चारो और है
कणिका जगत /
ऊर्जा के अबेध कण /
कई कई ..,
मगर
सब आपस में
(जैसे - 'मै' -'तुम' द्वैत
मगर 'हम' अद्वैत )
कणिका जगत /
ऊर्जा के अबेध कण /
कई कई ..,
मगर
सब आपस में
लथ-पथ/
आश्चर्य ...
कि
द्वैत है और अद्वैत भी /
आश्चर्य ...
कि
द्वैत है और अद्वैत भी /
(जैसे - 'मै' -'तुम' द्वैत
मगर 'हम' अद्वैत )
3 टिप्पणियां:
बहुत ही मोहक
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
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