मेरे चेहरे के भाव
वो खूब पढ लेती है।
उसका नन्हा दिमाग
मेरे दिमाग से
कहीं तेज चलता है।
वो मेरे अनुसार अपने
कार्य ढालती है,
मुझे क्या अच्छा लगता है
क्या नहीं.
वो बारिकी से जानती है।
यहां तक कि
मुझे भी कभी पता नहीं चलता कि
मैं "ऐसा कुछ चाह" रहा था।
थकान होती है
तो सिर के पास बैठ
अपने नन्हें, कोमल हाथों से
सहलाने लगती है।
मैं
मना करता हूं
तो सीधे कुछ किताबें उठा
पढ्ने लगती है,
मुझे दिनभर की
बातें बताती है।
और जब देखती है कि
मैं हंसा तो
झट उठ कर भाग जाती है।
या फिर
कह उठ्ती है-
पापा
चलो आपको घुमा लाऊं।
मैं पूछ्ता हूं
कहां?
तो कहती है
कहीं भी बाहर,
जैसे मार्केट-वार्केट
होटल-वोटल,
मेरे लिये कुछ
खरीद वरीद लेना
कुछ खा-वा लेंगे
और क्या।
मैं हंस देता हूं और
प्यारी सी चपत
देते हुए
कहता हूं
शैतान।
बस यही तो है
जीवन के सुख।
15 टिप्पणियां:
प्रिय अमिताभ जी, असल में यही सुख है | चाणक्य सूत्र में भी कहा गया है, व्यक्ति को सबसे बड़ा सुख तभी मिलता है जब वोह अपने बच्चों के सर पर हाथ फेरता है | जीवन की यह सच्चाई को आपने अपने कविता सूत्र में पिरो दिया है बड़ी ही भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है | हमेशा ही आपकी कविताओं का इन्तेज़ार रहता है | रोज इक बार लोगिन करके देख लेते हैं कि कोई नयी रचना पढने को मिलेगी |
आपका ही पंकज
अमिताभ जी बेटियाँ होती ही ऐसी हैं। और जिस सुख की बात की आपने वही तो सुख तो जीने की ऊर्जा बन जाता है। और आदमी दुखों के पहाड़ के बीच एक राह बना लेता है। और जीता जाता है। नैना ऊपर खेल रही है दादू के साथ। वो अभी से समझने लगी है कि पापा को क्या अच्छा लगता है और क्या बुरा। उसकी कई घटनाएं याद आ गई। आपकी यह रचना पढकर।
पापा
चलो आपको घुमा लाऊं।
मैं पूछ्ता हूं
कहां?
तो कहती है
कहीं भी बाहर,
जैसे मार्केट-वार्केट
होटल-वोटल,
मेरे लिये कुछ
खरीद वरीद लेना
कुछ खा-वा लेंगे
और क्या।
मैं हंस देता हूं और
प्यारी सी चपत
देते हुए
कहता हूं
शैतान।
सच्ची इन शैतानियों का भी एक अलग मजा है। (होटल वोटल,कुछ खा-वा लेंगे)इन शब्दों का संगीत दिल को सुकून देता है। अभी आया और इसे पढकर सारी थकान उतर गई। और हाँ ये आशी की बाईक कौन सी है। जिस पर यह होटल वोटल जाती है। बेहद सुन्दर और प्यारी लग रही है आशी। हमारी तरफ से एक चाकलेट दे दीजिऐगा। कुछ खा वा लेग़ी।
बस यही तो है
जीवन के सुख। ..jaan ke achha lga sach me jeevan me aise sukho ki bahut jaroorat hai...khoobsurat kavita.....
bilkul theek kaha aapne..
Kajal
वाह, आपने शब्दों को पंख लगा दिये!
अमिताभ जी आपकी कविता शैली क एक बड़ी खासियत मुझे लगी कि शुरू कि कुछ पंक्तियों मे ही कविता ऐसी उत्सुकता पैदा कर देती है कि हम साँस खत्म होने से पहले ही हम पूरी कविता पढ़ लेना चाहते हैं..ऐसा बाँध लेने वाला प्रवाह बेहतरीन कहानियों मे ही पाया जाता है
और इस पंक्ति ने तो पूरी कविता सार्थक कर दी
’यहां तक कि
मुझे भी कभी पता नहीं चलता कि
मैं "ऐसा कुछ चाह" रहा था ’
एक बार फिर बेहतरीन कविता के लिये बधाई
Maa-baap ke liye jahan to bachchon se hi shuru aur bachchon par hi khatam hota hai.Bitiya ko dher sara pyar.
amitabh ji kaun kehta hai ki bacche bacche hote hain?
मेरे लिये कुछ
खरीद वरीद लेना
कुछ खा-वा लेंगे
और क्या।
oye..... hoe......
so cute !!
chooooooo chweetttttt !!
aur khabardaar jo meri bhanji ko chapat lagai !!
वाकई इन्ही छोटी छोटी खुशिओं में
जीवन का सार तत्व छिपा है.....
साधारण से शब्दों में बहुत बड़ी बात....
...........अमरजीत कौंके
amitabhji
sukh ki jeevant pribhasha .
aapki is kvita ne beti ki kmi ka ahsas krva diya hai .
bhut pyarisi abhivykti .
bitiya ko bhut bhut ashirwad .
beti hansti hai to harsingar ke ful
jhdte hai .
beti roti hai to sari srshti bhigti hai .
वाह अमिताभ जी बहुत सुंदर लिखा है आपने और तस्वीर तो बहुत अच्छी लगी मासूमियत से भरपूर! बिल्कुल सही फ़रमाया आपने आखिर यही तो है सुख !
बिटियाँ
आंगन में
खिला चाँद
होती है ,
खिलखिलाहट उसकी
चांदनी होती है !
बिटियाँ
मेघा है ,
बिटियाँ ही
आंगन में महकी
सोंधी खुशबु है !
पापा के लिए
बिटियाँ
माँ का आंचल है ,
माँ द्वारा खिलया गया
निवाला है !
जिद जो पूरी
न हो सकी बचपन की
बिटियाँ ही तो
माध्यम है
जिद की पूर्ति की ---------!
मित्र ,
'सुख' में प्रस्तुत भावनाओ
के लिए मुझे मुनि क्षमासागर की निम्न पंक्तिया
माकूल जान पड़ती है -
"जब भी
कोई चिडिया
मेरे आसपास
अपना घर
बना लेती है ,
मैं गहरे आत्मविश्वास से
भर जाता हु ,
की मेरे प्रति
वह कितनी विश्वस्त है !
मुझे उसके विश्वास को
संबल देना है !"
-बच्चे भी मन के भावों को खूब समझते हैं..
-यही हैं छोटी छोटी खुशियाँ..जो जीवन में रंग भर देती हैं.
सुंदर कविता ... जीवन के छोटे-छोटे खुशी के क्षण
बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किए हैं, आपने ।
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