शनिवार, 16 मई 2020

प्रकृति

माना प्रकृति की सबसे विलग और विलक्षण कृति है मानव
माना बचाओ बचाओ की
पुकार विधाता सुनता है उसकी।
माना सबकुछ है मानव कि जगत का वह श्रीमंत ठहरा
किन्तु मानिए ये हुजूर कि
प्रकृति की ही रचना है सम्पूर्ण प्राणी जगत
विधाता को सुनना है उनकी भी पुकार जो मूक हैं
जो जंगल है, जो झरने है, जो पर्वत हैं जो नदी , नहरें हैं..
मनुष्य ने जिसे अपने कब्जे में ले रखा
जिसे पहुंचाई नित निरन्तर चोट है
रेती गर्दन, मरोड़ी देह
उखाड़े पेड़, सुखाई नदियां
उजाड़े जंगल, खोदे पहाड़....
क्या विधाता के ये पुत्र नहीं?
क्या इनकी रक्षा प्रकृति के जिम्मे नहीं..?
स्मरण रखे मनुष्य कि जब जब वो हत्यारा बनेगा
तब तब प्रकृति अपनी मानव कृति की सुंदरता पर मोहित नहीं हो सकेगी
कुपित होकर दंड देगी
इसी तरह कि आज दुबके पड़े सब घर में
बाहर खिलखिला रही प्रकृति सारी...
【टुकड़ा टुकड़ा डायरी/30 मार्च 2020】

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