शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

मेरा प्रेम


उसे
न कभी देखा,
न मिला और
न ही जाना।

हां,
अपने आसपास
उसके होने का अहसास
हमेशा रहता है।

हवा संग वो
कभी शरीर से लिपटती है
तो कभी खुशबू बन
नथुनों से होकर
सीधे हृदय तक
जा उतरती है।

रोमांचित मन
मस्तिष्क में बैठ
उसकी आकृतियां
उकेरने लगता है।

और
जब इन आकृतियों को
कैनवास पर
उतारता हूं
तो चेहरा नहीं बनाता।

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।

31 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

प्रेम में पहरा भी नहीं होता
फिर भी प्रेम गहरा होता है।

Udan Tashtari ने कहा…

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।

-सुन्दर अहसासों की बानगी!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हां,
अपने आसपास
उसके होने का अहसास
हमेशा रहता है।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

seema gupta ने कहा…

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।
"प्यारी सी नाजुक सी एहसासों की अभिव्यक्ति "
regards

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut sunder,
pyari si rachna pyar ka ahsas kara gai.

kshama ने कहा…

हवा संग वो
कभी शरीर से लिपटती है
तो कभी खुशबू बन
नथुनों से होकर
सीधे हृदय तक
जा उतरती है।
Yaad aa gayi wo panktiyan..."hamne dekhee hai un aankhon kee mahaktee khushbu"...!

विवेक रस्तोगी ने कहा…

प्रेम की सही अभिव्यक्ति...

निर्मला कपिला ने कहा…

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।
वाह प्रेम का असली रूप यही है बधाई इस सुन्दर रचना के लिये

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है अमिताभ जी ........... प्रेम तो एक एहसास है जो महसूस किया जा सकता है ........... बंद आँखों से भी देखा जा सकता है ........... बिना स्पर्श के भी छुआ जा सकता है .............
बहुत ही मीठे एहसास लिए, मासूम अभिव्यक्ति है आपकी .......... या ऐसे कहूँ आत्मस्वीकृति है ........... खुश किस्मत हैं भाभी जी ..........

Urmi ने कहा…

आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

शोभना चौरे ने कहा…

हां,
अपने आसपास
उसके होने का अहसास
हमेशा रहता है।

prem ka divy svroop hai aur adhyatm ki or jane ka marg dikhati hui sundr abhivykti .
shubhkamnaye

अपूर्व ने कहा…

लगता है जैसे कि लोककथाएं लिखने लगे हो आप..
सच बात है..तो प्रेम किसी चेहरे से किया जाता है..वस स्थाई रहता भी नही है..चेहरे के बदलने के साथ ही अहसास बदलने लगता है..
...और प्रेम की इस शिद्दत की मुकम्मल तस्वीर मे जो आपने यहाँ खींची है..किसी चेहरे के लिये जगह बाकी भी नही रहती..
मजा आया पढ़ कर..

Alpana Verma ने कहा…

अनदेखी अनजान छाया से जैसे मन को बाँधा हो,
कोई है मगर कोई नहीं है जैसे अहसास को शब्दों में गूंधने की आप की कला भी खूब है.
कविता ऐसे भावों की सफल अभिव्यक्ति लगी.

Crazy Codes ने कहा…

bhayi pyaar kya hai ye to nahi bata sakta par kavita adbhutaas hai... prem mein kabhi chehre ki jaroorat mahsoos nahi hui... sahi kaha aapne.. prem mein to shayad sirf dilon ki jaroorat hoti hai...

शरद कोकास ने कहा…

इस तरह के प्रेम पर ही कविता सम्भव है ।

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

alag prkar ki vidha ke malik hain ..sunder rchna..blog pr aane ka dhnywad.

Nipun Pandey ने कहा…

वाह अमिताभ जी ,

प्रेम में चेहरे की जरूरत ही नहीं ! बस एहसास ही तो हैं !

सच का सुन्दर वर्णन !
:)

सुशील छौक्कर ने कहा…

सबसे पहले तो देर से आने के लिए माफी। प्रेम पर लिखी आपकी रचना सही मायने में एक अलग ही अहसास जगाती है। शुरु से लेकर आखिर तक एक लय में बँधी एक बेहतरीन कविता। शब्दों की ध्वनि अपने संग़ीत से अपनी और खींचती है। वैसे आपकी कविताओं में अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। और आखिर में आप बहुत गहरी बात कह जाते है। जो आपके लेखन की एक पहचान है। और हाँ आपकी ये प्रेम की आकृति भी बहुत पसंद आई।

गौतम राजऋषि ने कहा…

विलंब से आने के लिये माफी चाहूंगा अमिताभ भाई...

प्रेम का ये निराकार रुप ही तो है जो सच पूछिये तो सब कुछ है हमारे वजूद का, हमारे होने का, हमारे सर्वस्व का...और उस इतनी खूबसूरती से बाँधा है आपने अपने कोमल सहज शब्दों से कि क्या कहने...

Urmi ने कहा…

आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति की शुभकामनायें!

ज्योति सिंह ने कहा…

bas yahi to pyaar hai ,bahut khoobsurat likha hai .

ज्योति सिंह ने कहा…

pyaar koi bol nahi ,sirf ahsaas hai mahsoos karo .

"अर्श" ने कहा…

amitabh ji wakai prem me chehre ki jarurat nahi hoti... manaspatal par bas kuchh lakiren hoti hain aur wahi sarvaswa hoti hain... behad asardaar baat ki hai aapne sundar aur saral shabdon me...


arsh

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आपकी रचना कि प्रेम के लिये चेहरे की जरूरत नही उस प्रसंग से मेल खाती है ""अब तें रति तव नाथ कर होइहि नाम अनंग/बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि ............।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।

बहुत खूब.....!!

ajay saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

दर्पण साह ने कहा…

और
जब इन आकृतियों को
कैनवास पर
उतारता हूं
तो चेहरा नहीं बनाता।

क्योंकि
प्रेम में
चेहरे की जरूरत
मुझे कभी
महसूस नहीं हुई।



नि: शब्द हूँ इसलिए नहीं कि कुछ कहना नहीं चाहता,
इसलिए कि बहुत कुछ कहना है...
इन आठ लाइन में...
मैं कविता को कभी अपने से relate नहीं करता पर ये सूफियाना कविता,
पर इन आठ लाइन में...
मैंने भी जब भी कोई तस्वीर बनाई उसकी , सपने में भी तो आकृति नहीं थी,
इसीलिए इन आठ लाइन में...
अमिताभ जी माफ़ करियेगा कुछ नहीं कह पाऊंगा...
क्यूंकि इन आठ लाइन में...

दर्पण साह ने कहा…

शायद पोएम थी...
'True Beauty'
जिसमें 'Spritual' और 'Physical' Beauty के बारे में कहा गया था,
...वो कविता याद नहीं पर याद आ रही है...

जयंत - समर शेष ने कहा…

Jo kahaa hai aapne, gaharaa kahaa hai aapane..
Jo naa dekhaa sabane, use dekhaa aapne,
Jo dekhaa sabane, use naa dekhaa aapane!!!

Kuldeep Saini ने कहा…

bahut badiya likha hai sahi me prem me chehre ki hi nahi kisi bhi cheej ki jaroorat nahi hoti ye to bas ek eahsaas hai

manu ने कहा…

दर्पण के कमेन्ट के बाद कुछ नहीं रह जाता मेरे कहने के लिए..

शुक्र मना रहा हूँ के नीचे इस पोस्ट तक आ गया...
पेंटिंग देख कर हैरान सा हूँ...

सच में आपने उतारी है कैनवास पर...???
अगर हाँ...तो आके इस रूप का भी मैं कायल हो गया हूँ...
मुझे जवाब जरूर दीजिएगा ...