बहुत दिनों से लिखना नहीं हो पा रहा है। इधर रीवा से श्रद्धेय डॉ.पियुष श्रीवास्तव की एक शोध व बोधपरक पुस्तक "अनंत यात्रा, धर्म का विज्ञान" प्राप्त हुए कई दिन हो गये तथा उसे दो-तीन बार पढ भी लिया, किंतु उस पर कुछ लिखने की इच्छा मेरे कार्यों की व्यस्तताओं के कारणवश अधर में है। अपनी इच्छा को शब्द रूप देकर शीघ्र संपादित करुंगा ही, इसके पहले वर्ष 2001 में एक छोटी सी रचना लिखी थी जो डायरी पलटते हुए दिखी तो सोचा ब्लॉग पर चिटका दूं.., न जाने क्यूं मुझे इसकी पंक्तियां अच्छी लगी. ..हालांकि बहुत ही साधारण है मगर अपनी मुर्गी है सो अच्छी लगनी ही है...खैर
"अकेला नहीं
मगर
भीड में नहीं,
अस्तित्व अपना
अदना ही सही।
कुछ जानें
कुछ न जानें..
अपना यही
लेखा-बही।"
सपना, काँच या ज़िन्दगी ...
23 घंटे पहले
14 टिप्पणियां:
बहुत दिन बाद आपको पढना अच्छा लगा कितने ही व्यस्त हो एक आध ऐसी छोटो ही shi rachna jarur daliye .
yh lekha bahi bhut sntulit hai
छोटी सी कविता मगर भाव गहरे लिए है..सच ही तो है अपना लेखा बही अपना हिसाब किताब खुद को ही मालूम होता है..भीड़ में वैसे भी ये ही बस अपना होता है ..
अमिताभ जी बहुत अच्छी रचना है...मुर्गी आपकी है लेकिन कमाल की है...
नीरज
इतने दिन बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा छोटी है तो क्या कारगर बहुत है यहाँ तो हर एक भीड़ में भी अकेला ही है
अभिताभ जी पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपकी कविता और आपका अंदाज दोनों अच्छे लगे.अपना अस्तित्व ही हमें भीड़ से अलग बनाता है.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आइयेगा,आपका हार्दिक स्वागत है.
gagar mein sagar ....!
कम शब्दों में बहुत खूब कही। ऐसा लगता है जैसे मुझ पर ही कही।
कविता छोटी होने के बावजूद कथ्य के हिसाब से सम्पूर्ण है......
यह कविता आपको आछी लगी ठीक है.. मगर हमें बहुत अच्छी लगी
"अकेला नहीं
मगर
भीड में नहीं,
अस्तित्व अपना
वाह वाह .....
अमिताभ जी बहुत खूब .....
अपनी १०, १२ क्षणिकायें तुरंत हमें मेल कर दें अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ .....
हमें सरस्वती-सुमन पत्रिका में अतिथि संपादिका होने का गौरव मिला है जो क्षणिका विशेषां होगा ....
harkirathaqeer@gmail.com
अपना अस्तित्व बना रेक ... चाहे अकेले ही रहे ....
अमिताभ जी ... बहुत दिनों के बाद आपको ब्लॉग पे देख कर अछा लगा ... काम में व्यस्त रहें ये तो अच्छी बात है ...
बहुत खूबसूरत लाइने लिख डाली आपने...
अस्तित्व अपना
अदना ही सही।
कुछ जानें
कुछ न जानें..
अपना यही
लेखा-बही।"
सरल सम्प्रेषण है पर भाव बहुत गहरे....
आप मेरे ब्लॉग पर आये और सुन्दर सी टिपण्णी देकर आपने मुझे कृतार्थ किया,इसके लिए बहुत बहुत आभार.
एक बार फिर से आईये मेरे ब्लोग पर. मेरी ५ मई को जारी की गई पोस्ट आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है.
अमित जी आपने तो व्यस्तता बतलादी मगर मै तो बिजी विदाउट वर्क हो रहा हू।पुरानी पोस्ट देखी तब आपका नाम तलाश पाया । लंेखा बही अच्छा लगा । अकेले भी नहीं भीड में भी नहीं । भीड मे तो वैसे भी हरेक का अस्तित्व अदना सा हो ही जाता है
एक टिप्पणी भेजें