1,
उसने किसी के
पेट पर लात मारी।
वाह क्या बात है,
वो एक ही तीर से
कितने
शिकार कर गया।
2,
ऊंचे और ऊंचे
चोटी पर जा पहुंचे।
अफसोस कि
देखना अब नीचे ही है।
3,
हम घास,
आप दरख्त
आपका इतराना
लाज़मी है।
पर बचके,
कहते हैं
आन्धियों में टूटते
दरख्त ही हैं।
4,
तुम्हारी प्रतिष्ठा
तुम्हारा अहम
तुम्हें मोहक
बना रहा है।
किंतु 'प्लेटो' कहता है
कि
छलने वाली प्रत्येक
वस्तु को मोहक
कहा जा सकता है।
सपना, काँच या ज़िन्दगी ...
4 घंटे पहले
27 टिप्पणियां:
हर क्षणिका पढने के बाद मेरे लिए अमूल्य हो जाती है
बहुत भावपूर्ण क्षणिकाएं ।
अति सुन्दर ।
sundar atisundar badhai
अति सुन्दर क्षणिकाएँ|
ऊंचे और ऊंचे
चोटी पर जा पहुंचे।
अफसोस कि
देखना अब नीचे ही है।
वाह...वाह
कितनी खूबसूरती से ये सच कह गए आप...
हर क्षणिका...उम्दा....शानदार.
पर बचके,
कहते हैं
आन्धियों में टूटते
दरख्त ही हैं।
सभी क्षणिकाएं सीख देती हुई ...
बहुत कुछ सीखना है आपसे...आपकी क्षणिकाओं की तरह...
आप ऐसी क्षणिकाएं लगाते जाइये ..शायद कुछ सीख पायें. :)
आपकी हर क्षणिका खरा सोना है.इसकी चमक यूँ ही बनाए रखिये
आभार
अच्छी क्षणिकायें है अमिताभ ।
हम घास,
आप दरख्त
आपका इतराना
लाज़मी है।
पर बचके,
कहते हैं
आन्धियों में टूटते
दरख्त ही हैं।
सही कहा है ...!
आँधियों में टूटते दरख्त ही हैं...बहुत खूब!
तीखे व्यंग्य का पुट लिए सभी क्षणिकाएँ गागर में सागर हैं .
amitabh ji..mujhe क्षणिकाएं hamesha hi aakarshit karti hai..mujhe to rochak lagi..i wud like to read more n more :)
सारी क्षणिकायें अमूल्य हैं।
ऊंचे और ऊंचे
चोटी पर जा पहुंचे।
अफसोस कि
देखना अब नीचे ही है ..
बहुत खूब अमिताभ जी ... क्षणिकाएँ छोटी सी बात को गहराई तक कहने की क्षमता रखती हैं .... और सच कहूँ तो आपने भी बहुत गहरी ... सार्थक और लाजवाब पक्ष रखा है इन रचनाओं में ....
ये मात्र क्षणिकायें नहीं, कटु सच्चाई भी है।
बहुत दिनों बाद" सार्थक "क्षणिकाए पढने को मिली |
VAH VAH GURU CHAAR KADWI GOLIYO KA KYA DOSE DIYA HAI BIMARU LOGO KE LIYE..!
सुंदर, सटीक, और धारदार। बधाई।
Bahot badhiya sir.....Shandaar bhavpoorn tukbandi hai
बहुत लम्बी गै़रहाज़िरी के बाद हाजिर हूं ।एक तीर से दो शिकार लात एक घटना दो ।यह भी अच्छी लगी कि तुम्हारी प्रतिष्ठा तुम्हारा अहम तुम्हे मोहक बना रहा है ’’एसा तुम समझते हो "
wah.bahot achche.
क्षनिकाए तो सारी ही गीली की हुई चप्पल के जैसी हैं...
लेकिन दो नंबर और चार नंबर....कई बार पढ़ चुके हैं...
कितना बड़ा सच कितनी आसानी से कह दिया आपने...
अफ़सोस...कि देखना नीचे ही है...
देखन में छोटी लगे, घाव करत गंम्भीर.
प्रभावशाली क्षणिकाएं
बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
क्षणिकाओं को इतनी कुशलता के साथ आप इस्तेमाल करते हैं..गहरी बातें कहने के लिये..कि मेरे जैसे अल्पबुद्धि के लिये कुछ आगे कह पाना संभव ही नही दिखता...सारी की सारी ही एक से एक हैं..दुनिया के बारे मे एक समझ देती और चेतावनी भी..सारी ही यह समझाती हैं कि कि किसी एक का अधिक शक्तिशाली होना कितना घातक हो सकता है...खुद उसके लिये भी..जितने ऊँचे चढ़ते जाँय इन्सिक्योरिटी इतनी ही गहरी होती जाती है..यही ऊँचा हो जाना आँधियों से डर पैदा करता है..तो एक छलावा भी बनता है..खुद के लिये भी..एक इन्ट्रैपमेंट..
पहली वाली तो रिसेशन की याद दिलाती है..:-)
waao ... good one
ऊंचे और ऊंचे
चोटी पर जा पहुंचे।
अफसोस कि
देखना अब नीचे ही है।
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जितना ही हम ऊपर जाते हैं, अकेले होते जाते हैं।
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चारो क्षणिकाएँ अति सुन्दर ! बहुत ही विचारपूर्ण और मर्मस्पर्शी !
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