बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

365 गेंदो में 93 रन

365 गेंदो में 93 रन, टेस्ट मैचों के लिहाज़ से ठीक-ठाक कहे जा सकते हैं। क्रीज़ पर ड्टे रहना और शतक के करीब रहना भी कम रोमांचक नहीं होता है। टेस्ट मैच वैसे भी क्रिकेट का असली रूप होता है, इसमे क्रिकेट की कलात्मकता, तकनीक निखर कर सामने आती है और ऐसा माना जाता है कि टेस्ट मैच ही क्रिकेट के असली खिलाडी की पहचान है। वैसे आजकल वन डे, ट्वेंटी-20 मैचों की भरमार है, फटाफट क्रिकेट का बाज़ार भी गरम रहता है, किंतु मुझे लगता है जिसे क्रिकेट पसन्द है, जो क्रिकेट का परम आनन्द लेना चाहता है वो तो टेस्ट मैचों में ही दिलचस्पी रखेगा और उसे ज्यादा देखेगा। लिहाज़ा 365 गेन्दों में 93 रन के करीब बना लेना और कुछ टेस्ट पसंद दर्शकों का निरंतर बने रहना, हौसलाअफज़ाई के लिये काफी है। क्रीज़ पर डटे रहने का यह रोमांच खिलाडी के लिये भी उतना ही दिलचस्प होता है जितना कि कोई प्यासा कुआं खोदते हुए पानी के करीब पहुंच जाये। जी हां, मैं भी टेस्ट मैच खेल रहा हूं, क्रीज़ पर नाबाद डटा हूं। 'समय' की टीम के गेन्दबाजों ने हालांकि काफी कोशिश की आउट करने की किंतु 'हिन्दी' की टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए मैं भी कम खिलाड नहीं कि जल्दी आउट हो जाऊं। सो उसके बाउंसर, यार्कर, गुडलैंथ, स्पिन सब कुछ झेलते हुए कभी-कभी चौका भी लगाया। सिक्सर लगे हों और तालियां बज़ी हों, ऐसे भी दो-एक मौके मैने देखे। जो भी हो पर पिच पर टिका हूं। अपने चन्द दर्शकों (पाठकों) के लिये पूरी पूरी कोशिश की है, कर रहा हूं कि उन्हे निराश ना कर दूं। हां, सचिन तेन्दुलकर नहीं हूं किंतु अपनी टीम का सिर कभी ना झुके यह विश्वास धर खेल रहा हूं। अब चूंकि टेस्ट खिलाडी हूं तो मुझे ज्यादा दर्शकों की कतई चाह भी नहीं, जो हैं वो खासे, कोरे, विशुद्ध टेस्ट पसन्द दर्शक हैं, इसका मुझे गर्व है। बस वे ही मेरी ताक़त हैं। उनसे ही सीखता हूं। वे ही प्रेरणास्त्रोत हैं।
सच पूछिये तो ये 365 दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। इस बीच कुछ ऐसे बेहतरीन मित्र बन गये जिनकी तलाश मेरे स्वप्न में थीं। ब्लोग मेरे रोज़मर्या जीवन का हिस्सा बन गया। जब भी उदास हुआ और ब्लोग सफर किया तो उदासी भाग गई। थकान से टूटते शरीर की 'आरोमा थैरेपी' इसी ब्लोग ने की। विचारों के तूफान को यहीं शांत किया। अपनी अल्प मतिनुसार शब्दों के साथ यहीं खेला। हां, मुझे ब्लोग पर देख कइयों ने इसे बकवास कहा। क्यों टाइम पास करता है? इससे तुझे क्या मिल जायेगा? समय क्यों खर्च करता है? अरे दुनिया कितनी आगे बढ गई है, लोग पैसा कमाने की सोचते हैं, तू इसमे अपना समय बिगाड रहा है। इससे क्या तुझे कोई पुरस्कार मिल जायेगा या कोई ज्ञानपीठ सम्मान दे देगा? आखिर होगा क्या इससे? आदि आदि...। मैं चुप रहा क्योंकि बचपन में सुना था कि अच्छे कार्यों के बीच कई सारे व्यवधान आते हैं"। पिताजी कहा करते हैं कि "अच्छा साहित्य पढना और लिखना समय का कतई दुरुपयोग नहीं होता।" वे कहते हैं कि- "आप कोई कर्म कर लेने के बाद कैसा अनुभव करते है? थकान का या प्रसन्नता का? आपको प्रसन्नता हो तो समझो आपने अच्छा कर्म किया। ग्लानि हो तो समझिये आपका वो काम अच्छा नहीं।" वैसे भी हमारी मनुस्म्रुति में यह कहा गया है कि-
"यत्कर्म कुर्वतोस्य ंस्यात्पारतोषा चांतरात्मन।
तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत॥" ( मनुस्म्रुति 4.161)

"यानी कर्म के साथ आत्मतुष्टि अवश्य होनी चाहिये। कर्म करते समय यदि अंतरात्मा को संतुष्टी का अनुभव हो तो उसे प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये। जिस कर्म में आत्मग्लानि या पश्चाताप हो वो नहीं करना चाहिये।" मुझे तो पढने-लिखने में आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता है इसलिये मैं यह करता हूं। ब्लोग तो आज है, कल तक मैं अपनी डायरी मेंटेन किया करता था। अखबार की नौकरी, और वह भी बगैर किसी ज्यादा उपरी दबाव के, तो लिखने में मज़ा आता रहा। साहित्यिक पारिवारिक माहौल व पिताजी की अपनी लाइब्रेरी में किताबें भी खूब मिली पढते रहने के लिये, तो उसमे मगन रहा, फिर नई किताबें खरीदने का शौक रहा, अब जब ब्लोग है तो क्यों न अपनी फितरत को इसके माध्यम से दिशा देता रहूं। लिहाज़ा इस ब्लोग सुख की नदिया में गोता लगाते हुए और मोतियां बिनते हुए एक वर्ष हो गया। मैं उन सब का अभिनन्दन करता हूं जिन्होने मुझे सराहा। मेरे साथ बने रहे। अब यह स्नेह बना रहे, या यह कहूं कि स्नेह बढ्ता रहे। यही आकांक्षा है।

10 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

अमिताभ भाई इस ड्रिंक इंटरवल में आपका यह चिंतन अच्छा लगा । यही है अभिव्यक्ति का आनन्द जिसे हम इस माध्यम से प्राप्त कर रहे हैं । यह खेल की तरह ही है लेकिन यहाँ खेल भावना भी है । जीत- हार जैसी भी कोई बात नहीं क्योंकि यहाँ मन के जीतै जीत है मन के हारे हार का सिद्धांत चलता है । यहाँ मित्रों के रूप में अतिरिक्त सौगात है जो आप्के लिये जीवन भर की पूंजी है । यह सिलसिला निरंतर चलता रहे और साथ ही साथ यह आत्ममंथन भी , ब्लॉग की इस वर्षगाँठ पर यही दुआ । -शरद कोकास ,दुर्ग

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अमिताभ जी ........... बहुत बहुत बधाई एक वर्ष पूरा होने पर ............ आपका आत्मचिंतन बहुत कुछ कहता है ........ जरूरी नहीं है की हर कोई सहवाग या सचिन हो .......... कभी कभी युवराज भी मैच जित्वा देता है .......... आपने लाजवाब पोस्ट लिखी हैं .... कमाल की कवितायें लिखी हैं .......... जो हमेशा ब्लॉग के साथ साथ दिल में भी रहती हैं ...........

"अर्श" ने कहा…

badhaayee shatak veer... bahut badhiya paari kheli hai aapne..


arsh

शोभना चौरे ने कहा…

अमिताभजी
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था मुझे भीड़ नही चाहिए मुझे कुछ ऐसे कर्मठ लोग ( युवा स्त्री पुरुष )चाहिए जो मेरे विचारो के साथ चल स्के और जब तक अपने लक्ष की प्राप्ति न हो चलते रहे |और जब वे विदेश मे थे शिकागो के भाषण के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ी तो बहुत से उनके ही अपने लोगो ने उन्हे क्षति पहुचने की नाकाम कोशिश की पर वे भी उनकी परवाह न करते हुए अपने कार्य मे लगे रहे |
ऐसे ही मई समझती हू लेखन .ब्लॉग लेखन है जो की आप अपनी तन्मयता से लिख रहे है और जो पाना चाहते है पा रहे है आत्मसंतुष्टि ,और मित्रो का स्नेह जो आपकी पूंजी है |और स्ंभवत् हम सभी यही चाहते है|इतनी शीघ्रता से विचारो का आदान प्रदान उर्जा से भर देता है |आप तो लंबी पारी खेलकर अपने को निखारिए |ब्लॉग की पहली वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाए |
क्रिकेट को माध्यम बनाकर बहुत बढ़िया पोस्ट लिखी है |
आभार

सुशील छौक्कर ने कहा…

सबसे पहले ब्लोग की सालगिरह पर आपको ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं। पोस्ट का टाईटल देखकर चकित सा हुआ वाह आज तो कुछ अलग लिख मारा अमिताभ जी ने फिर से। इसे ही कहते असली रसिक क्रिकेट का। नही तो आजकल फटाफट क्रिकेट के मुरीद होते जा रहे है लोग। वैसे आपकी कलात्मक बल्लेबाजी के तो हम मुरीद हो गए थे पहले ही। पता लगा नही,कि अमिताभ जी आ गए बल्लेबाजी करने तो बस सब काम छोड दोडे चले आते है। और जब तक पूरी बल्लेबाजी देख नही लेते तो चैन नही आता है। सच आपके ब्लोग पर आकर कुछ सुकून सा मिलता है। अगर ये ब्लोग की दुनिया ना होती तो शायद ही इतने अच्छे इंसान से मिल पाता। इस ब्लोग की दुनिया ने बहुत कुछ दिया है। ब्लोग पर लोगो की राय पढकर तो एक गाना याद आ रहा है कि" कुछ तो लोग कहेगे लोगो का काम है कहना, छोडो इनकी बातें......" बस यूँ ही इस दुनिया में जमे रहिए और हम आपकी कलात्मकता को देखने आते रहेगे। और हाँ बस जल्दी से एक ठंडा सफेद वाला रसगुल्ला भेज दीजिए:)

गौतम राजऋषि ने कहा…

ब्लौगाभिनंदन अमिताभ जी और सालगिरह की ये अनूठी घोषणा दिल को छू गयी। हम तो 365 में बड़ी मुश्किल से अर्ध-शक्तक ही जमा पाये थे, आप तो शतक के करीब हैं। बस नर्वस-नाइन्टिज का शिकार नहीं होना है और पारी अभी तीन सौ- चार सौ....हजार को भी क्रास करे!!!

बधाई और ढ़ेर सारी शुभकामनयें!

Alpana Verma ने कहा…

ब्लॉग जगत में ३६५ दिन और ९३ पोस्ट लिखना भी बहुत बड़ी उपलब्धि ही है...बधाई हो.
मुझे आप के पिताजी की यह बात पसंद आई-
आप कोई कर्म कर लेने के बाद कैसा अनुभव करते है? थकान का या प्रसन्नता का? आपको प्रसन्नता हो तो समझो आपने अच्छा कर्म किया। ग्लानि हो तो समझिये आपका वो काम अच्छा नहीं।-
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निरंतरता ऐसे ही बनाये रखीये..

आप ने ही कहा है..की ब्लॉग लेखन भी एक तरह की 'अरोमा थेरपी ' है...बहुत सही कहा है.
abhaar. और bhavishy के लिए शुभकामनायें..

dr.rajesh varma ने कहा…

amitabhji,
kisi vishesh din ko vishesh tarike se pesh karna..yah bhi umda lekhak ki khasiyat hoti he. test match hi to asli cricket hota he, jese achha sahity hi asli sahity hota he. kaam me santushti prapt ho, bas vahi nek kary hota he.purskaar vagerah kya chij hoti he, aapki lekhani nirantar bahti rahe, kamnaye he.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

बहुत सुंदर भावों की सहज और सरल अभिव्‍यक्ति। मुझे तो लगता है यह एक रन सभी पोस्‍टों और टिप्‍पणियों पर भारी है। इसलिए कलम इन विचारों की आभारी है। यही तो कलम की ताकत है जिसको मन करता नमन है और यहीं रमण करने को चाहता बार बार मेरा मन है। यह तो विचार वन है। वन जंगल वाला नहीं, ऐवन वाला वन है। वन जो विजय का प्रतीक भी है। ब्‍लॉग पर विजय। विजय जो अमिताभ है।
मोतियों की यह माला सबको खुशहाल बना रही है। मन मन को हर्षा रही है।

निर्मला कपिला ने कहा…

ैअमिताभ जी आपको ब्लाग की सालगिरह पर बहुत बहुत बधाइ मुझे तो कई बार लगता है कि शायद हम अपने बच्चों से भी इतना प्यार नहीं करते जितना अपने ब्लाग से। कितने प्यारे रिश्तों का ताना बाना और ग्यान का खजाना हi ैइस मे । हम जैसे सेवानिवृ्त लोगों के लिये तो जैसे वरदान है। आपका ये सिलसिला यूँ ही चलता रहे शुभकामनायें।