अमिताभ बच्चन और तब्बू की फिल्म थी 'चीनी कम'। मैने देखी नहीं। फिल्म देखने का शौक नहीं है सो नहीं देखी। उसकी कहानी भी पता नहीं। किंतु देश में चल रही सरकारी फिल्म 'चीनी कम' से जरूर दो चार हो रहा हूं। लगता है यह फिल्म ज्यादा लम्बी है। खत्म होने का नाम नहीं लेती। ऊपर से इसकी रील भी बढाई जा रही है। निर्माता देश की सरकार है तो निर्देशक हैं कृषि मंत्री शरद पवार। आपको बता दूं कि इस फिल्म के डायलाग गज़ब के हैं। शरद पवार खेमे के एक अखबार 'राष्ट्रवादी' में प्रकाशित हुए हैं- ' चीनी महंगी हो गई है तो चिल्लाते क्यों हो, चीनी कम खाओ, कम चीनी खाने से कोई मरता नहीं है।' है न जबरदस्त डायलाग। भारत की जनता खूब शक्कर खाती है। उसे इससे डायबटिज़ न हो जाये इसके लिये चिंतित है निर्देशक। फिल्म के साथ साथ मानवधर्म भी तो कुछ होता है। सरकार उपाय बताती है। अरहर की दाल महंगी है इसलिये पीली मटर की दाल खाओ। यानी आप दुआ कर सकते हो कि कहीं कपडे और अधिक महंगे न हो जाये वरना सरकार कहेगी नंगा घूमो। शायद इसकी नौबत पर भी सरकार का ध्यान है। वो सोच रही है कि फिल्म में आजकल अंग प्रदर्शन भी होता है, ग्लैमर भी तो होना चाहिये न। नहीं तो फिल्म चलेगी कैसे? निर्देशक का अखबार कहता है कि ''शक्कर के दाम यदि 10-15 रुपये बढते भी हैं तो इतनी हाय तौबा क्यों? एक परिवार का यदि चीनी के लिये प्रतिमाह का खर्च 90 से 100 रुपये बढ जाता है तो इससे क्या फर्क़ पडेगा? सौन्दर्य प्रसाधन का खर्च भी तो वहन किया जा रहा है।'' अब सोचने की जरूरत जनता की है। जनता सोचती बहुत है। सोचने का पैसा नहीं लगता है ना इसीलिये सरकार ने यह काम जनता को सौंप रखा है। जनता सोचती है कि- 'क्या एक परिवार महीने में एक किलो ही शक्कर खाता है?' मुझसे पूछें तो अनुमान लगा कर कह सकता हूं कि एक परिवार में चार-पांच किलो शक्कर की खपत तो होती ही होगी। राशन लेने जाता होता तो सही बता सकता था। किंतु अनुमान में कम से कम इतनी खपत तो होगी ही। कम सोचने में क्या बुराई? तो पांच किलो शक्कर कितने की हो गई? यदि 50 रुपये से जोडे तो 250 रुपये की। यह खर्च उनके लिये ठीक है जिनका पेट भरा रहता है या जो सवाल उठाने में शर्म नहीं करते। भला निर्देशक का अखबार शर्म क्यों करेगा? शर्म करे जनता। पर सवाल तो यह है कि एक सामान्य आदमी या वो जो दो रोटी की जुगाड में दिन रात एक करते हैं उनकी भूख का क्या? सवाल करने वालों को विश्वास है कि आदमी सिर्फ शक्कर खा कर पेट भर लेता है। अजी सौन्दर्य प्रसाधन तो दूर की बात है आज जीवनावश्यक वस्तुओं की हालत देख लीजिये। रसोई घर का बज़ट तीन गुना बढ चुका है। मैं जानता हूं आज से एक दशक पहले तक मैरे घर डेढ से दो हज़ार रुपये में महीनेभर का आवश्यक राशन आ जाता था, धीरे-धीरे वो अब बढ कर 6 से 7 हज़ार पहुंच गया है। गेहूं, चावल, दाल, तेल यहां तक कि सब्जियां भी अपने तेवर दिखा रही हैं। सरकारी फिल्म तर्क दे सकती है कि 'कम खाओ। ज्यादा खाने से मोटे हो जाते हैं।' किंतु कम खाने से? अरे भाई ज़ीरो फिगर का ज़माना जो है। आप कम खाओगे तो कैलोरिज़ कम होगी। हो सकता है कि कुपोषित हो जायें। और कुपोषित हो भी जायें तो यह इत्मिनान रखिये कि मरोगे नहीं। फिर भी यदि मर गये तो सरकार घोषणा कर सकती है कि यह भूख से नहीं बीमारी से मरा है। आखिर देश की इज्जत का भी तो प्रश्न है। अब बीमारी तो हर देश में है। भूखे हर देश में थोडी हैं। खैर, आपको बताता चलूं कि महंगाई के इस दौर में करीब 70 फीसदी आबादी की आय 20 रुपये प्रति दिन से भी कम है। सोचिये..सोचिये वो क्या खायें? कैसे रहें? नहीं सरकार नहीं सोचेगी। क्यों सोचेगी वो? वो इतना निम्नस्तर का नहीं सोचती। वो हमेशा बडा सोचती है। सटोरियों, मुनाफाखोरों, मिल मालिकों..आदि के बारे में। अरे भाई इनकी कौन चिंता करेगा, सरकार ही न। इनकी चिंता सरकारी काम है। जनता तो जी ही लेती है। उसके भाग्य में बदा है कि बेटों मरते मरते भी जियो।
बहरहाल, 'चीनी कम' मुद्दा गहराया हुआ है। मेरे पास जो जानकारी है उसके मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 220 लाख टन शक्कर का उत्पादन होता है। इस साल देश में लगभग 240 लाख टन चीनी मौज़ूद है। आप पूछेंगे कि तब चीनी का दाम क्यों बढा? हां, गन्ने का उत्पादन घटा है न इसलिये। गन्ना उत्पादकों का संकट देखिये, दो साल पहले खबर थी कि गन्ना उत्पादक अपनी उपज की एवज में 120 रुपये प्रति क्विंटल की मांग कर रहे थे। मगर सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी। लिहाज़ा गन्ना उत्पादकों ने उत्पादन में ढिलाई बरती। इस साल हम जो शक्कर खा रहे हैं वो पिछले साल की बनी हुई है। और यदि तमाम खर्च मिला लें तो यह शक्कर हमें 25 रुपये तक मिलनी चाहिये। नहीं मिल रही। वो तो 45 रुपये में मिलेगी।
देश 2009 में पर्याप्त चीनी भंडार से लबालब था। और तो और तब 48 लाख टन चीनी 12 रुपये के भाव से निर्यात भी की गई। जब लगा कि चीनी घटने वाली है तो सरकार ने 30 रुपये किलो की दर से चीनी आयात की कुल 50 लाख टन। यानी 12 के भाव में बेची और 30 में खरीदी। इसके लिये क्या आप सरकार को मूर्ख कहेंगे या उसकी पीठ थपथपायेंगे? आप भले ही न थपथपायें मगर जनता की पीठ पर महंगाई के कोडे अवश्य बरसते रहेंगे। जनता अभिश्प्त है। भले ही आप सोचें कि इस देश का प्रधानमंत्री खुद भी एक गम्भीर अर्थवेत्ता है और जिसे निपुण वित्तमंत्री प्रनब मुखर्ज़ी जैसा बुद्धिजीवी का साथ मिला हुआ है, उसके बावज़ूद यह हालत? भाई दरअसल, यह 'चीनी कम' फिल्म बडे सस्पेंस की है। इसमे पता नहीं चलता कि हीरो मरता है या विलन? हां दर्शक के जीवन की गारंटी नहीं। तो है न कमाल की फिल्म?
बिमारी ... प्रेम की ...
1 हफ़्ते पहले
8 टिप्पणियां:
चीनी की कड़वाहट का सुन्दर विश्लेषण
करारा व्यंग है अमिताभी जी .......... और व्यंग क्यों ये तो हक़ीकत है ..... सचाई है ...... चीनी में हो रही घोटाले बाजी को आज तक समझना मुश्किल बना हुवा है जैसे शरद पवार जी का कृषि मंत्रालय में बना हुवा ..... वैसे मीठी चीनी कड़वी होते होते जल्दी ही जहर बन जाएगी ग़रीब लोगों के लिए .......... पर सरकार नही जागेगी ...... अभी तो दूसरा साल चल रहा है ...... ४ साल बाद सरकार जागेगी .... कोई मोटा मुद्दा उछालेगी ..... सब भूल जाएँगे इस चीनी को ..........
लाजवाब है सरकारी फिल्म "चीनीकम "भाई मिल मालिको को .सरकारी लोगो को तो मधुमेह का रोग है तो उन्हें इसका गम नहीं है |मेहनतकश लोगो को ये रोग नहीं होता जैसे मजदूरों .किसानो आदि को मिठाई तो उनसे वैसे ही दूर थी अब चाय जोकि वो लोग ही मीठी पीते है जो कि उनकी वास्तविक जरुरत है वो भी उनसे छिनी जा रही हैआपके इन निर्देशकों द्वारा |
बहुत ही सटीक आंकड़ो सहित विश्लेषण |पता नहीं ?ये असमानता कब कम होगी ?अब तो कलम भी इनपर कोई असर नहीं करती दिखती ऐसा लगता है ?और आन्दोलन करने का शायद समय ही नहीं है किसी के पास |
सचमुच जनता अभिशप्त है सब कुछ सहने के लिए |
हमें तो ये चीनी नीति बिलकुल समझ नहीं आती।
इसलिए खाना ही कम कर दिया है।
प्रभावशाली रचना, अमिताभ जी।
Adarniya, bahut hi satik Vyang kiaya hai aapne...Aabhar!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
bina dekhe hi film ke vishya par itna kah diya ki dekhne ki jaroort hi nahi ,aham baat to aapki hai jo chinta janak hai , aam janta safar kar rahi vevjah in netao ki galtiyon ke karan .sach ko samne badi khoobsurati se rakh diya
हमने चीनी कम आधी ही देखी ..लगा कि महंगाई पर कोई फिल्म होगी .. अब लगा कि फिल्म तो यह होनी चाहिये थी ।
Q-है न कमाल की फिल्म-Ans-है न !
-'चीनी कम' par aap ki चिंता वाजिब है.
---'आप दुआ कर सकते हो कि कहीं कपडे और अधिक महंगे न हो जाये वरना सरकार कहेगी ...'
ha ha ha!
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