किसी को अपनी
फिल्म चलानी है,
पार्टियों को राजनीति करनी है
चैनलों को मसाला कूटना है
और आपको?
आप तो ज़मूरे हैं।
इशारों पर नाचने वाले ज़मूरे,
इनके धंधों में
बेमोल बिकने वाले ज़मूरे।
क्या ज़मुरुओं की
कोई औकात होती है?
मुम्बई पिछले कुछ दिनो से हैरान है। आप जानते हैं क्यों है? यह भी बता दूं कि टीवी चैनलों पर जो आप देख रहे है वो असली हालात नहीं है बल्कि हालात बिगाडने के लिये बनाये गये द्रुश्य है। अपने वीज़न के अनुसार गढी जा रही मानसिकता को बखूबी प्रकट किया जा रहा है जिससे देखने वालों को लगे कि मुम्बई सचमुच आफत में है और अब बस तहस नहस ही होना है। उधर राजनीतिक स्तर पर कांग्रेस का खेल है, असली मुद्दे फिलहाल पूरी तरह डिब्बा पैक हो गये हैं, यहां तक कि जनता भी सवाल नहीं कर रही। क्या बिजली, क्या पानी, क्या महंगाई सब कुछ इस बनाये गये हालात की भेंट चढ गये।
शाहरुख खान को चिंता है? अमेरिका, दुबई घूम घूम अपने स्टेटस और कमाई में जुटे इस हीरो को क्या सचमुच चिंता है? मगर हम उसके लिये परेशान है। क्यों?
क्या कभी अपने आप पर भी हंसी आई है? आई है, किंतु दबा ली गई है। क्योंकि जनता को ज़मूरा बना दिया गया है।
इधर सब इस हालत का जायजा कुछ इसप्रकार ले रहे है मानों देश की यही एक समस्या है और इसके हल हो जाने पर सबकुछ ठीक हो जायेगा।
बडी बडी बातें, बडे बडे विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं। यह सब आखिर क्यों? अब तर्क पर तर्क मिलेंगे.... खैर।
बिमारी ... प्रेम की ...
1 हफ़्ते पहले
17 टिप्पणियां:
'जनता को ज़मूरा बना दिया गया है।'
वाकई जनता की मौलिक समस्याएँ तो तुच्छ राजनीति की भेंट चढ़ती जा रही है
... सच लिखा है!!!
ये तो बुल्फाईट हो रही है।
बीच में नहीं आना ।
दूर से ही तमाशा देखो।
आप तो मुहाने पर बठे हैं, आप ही न बेहतर बता सकेंगे..हम तो वो सुनते हैं जो सुनाया जाता है.
दर्द झलक रहा है..
Bilkul sach hai sir..
aur aapse behtar kaun dekh raha hoga...ush drishya ko.
सच कहा है अमिताभ जी .... और ये नया नही है .... हर बार, हर बार जनता को बेवकूफ़, जमूरा, मोहरा और भी न जाने क्या क्या बनाया जाता है और हम सब बहुत आसानी से बन जाते हैं ये सब .... आपकी कविता छू जाती है दिल को ..... दर्द और आक्रोश की आवाज़ है जो हर सोचने वाले की आवाज़ है पर दब जाती है मीडीया और ऐसे मजमों के शोर में .... शायद जीवन ऐसे ही चलेगा हमारे देश में ...........
kya yahi satye hai? agar apki baat satye hai to main hairaan hu....aur sharm aa rahi hai mujhe raajnitik patan par...
aur agar yai satye he to mujhe bahut dukh hai ki hame kaise bevkoof banaya ja raha hai...kyuki ham to usi ko satye maan rahe the jo hame news channels par dikhaya jata hai..ye to hamari komal bhaavnaao se sarasar khela ja raha hai.
agar aisa he to ham,aap sab kalam k sipahiyo ko apni kalam ki dhaar tez kar leni chaahiye.
महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......
सच कहा आपने,
आज कल इंडिया में न्यूज़ बनती नहीं बनायीं जाती है.. जब तक ऐसा कुछ नहीं दिखायेंगे इनके चैनल चलेंगे नहीं.. २६/११ को भी इन्होने यही किया .. आतंकी वही कामयाब हो गए.. २०० लोग मरे गए मगर करोडो लोगो के मनो में ऐसा खौफ बैठ गया है की आज भी हम आपने आप को असुरक्षित महसूस करते है.. यही आज कल उत्तर भारतीयों के बारे में हो रहा है .. पुरे देश में ऐसा चित्र दिखाया जा रहा है जैसे यहाँ पे कोई महायुद्ध चल रहा है.. इससे ज्यादा बड़ा और गन्दा पोलिटिक्स देश के कही जगह चल रहा है.. मगर इनको आपनी न्यूज़ बेचनी है तो यही दिखाना पड़ता है.. और आने वाले बिहार के चुनाव चलते मुजे तो लगता है ये बहोत लॉन्ग टर्म प्लान है इन लोगो का..
मीडिया आज कल बिकता है.. २४ घंटे चलने के लिए न्यूज़ बनायीं जा रही है ..
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!
बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! च्यूंकि आप मुंबई में है इसलिए आप से बेहतर इस बारे में और कोई नहीं कह सकेगा!
ये पब्लिक सब जानती है मगर क्या करे ?
वेलेंटाइन-डे की शुभकामनायें !
aapne bahut sahi mudda uthaya hai amitaabh ji .. hum wakai jamure bane hue hai .... asli samasyaayen to koi dekhta nahi hai ....
very good post ...
aapka
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ. इनका क़द बढ़ने इनका महिमा मंडन और देश की स्थिति बिगड़ने में टी वी का सबसे बड़ा हाथ है
जनता जमूरा बनने के लिए तैयार है इसीलिये उसे बनाते हैं ये नेता अभिनेता लोग.
आप सही कह रहे हैं यह मीडिया जो न करे कम है. मुम्बई में तोड़ फोड़ की ऐसी कवरेज दिखाई हम भी परेशान हो गये ,अपने मित्रों को पूछा कि सब खैरियत है क्या वहाँ?तो उनका जवाब था[नहीं सवाल था ]..अच्छा !ऐसा हो रहा है?यहाँ तो इतना शोर नहीं है..:)
-अमिताभ जी ,ऐसे ही कई बार हुआ यहाँ कोई ख़बर देख कर हम इंडिया फोन करते हैं कि सब ठीक ठाक है या नहीं?और मालूम चलता है उन्हें भी उन खबरों के ख़बर नहीं जिसे देख कर हम चिंता कर रहे हैं.
--'SR.khan 'की चिंता में दुबली होती सरकार पर तरस ही आता है.
बेमोल बिकने वाले ज़मूरे।
क्या ज़मुरुओं की
कोई औकात होती है?
Bahut achhi post... Sachhi-sachhi baat...
Bahut badhai
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