गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

कुपोषण

रीढ से चिपके
पिचके पेट लिये,
कंकाल हो गये
चमडी चढे शरीर वाले
इन बच्चों की
आंखों के आंसू भी
सूख कर
गीजड बन चुके हैं,
जिन पर भिनभिनाती
मक्खियों को तो उनका
भोजन मिल जाता है
किंतु
भूख की आग में
दहन हो रहे
इन नन्हे भविष्यों को
एक दाना तक
मुहाल नहीं है।
इन्हें मिलता है
अनाज़ की जगह आश्वासन,
पानी की जगह प्यास
और
कभी न पूरी हो पाने वाली
कमबख्त आस
कि
21 वीं सदी का भारत
उन्हे मुक्त कर देगा
कुपोषण से।

मगर धन्य है
इस कुपोषण का भी
शोषण जारी है।

ये जन्मे ही शायद इसीलिये हैं।
क्योंकि
इन्हीं की बदौलत
लच्छेदार भाषणों में
उलझा कर
जिन्दा रह सकते हैं नेता,

इनकी तस्वीरें निकाल
दुनियाभर में प्रसारित कर
पा सकता है
कोई फोटोग्राफर पुरस्कार।

इनकी दुर्दशा का
ब्योरा लिख
मर्म को हिला कर
बेस्ट रिपोर्टिंग का हक़दार
बन सकता है पत्रकार।

दुसरी ओर
हमारी सरकार...
फिक़्रमन्द है।

खबर है
कसाब पर करोडों खर्च
अफज़ल को शाही बिरयानी.......।

15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सटीक कटाक्ष...मार्मिक!!


मगर धन्य है
इस कुपोषण का भी
शोषण जारी है।

M VERMA ने कहा…

दुसरी ओर
हमारी सरकार...
फिक़्रमन्द है।
रूह तक पैबश्त होती रचना.

Alpana Verma ने कहा…

'कुपोषण का भी
शोषण जारी है।'
सशक्त अभिव्यक्ति.

सही कटाक्ष किया है व्यवस्था पर.
ना जाने कब चेतेंगे समाज के ठेकेदार!

मीत ने कहा…

कभी न पूरी हो पाने वाली
कमबख्त आस
क्या कहीं इस कडवे सच के बारे में...
बहुत खूब लिखा है....
साडी सच्चाई को शब्दों में पिरो दिया...
मीत

अजय कुमार ने कहा…

खबर है
कसाब पर करोडों खर्च
अफज़ल को शाही बिरयानी.......।

कड़वी सच्चाई , एक और खबर संसद में १२ रू. में खाना मिलेगा

शोभना चौरे ने कहा…

ये जन्मे ही शायद इसीलिये हैं।
क्योंकि
इन्हीं की बदौलत
लच्छेदार भाषणों में
उलझा कर
जिन्दा रह सकते हैं नेता
bilkul sach hai agar ye nahi hote to loktantra ki neev hi nahi hoti .
khud kuposhit hokar bhi aoro ko poshit kar jate hai ye log .
achha kataksh.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

achhi abhivyakti.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खबर है
कसाब पर करोडों खर्च
अफज़ल को शाही बिरयानी......

बहुत गहरी बात ......... और सत्य ....... इन बातों को कोई नही सोचता, कोई नही देखता ये नेता लोग क्या . हैं ........ किसकी पीठ पर रोटियाँ सिक्ति हैं .......... किसके लिए करोड़ों की बिर्यानी बनाते हैं ............ दुर्भाग्य है इस देश का ......... पतन है इतनी पुरानी सभ्यता का अपने ही हाथों द्वारा ...........

vandana gupta ने कहा…

bilkul sahi kataksh .

सुशील छौक्कर ने कहा…

अमिताभ जी क्या बात है आजकल एक से एक बढिया रचना लिख रहे है आप। बेहद मार्मिक और सवेदनशील रचना लिखी है आपने। शब्दों के मामले में वाकई आप बहुत ज्ञानी है।
रीढ से चिपके
पिचके पेट लिये

गजब की शब्दों की लय। कुपोषण पर आपने बहुत ही बेहतरीन लिखा। आज की दुनिया में इन विषयों पर लिखने की किसको पड़ी है। पर आपने लिखा। इससे पता चलता है आप कितने जमीन से जुडे इंसान है। आपकी ये रचना भी हमें पसंद आई। बेहद सटीक सच लिखा है आपने। और हाँ अभी एक बात दिमाग में आई आपकी ये लाईन पढकर।
ये जन्मे ही शायद इसीलिये हैं।
क्योंकि
इन्हीं की बदौलत
लच्छेदार भाषणों में
उलझा कर
जिन्दा रह सकते हैं नेता,

बात ये है कि " ऐसे नेता क्यों चुनकर आ जाते?"

कडुवासच ने कहा…

... सुन्दर व प्रसंशनीय रचना !!!

अपूर्व ने कहा…

ऐसी बहुत सी विसंगतियां है..जो हमारे आसपास अपने सबसे भयावह रूप मे घटित होती रहती हैं..अब हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा सा हो जाती हैम..अब हमें व्यथित नही करती..सो लाइमलाइट से भी बाहर रहती हैं..अपनी लो टी आर पी वैल्यू के कारण...
..सोचता हूँ कि राखी के भावी वर/शिकार मे हमारी उत्सुकता या बिगबॉस के मेहमानों की साजिशें जान लेने की व्यग्रता हमारे एस्केपिज्म का प्रतीक हैं या मरती हुई संवेदनशीलता का मर्सिया !!!

दर्पण साह ने कहा…

इनकी तस्वीरें निकाल
दुनियाभर में प्रसारित कर
पा सकता है
कोई फोटोग्राफर पुरस्कार।

इनकी दुर्दशा का
ब्योरा लिख
मर्म को हिला कर
बेस्ट रिपोर्टिंग का हक़दार
बन सकता है पत्रकार।


अभी अभी एक क्षणिका लिखी थी.....
Breaking News.
विश्वस्त सूत्रों से पता चला है,
की कौवा ,
आपका कान लेके,
उड़ गया.
पकड़ो उसे.

तो अमिताभ सर ये हाल है मीडिया का तो. इसने कुछ ज़यादा ही expectiation है हमें.


पूरी पोएम के लिए दुबारा आता हूँ.

दर्पण साह ने कहा…

अपूर्व भाई के प्रश्न का कुछ दार्शनिक (not very दार्शनिक though ) सा उत्तर ढूँढने कि कोशिश कि है बड़े ही materialistic उद्धरण से, मिथुन की 'Out of the world types' मूवी किसी छोटे से गाँव कसबे या छोटे छोटे हॉल में ज़्यादा चलती हैं और 'रेअल्स्टिक' movies को 'multiplex movies' कहा जाता है. क्यूंकि शायद हमें सच से भागने में मज़ा आता है, बाहर अगर तापमान ४० डिग्री है तो a .c. 20 डिग्री मैं सेट होता है और अगर ठण्ड है (२२ डिग्री ) की तो blower चलता है.

किसीकी नज़्म याद आ रही है, 'Bottoms Up' वाली . Though इससे उतनी relate नहीं होती...
--
Best Regards.
Darpan Sah 'Darshan'

दर्पण साह ने कहा…
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