मंगलवार, 7 जुलाई 2009

फिर मुस्कुराने के लिये

आज गुरुपूर्णिमा है, अपने शब्द सुमन गुरु के चरणों मे अर्पित करता हूं.
साथ ही आप सबके गुरुओं को मेरा स-आदर चरण् स्पर्श।

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" जिनके चरणों मे झुका ये शीश है
पिता ही मेरे गुरु, मेरे ईश हैं,
है ये सौभाग्य मेरा कि मेरे
कदम-कदम उनके आशीष हैं.. "
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अब मेरी एक रचना-

"मुस्कुराते हुए
चेहरों के
नेपथ्य में जो
'खेल' रहे दर्द हैं
उनसे मेरी प्रियता है,
मैं इनके साथ
विचरता हूं, झूमता हूं
गाता हूं, जीता हूं।

इनके मौन प्रदेश में
गज़ब की विरानी है
सन्नाटा है।

यहां
सांय-सांय चल रही
हवाओं में घुली
गमगीन मदहोशी है,
तो निछ्चल-पावन-निरापद
गंगा की तरह बह रही
अश्रु सरिता है
जिसमें डुबकी लगा
मैं तर जाता हूं।

इस स्थल की भूमि
कठोर नहीं, बेहद उपजाऊ है
नरम,मुलायम,संवेदनशील।

यहां विरह अग्नि के
तमतमाते सूर्य से
ऊष्मा ले खिलने वाले
पुष्पों पर बैठ रहे
आस व प्रतिक्षा के
भौरों की गुनगुनाहट
ह्रदय के स्पन्दन को
थामे रखती है।

मैं प्रतिदिन इन दर्दों को
संवारता हूं, सजाता हूं
और तैयार करता हूं
दुनियाई मंच पर
पेश करने के लिये
एक के बाद एक
नाटक के मंचन के लिये
फिर मुस्कुराने के लिये। "

21 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!!

सभी गुरुओं को मेरा भी सादर चरण स्पर्श।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढिया अभिव्यक्ति। सभी गुरुजनों को प्रणाम हमारा...
आपका माता-पिता के प्रति प्रेम आपके प्रति आदर जगाता है।
यह सबमें होना चाहिए...इस खुली अभिव्यक्ति को नमन...
सस्नेह
अजित

deepak kumar chaubey ने कहा…

sarvapratham guru ji ko mera sadar charan sparsh.

Badhiya abhibyakti.

Dhanyawaad

Unknown ने कहा…

shri guruvai namah:

seema gupta ने कहा…

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर ये रचना पढ़ कर बेहद सकुन मिला आभार

regards

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बहुत बढ़िया ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अमिताभ जी........... आपकी पोस्ट का हमेशा ही इंतज़ार रहता है और उसमे मजा भी आता है............ दर्द को आपकी नज़रों ने ठीक पहचाना है........... हर चेहरे के peeche वो छिपा होता है और इस दर्द से ही संवेदनाये जन्म लेती हैं........... लाजवाब अभिव्यक्ति है आपकी........... आज गुरु पूर्णिमा के दिन नमन है, प्रणाम है हमारा भी गुरु के चरणों में

Vinay ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति

--
गुलाबी कोंपलें

Vinay ने कहा…

अमिताभ जी आपके ब्लॉग में जो नेवीगेशन बार गैप बन गया है उसे ठीक करने के लिए तकनीक दृष्टा पर यह पोस्ट पढ़ें: http://techprevue.blogspot.com/2009/04/correct-corrupted-blogger-header.html

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अमिताभ श्रीवास्तव जी!
सुन्दर रचना प्रकाशित करने के लिए आभार।
गुरुपूर्णिमा की बधाई!

Alpana Verma ने कहा…

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सभी गुरुओं को नमन.
अमिताभ जी,आप की कवितायेँ साहित्यिक महक लिए होती हैं..
शब्दों का मोहक समन्वय और भावों की बेहतरीन प्रस्तुति.

इस कविता में-
'निछ्चल-पावन-निरापद
गंगा की तरह बह रही
अश्रु सरिता है
जिसमें डुबकी लगा
मैं तर जाता हूं। '
--और--

'आस व प्रतिक्षा के
भौरों की गुनगुनाहट'

पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं.

आभार

पंकज श्रीवास्तव ने कहा…

priya Amitabhji,

aapki rachanaon ne mujhe blogging ke liye prerit kiya, bade hi bhavpoorna aur sargarbhit rachnayen hein,
gurupoornima per sabhi guruon ko sadar charan sparsh

पंकज श्रीवास्तव ने कहा…

priya Amitabhji,

aapki rachanaon ne mujhe blogging ke liye prerit kiya, bade hi bhavpoorna aur sargarbhit rachnayen hein,
gurupoornima per sabhi guruon ko sadar charan sparsh

सुशील छौक्कर ने कहा…

सभी गुरु जनों को मेरा भी प्रणाम। इस भागती जिदंगी में ये भी नही पता चला कि आज गुरु पूर्णिमा है। खैर आपने इस दिन एक बेहतरीन रचना लिख दी। जिदंगी सुख दुख की एक तराजू है। जब भी कोई ज्यादा होता है तो दिक्कत आती है। जो इंसान दर्द को मुस्कराते हुए सह जाए वो ....। एक अच्छी बेहतरीन रचना। शुरु की लाईनें मन को मोह लेती है।
मुस्कुराते हुए
चेहरों के
नेपथ्य में जो
'खेल' रहे दर्द हैं
उनसे मेरी प्रियता है,
मैं इनके साथ
विचरता हूं, झूमता हूं
गाता हूं, जीता हूं।

क्या कहूँ निशब्द हूँ। काश कि वो होते तो झट से बम्बई चला आता।
मैं प्रतिदिन इन दर्दों को
संवारता हूं, सजाता हूं
और तैयार करता हूं
दुनियाई मंच पर
पेश करने के लिये
एक के बाद एक
नाटक के मंचन के लिये
फिर मुस्कुराने के लिये।

क्या यहाँ "मैं" भगवान है। जैसे एक अच्छी पेटिग्स को पर कुछ नही कह पाता है देखने वाला बस देखता रहता है कुछ उसी तरह समझ लीजिए आपकी रचना को बस पढते रहने का मन करता है बस।

जयंत - समर शेष ने कहा…

Kyaa kahen??

Bas jaisaa Susheel ji ne kahaa...
woh sahi hai!!!

Behad sundar.

~Jayant

दर्पण साह ने कहा…

मैं प्रतिदिन इन दर्दों को
संवारता हूं, सजाता हूं
और तैयार करता हूं
दुनियाई मंच पर
पेश करने के लिये
एक के बाद एक
नाटक के मंचन के लिये
फिर मुस्कुराने के लिये। ....


pata nahi main is kavita ke itne gehre bhavon tak pahunch paaonga bhi ya nahi...

...par mujhe ek bangi "mera naam joker " ke "raj kapoor" ki yaad ho aie....


...bahut khoob///

(hamesha ki tarah...
)

ek request....

wo pitaji wali poem mujhe mail kar saket hain badi kripa hogi....

...Best Regards.

Apki lekhni ek aashique
Darpan Sah

शोभना चौरे ने कहा…

bhut hi achi kavita .
"मुस्कुराते हुए
चेहरों के
नेपथ्य में जो
'खेल' रहे दर्द हैं
उनसे मेरी प्रियता है,
bhut unchi soch aap achi tarh man ko pdhna jante hai .apne mata pita ke ashirwad se hi aapne prtibha pai hai .kavita ki hrek pankti bdi anubhuti ke sath rchi hai .
mataji pitaji ko sadar prnam.
apko shubhkamnaye.

गौतम राजऋषि ने कहा…

गुरू के लिये इस श्रद्धा भाव को नमन!

आपकी रचनाओं का इंतजार रहने लगा है अमिताभ जी।
अंतिम पंक्तियों ने मन को छुआ
"मैं प्रतिदिन इन दर्दों को
संवारता हूं, सजाता हूं
और तैयार करता हूं
दुनियाई मंच पर
पेश करने के लिये
एक के बाद एक
नाटक के मंचन के लिये
फिर मुस्कुराने के लिये"

कडुवासच ने कहा…

... सुन्दर रचना, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

Urmi ने कहा…

अमिताभ जी आपने गुरुपूर्णिमा के अवसर पर बहुत सुंदर रचना लिखा है! सभी गुरुओं को मेरा चरण स्पर्श! मुझे आपके पोस्ट का बड़ा बेसबरी से इंतज़ार रहता है! आपकी हर एक रचना इतनी अच्छी होती है और मुझे बहुत प्रेरित करती है! इस शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

hem pandey ने कहा…

आपकी कविता का सार आपके ही शब्दों में -

"मुस्कुराते हुए
चेहरों के
नेपथ्य में जो
'खेल' रहे दर्द हैं
उनसे मेरी प्रियता है,
मैं प्रतिदिन इन दर्दों को
संवारता हूं, सजाता हूं
और तैयार करता हूं
दुनियाई मंच पर
पेश करने के लिये
एक के बाद एक
नाटक के मंचन के लिये
फिर मुस्कुराने के लिये।