शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

राजनीति का त्रिफला

सरकार सोई या बीमार नहीं है,
वो जाग रही है।
उसने तो
सत्ता, नोट और बाहुबल के
त्रिफला चूर्ण से
अपना हाजमा सुधार रखा है।
वो पचा लेती है
तिल-तिल कर मर रहे
भूखे लोगों का दर्द।
वो देखती है
बिल्कुल करीब से
महंगाई के इस दौर में
गरीब का आटा गिला होते।
आंकडे एकत्र करती है
और
संसद में पेश करती है कि
आज कितने किसानों ने
खुद्कुशी की।
वो अनुसन्धान में रत है
कि आखिर
बेरोजगारी से कितने परिवार
तबाह होते हैं या
कितने युवा काम की तलाश में
उसके किसी मोर्चे में,
किसी आन्दोलन में
चन्द पैसों के लिये
मर भी सकते हैं।
वो अध्ययन करती है
कि ऐसे कौनसे मुद्दे हो सकते हैं
जो प्रजा के मर्म पर
प्रहार कर नाजुक भावनाओं को
तहस-नहस कर सके।
वो परखती है कि
महंगाई के बावज़ूद
आम आदमी
कैसे जिन्दा रह लेता है?
वो अपने साथ
अपने परिजनों को भी
मुफ्त हवाई यात्रा करा कर
देश में फैली अस्थिरता के
दर्शन कराती है।
सच में
सरकार सोई नहीं है।
उसे चिंता है देश की।
सोई तो प्रजा है
जिसे कुछ भान भी नहीं कि
देश चलता कैसे है?
धन स्वीस बैकों में पहुचता कैसे है?
कैसे नेता बनते ही
धनवान बना जा सकता है?
और कैसे
आदमी को उल्लू
बनाया जाता है?
उसने बडी लगन से
वैज्ञानिक अविष्कार किया है कि
हवा के ज्यादा दबाव में
कैसे विकल्पहीनता
पैदा की जा सकती है?
सचमुच
राजनीति का त्रिफला
बहुत् फलता है।

16 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सचमुच
राजनीति का त्रिफला
बहुत् फलता है।


-बहुत सटीक!!

कडुवासच ने कहा…

... बहुत खूब, लाजबाव !!!

dr.rajesh varma ने कहा…

अमिताभजी
राजनितिक हालातो पर रचना लिखना अक्सर कठिन होता है. आपमें यह खूबी भी है.

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut khub sir....

गौतम राजऋषि ने कहा…

त्रिफला चूर्ण के इस अनूठे बिम्ब ने हतप्रभ कर दिया अमिताभ जी!

सुशील छौक्कर ने कहा…

आपका लिखा ये "राजनीति का त्रिफला" भी पसंद आया। गजब का हाजमा है इन नेताओं का जी। एक बार जीत जाते है और जिदंगी भर के लिए कमा ले जाते है। बेहद सटीक और सच लिखा है आपने।
सोई तो प्रजा है
जिसे कुछ भान भी नहीं कि
देश चलता कैसे है?
धन स्वीस बैकों में पहुचता कैसे है?
कैसे नेता बनते ही
धनवान बना जा सकता है?
और कैसे
आदमी को उल्लू
बनाया जाता है?

पर मैं कुछ थोडा अलग भी सोचता हूँ। जिसके बारें में फिर कभी। खैर आपकी लिखी सच्चाई पसंद आई। और इसको राजनीति के त्रिफला से कमाल का जोड़ा है आपने। इसी खासियत के हम कायल है।

अपूर्व ने कहा…

सत्ता, नोटों और बाहुबल का यह कैसा त्रिफ़ला है सर जी..जो जिनके पास है उनको तो सब हजम करा देता है..मगर बाकी सभी का हाजमा खराब हो जाता है..मुल्क का हाजमा खराब होता जा रहा है..आने वाला कल न जाने कैसा होगा
खैर यह बात तो एक्दम सच लगी..

सच में
सरकार सोई नहीं है।
उसे चिंता है देश की।
सोई तो प्रजा है
जिसे कुछ भान भी नहीं कि
देश चलता कैसे है?

सो लेट्स बी ए वेकअप काल नाउ!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सचमुच
राजनीति का त्रिफला
बहुत् फलता है ...

वाह अमिताभ जी ...... एक और ग़ज़ब का व्यंग लिखा है ........ सच है ये राजनीति का त्रिफला बस इन राजनीति करने वालों को फ़ि फलता है ........ उनका हाजमा दुरुस्त करता है .......... जैसे ये चाहते हैं वैसे ही काम करता है .......... वर्तमान की राजनीति का सफल और सार्थक चिंतन है . दस्तावेज़ है ये रचना .......

डॉ टी एस दराल ने कहा…

राजनीति का त्रिफला
भैया , लाज़वाब व्यंग कसा है।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

उसने तो
सत्ता, नोट और बाहुबल के
त्रिफला चूर्ण से
अपना हाजमा सुधार रखा है।
--हाँ सरकार के पास त्रिफला चूर्ण है
और जनता को महंगाई का कड़वा घूंट सदा पीना पड़ता है।
--गंभीर कटाक्ष.

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत -२ बधाई

शोभना चौरे ने कहा…

bahut achha kataksh .

Alpana Verma ने कहा…

नये बिंब गढ़ना आप खूब जानते हैं..राजनीति का त्रिफला!!!
...बहुत ही जबरदस्त व्यंग्य किया है...सही सोचते हैं की यह 'जनता ही है जो सो रही है..या जानबूझ कर आँखें मून्दे हुए है...लोकतंत्र के इस राज में भी अपने अधिकारों को नहीं पहचानती.
बेहतरीन कविता.

दर्पण साह ने कहा…

सत्ता, नोट और बाहुबल के
त्रिफला चूर्ण से


बेहतरीन !!

वो पचा लेती है
तिल-तिल कर मर रहे
भूखे लोगों का दर्द।


हाँ भूखे लोगों को त्रिफला क्या चाहिए ये excuse भी देती है वो, जब पेट में ही कुछ नहीं तो पचाओगे क्या बे?
वो राजकुमारी याद आ गयी. ब्रेड नहीं है तो pastry खाओ...


आंकडे एकत्र करती है
और
संसद में पेश करती है कि
आज कितने किसानों ने
खुद्कुशी की।
वो अनुसन्धान में रत है
कि आखिर
बेरोजगारी से कितने परिवार
तबाह होते हैं या
कितने युवा काम की तलाश में
उसके किसी मोर्चे में,
किसी आन्दोलन में
चन्द पैसों के लिये
मर भी सकते हैं।


आंकड़े बड़े आजीब होते हैं, किसी मूवी का dialouge था , emotions भी कितने stupid होते हैं ना logic भी नहीं समझते, मैं कहता हूँ logics भी कितने fuzzy होते हैं, emotions को भी count कर लेते हैं, वैसे भूटान सबसे खुश देश है ! ये आंकड़े कहते हैं !!

हवा के ज्यादा दबाव में
कैसे विकल्पहीनता
पैदा की जा सकती है?

इस बेहतरीन poem कि सबसे बेहतरीन line

sandhyagupta ने कहा…

सचमुच
राजनीति का त्रिफला
बहुत् फलता है।

Kya baat hai!

Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.

जयंत - समर शेष ने कहा…

Itanaa gaharaa vyangy!!

Aap Amitaabh ho sachmuch..

Amit+Aabh!!!