शनिवार, 16 मई 2020

नमक लगाता है

प्रेम है क्या?
नदी प्रेम करती है।
यहाँ वहां पर्वतों, चट्टानों से टकराती है
घिसती है, गिरती है
रगड़ खाती है।
छिलता है बदन
मीलों का सफर तै करती है
बिना थके, उफ्फ!
ढेर सारे जख्म के बाद भी
उस सागर में घुलती है
जो नमक लगाता है।

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