गधों और घोडों के
खुरों के बीच
रौन्दी जा रही
प्रतिभा।
नोंच-नोंच उसे
खा रहे गिद्ध
आसमान
नाप रहे।
सिसकियां भी
चाटे जा रहे
रात के अन्धेरे में
चमगादड।
खरगोश सा कोमल
मुलायम मांस वाला
ईमान,
कब तक कहां-कहां
फुदकेगा?
आखिर सीधे खडे
कान पकड के उसे
भून दिया जायेगा
सरकारी भट्टी में।
बचना है
या कोई सम्मान
पाना है तो
कुत्ते की दुम की
तरह टेढे हो जाओ,
या अवसर जान
उसे दबा लो
या फिर
हिलाओ
कुं कुं करते।
बिमारी ... प्रेम की ...
1 हफ़्ते पहले
16 टिप्पणियां:
इतना सच सच खरा खरा न बोलो भाई-डर लगता है.
ईमान तो वही है , जो हर कसौटी पर खरा उतरे।
.... छा गये ... बेहतरीन रचना !!!
बिलकुल सच लिख डाला आपने!!!NICE ONE!!!
सामयिक और हमेशा यही होता है।
एकदम सच !
और सच को कहने का अंदाज़ उससे भी ज्यादा सच!
कब तक होता रहेगा ऐसा आखिर!
सुन्दर रचना !
Are baap re shabdo ka ashar aisa jaise koi dande se maar raha ho..rachna ka koi jabab nahi.
अमिताभ जी
बहुत सुन्दर रचना
आपका आभार
आजकल सम्मान और पुरस्कार इसी तरह मिल रहे हैं ।
एकदम खरी खरी कह दी जी आपने। वैसे इतना सच कहने वालो की दिनोदिन कमी होती जा रही है जी।
प्रतिभा को बचाने के लिए शायद अवसरवादी ही बनना होगा नहीं तो नोच ली जायेगी
अमिताभ जी आदाब
आपके ब्लाग पर आया, तो एक साथ 3 पोस्ट पढ़ी
बहुत अच्छा लगा..अब आता रहूंगा
ये पंक्ति बहुत अच्छी लगी-
खरगोश सा कोमल
मुलायम मांस वाला
ईमान,कब तक कहां-कहां फुदकेगा?
बधाई
सच मे..आजकल सच भी सूखा निगलने मे तकलीफ़ होती है..सो शब्दों के शहद की तलाश ही रहती है..मगर नींद कैसे खुले फिर...
बहुत जरूरी कविता!!
स्पष्ट ...... खरी और सीधी बात करना आपकी आदत है अमिताभ जी ......... और इस रचना में भी सीधा प्रहार किय है आपने कुसंगति की तरफ ............. बहुत प्रभावी और बेबाक रचना ..........
कहते है १०० बार अगर झूठ को सच कहा जाय तो वह झूठ झूठ सच हो जाता है ऐसा मान लेते है |कितु सच को १०० बार भी सच ही कहते है तो भी वह सच अज्ञानियों कि समझ में नहीं आता ऐसा ही सच लिखा है आपने |और ऐसे अज्ञानी ही पुरस्कार देकर राजा बनते है और पुरस्कार लेने वाले मंत्री (प्रजा )?
यथा राजा तथा प्रजा ;
खरगोश सा कोमल
मुलायम मांस वाला
ईमान,
कब तक कहां-कहां
फुदकेगा?...क्या उपमा दी है साहिब...
और ................
सीधे खड़े कान पकड़कर........ooooooffffffffffffff
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