriho ke liye kiye gaye kary bhi par unko nobel milne main bhi ek shodh kary kiya ja sakta hai. Aapki kya rai hai?
भई हम तो नबल देने वालों को अन्धा नही कह सकते वे आँख्वाले है बल्कि ज़रूरत से ज़्यादा देखते है । अब इस नोबल की हालत भी विश्वसुन्दरी के खिताब की तरह होती जा रही है ।
लम्बा और विचारोत्तेजक लिख डाला आपने कु/च बार और पढ़्ना पडेगा...मगर इतना मैं कहूंगा कि ऐसा कोई पुरुस्कार ओबामा की सम्मा्नवृद्द्धि कर सकता होगा..मगर गांधी जैसे व्यक्तित्व के सामने ऐसा कोई सम्मान बहुत ही छुद्र है..उनका सबसे बड़ा सम्मान यही है के एक समूची पीढ़ी ने उनसे प्रेरणा ली और दुनिया के हर कोने मे परिवर्तन की लहर चलाई..सच और अहिंसा के हथियारों से.
आपने बहुत ही बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है ! मुझे भी बड़ा आश्चर्य लगा जब मैंने सुना की ओबामा को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है!
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