इधर हम लिखने के लिए विषय ढूढते रहते है और आप पता नही कहाँ से विषय ढूढ लेते है। खैर कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया। कभी उस समय पर लिख डालिए जब लोगो की आँखो से ही बात हो जाती थी:)
VAAH AMITAABH JI .... KYA BAAT KAHI HAI ... AAPKI NAZRON SE AANKHON KO DEKHNA AUR BHI SUKHAD HO GAYA ... KITNA KUCH BINA BULWAAYE HI KAHALWA DIYA IN ANKHON SE .... AAPKI RACHNAAYEN HAMESHA DIL MEIN UTARJAATI HAIN ...
Wah 'prem ras' se shuru hokar 'Veer Ras'pe samapt !!
itne chote se comment se samajh gaye honge ki kavita ne kitne gehre tak asar kiya hai. Aur haan ye bhi bataiyega ki kya main ise samjhne main safal raha?
"किंतु उपमाहीन है नीचे झुकी-सी आंख।" Behtar likhna to door ki baat aapki baat samajh hi jaaon kaafi hai amitaabh ji. Aapka SMS mila... ...aapka mail bhi !! Thanks a lot . Man hua call kar loon. Par chunav ka samay chal raha hai aamchi maharashtra main to socha ki chalo chunav ho jaane do.
क्या बात है सर जी..आँख पर आखोँ-२ से बात करते हुए कहाँ ले गये बात को आप.. आपकी कविता पर हम तो यही कहेंगे.. कही पर निगाहें कही पर निशाना. ;-) और चित्र देख कर मीर साहब(?) का बड़ा खूबसूरत से शेर आखों मे कौंध गया खुलना कम-कम कली ने सीखा है तेरी आखों की नीम-बाजी से
नीचे झुकी आँख और नीचे झुकी पलकें यह दो अलग अलग बिम्ब हैं दोनो के अर्थ भी अलग अलग होते है । मेरा कहने का तात्पर्य है कि चित्र नीचे झुकी पलकों का है और कविता में नीचे झुकी आँख कहा जा रहा है ।
जब दुनिया गहरी नींद सोती है, तब किताबें मेरा साथ निभाती हैं...
गाती है, गुनगुनाती है, किताबें जीना सिखाती हैं..
सवॉधिकार सुरक्षित है।
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मिलती है जब, कुछ मौज़ औ' कुछ मस्ती
कृपा उस ईश की, जो हम पर् है बरसती
आपके आशीर्वाद
" जिनके चरणों मे झुका ये शीश है, पिता ही मेरे गुरु, मेरे ईश हैं,है ये सौभाग्य मेरा कि मेरे,कदम-कदम उनके आशीष हैं.. " ( सालों पुरानी ये तस्वीर है, इस तरह की यह एकमात्र तस्वीर)
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याद रहेंगे हम भी जवां थे कभी।। चलो, इक तस्वीर जड़ कर लगा दें अभी।।
लम्बा जीवन मुंबई के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में पत्रकारिता को दे डाला। दूरदर्शन के लिये ढेर सारी डाक्यूमेंट्री लेखन के अलावा आकाशवाणी मुम्बई के ;खेल पत्रिका; कार्यक्रम का लगातार 3 साल तक संचालन , दूरदर्शन के लिये ही दो-तीन धारावाहिक लेखन जिनमे करगिल युद्ध के बाद बनाया गया 'वीरो तुम्हे सलाम' सबसे बेहतरीन । फिलवक्त पठन और लेखन। व्यस्त रहने को सबसे बडा सुख मानता हूं। रह कर देखें..मज़ा आयेगा।
17 टिप्पणियां:
जिस आंख पर आंख है
वही नजर नहीं आ रही
आंख पर पलक भारी है
अमिताभ की आभारी है
'अनगिनत से
भाव भरती
बात करती आंख!'
सुन्दर सरल चंद शब्दों में इतनी सारी तारीफ़ !
बहुत खूब!
baat karti aankhe..actual me ankhe dil ki zubaan hoti hai....bahut khoobsurat,,,
वाह जी वाह क्या बात है
आज अलग ही अंदाज है।
इधर हम लिखने के लिए विषय ढूढते रहते है और आप पता नही कहाँ से विषय ढूढ लेते है। खैर कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया। कभी उस समय पर लिख डालिए जब लोगो की आँखो से ही बात हो जाती थी:)
भाई वाह आपने तो आँख की गजब वरन किया है
आँखें भी क़ुदरत का करिश्मा हैं ,
मुस्कुराना चाहूँ, रोती हैं!
दिल रोता है, ये हँस देती हैं,
तमाशाई बनाती हैं,
खुदका तमाशा खुद देखती हैं...
आपने जिन आँखों का वर्णन किया वो कितनी सुन्दर हैं!
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है ?
उपमाहीन है
नीचे झुकी-सी आंख।
ati sundar shabd hi nhi hai kuch khne ke liye .
shubhkamnaye
नमस्ते !
किंतु
उपमाहीन है
नीचे झुकी-सी आंख।
बहुत खूब!
अनगिनत से
भाव भरती
बात करती आंख।
किंतु
उपमाहीन है
नीचे झुकी-सी आंख।
-सुन्दर.
VAAH AMITAABH JI .... KYA BAAT KAHI HAI ... AAPKI NAZRON SE AANKHON KO DEKHNA AUR BHI SUKHAD HO GAYA ... KITNA KUCH BINA BULWAAYE HI KAHALWA DIYA IN ANKHON SE .... AAPKI RACHNAAYEN HAMESHA DIL MEIN UTARJAATI HAIN ...
वाह वाह क्या बात है! दिल को छू लेने वाली बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने!
Wah 'prem ras' se shuru hokar 'Veer Ras'pe samapt !!
itne chote se comment se samajh gaye honge ki kavita ne kitne gehre tak asar kiya hai.
Aur haan ye bhi bataiyega ki kya main ise samjhne main safal raha?
"किंतु
उपमाहीन है
नीचे झुकी-सी आंख।"
Behtar likhna to door ki baat aapki baat samajh hi jaaon kaafi hai amitaabh ji.
Aapka SMS mila...
...aapka mail bhi !!
Thanks a lot .
Man hua call kar loon.
Par chunav ka samay chal raha hai aamchi maharashtra main to socha ki chalo chunav ho jaane do.
क्या बात है सर जी..आँख पर आखोँ-२ से बात करते हुए कहाँ ले गये बात को आप..
आपकी कविता पर हम तो यही कहेंगे..
कही पर निगाहें कही पर निशाना. ;-)
और चित्र देख कर मीर साहब(?) का बड़ा खूबसूरत से शेर आखों मे कौंध गया
खुलना कम-कम कली ने सीखा है
तेरी आखों की नीम-बाजी से
वाह!!!
खुली आंख वाली कविता के लिये बन्द आंख वाली स्त्री का चित्र , क्या द्वन्द्व है ?
नीचे झुकी आँख और नीचे झुकी पलकें यह दो अलग अलग बिम्ब हैं दोनो के अर्थ भी अलग अलग होते है । मेरा कहने का तात्पर्य है कि चित्र नीचे झुकी पलकों का है और कविता में नीचे झुकी आँख कहा जा रहा है ।
मात करती आंख।
अनगिनत से
भाव भरती
बात करती आंख।
बहुत खूब. क्या खूब कहा है!!!!!!!
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
Sundar rachna...
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