जिन्दगी-
ढेर सारे चिंतकों की किताबें
खुली हैं और पन्ने
फडफडा रहे हैं।
ग्लैडी टैबर की खिडकी
सनसनीखेज जिन्दगी को बयां करती है तो
मेसफिल्ड के लिये यह
शोरभरी गली में एक
लम्बे सिरदर्द का नाम है।
'किंग जोन' का लेखक
शेक्सपीयर मानता है
जिन्दगी उतनी ऊबाऊ होती है,
जितनी कोई दोबारा कही गई कहानी।
किंतु देखो
जिजीविषा..कि
यह है तो जीवन है, जीवन रहेगा तो
अनंत संभावनायें भी रहेंगी।
'अनामदास का पोथा' खुलता है मगर
उधर ह्यूगो ग्रोशिय मानो इसे नकारते हुए
लिखता है
मैने अपना जीवन परिश्रमपूर्वक
कुछ भी नहीं करते हुए गुजार दिया।
और एक मैं
जिन्दगी के ताने-बाने में उलझा
डरता हूं, तब और ज्यादा जब
टैगोर को पढता हूं कि
मृत्यु है, उस के होने पर भी जीवन नष्ट नहीं होता।
यानी फिर से जिन्दगी...???? उफ्फ।
बिमारी ... प्रेम की ...
1 हफ़्ते पहले
21 टिप्पणियां:
वाह ...बहुत सुन्दर ..इतने सारे लेखकों की बात के बाद ...फिर से एक ज़िंदगी ..
बहुत जबरदस्त....बेहतरीन!
सुबह सुबह आत्मा के एक हिस्से पे खरोंच डाली है अमिताभ जी...
हम तो एक बेहद आम इन्सां हैं....और ज़िन्दगी के बारे में सिर्फ अब तक इतना ही महसूस किया है..
'बे-तखल्लुस' हो जीस्त जैसी भी
मौत से तो बुरी नहीं होती..
हाँ,
अंतिम लाइने पढ़कर वो वाकया याद आ गया..जो कहीं बचपन में पढ़ा था...
वो ये कि जब भगत सिंह को फांसी पर चढाने के लिए जेलाधिकारी लेने आया तो वो बहुत डूब कर कोई किताब पढ़ रहे थे....जब उनसे कहा गया कि चलिए...आपका फांसी का समय हो गया है...तो उन्होंने किताब बंद करते समय वो पन्ना जिसे वो पढ़ रहे थे...एकदम सहजता से उसे कोने से मोड़कर बुकमार्क बना दिया...और बड़ी ही सहजता से फांसी पे झूलने के लिए उठ खड़े हुए...
मानो अभी वापस आकर दोबारा यहीं से पढ़ना शुरू करेंगे....
१०--१२ साल की उम्र में पढ़ा ये वाकया आज भी जिस्म में एक सनसनी पैदा करता है....
फिर से एक शानदार रचना। जिंद्गी की आपकी रचना पढकर एक कव्वाली याद हो आई। कव्वाली बैशक भूल जाऊं पर एक लाईन हमेशा याद रहती है " जो जिंदगी को समझा है वो जिंदगी पे रोता हैं...... आज जवानी पर इतराने वाले .....चढता सूरज धीरे धीरे ढलता है ढल जाऐगा। एक पोस्ट भी की थी इसी कव्वाली पर।
वैसे सोचते सोचते जिंदगी के बारें में मैं भी डर सा जाता हूँ। आखिर लाईने मेरी भी बात कहती है। आखिर के उस उफ्फ ने सच जान सी निकाल दी। क्या कहूँ .... वैसे शेक्सपीयर ये भी कहा है कि " जिदंगी किसी सिरफिरे की हांकी गई ऐसी गप्प है जिसमें फू-फां तो बहुत है मगर जिसका न कोई सिर है न पैर......
ओह ! बहुत ही ख़ूब .... तख़य्युल की परवाज़ .... बेहतरीन !!
बहुत सुन्दर रचना...
रक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
बहुत सुन्दर रचना...
रक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
Bandhu chalte raho buss...!
prathvi gol hai jaha se chale vahi aana hai..!
शुभकामनाये.....!
bhaiyya rakhi ki dhero shubhkaamnaayein..
Kajal
इतना सब लेखकों के बारे में लिखने के बाद एक सटीक बात कह दी किस अंदाज़ से...हतप्रभ हूँ आपकी निपुणता पर.
बहुत गहन अध्ययन और अनुभव के आधार पर ही" जिन्दगी "के बारे में यह कहा जा सकता है |
बहुत बहुत बहुतकुछ कहती है ये जिदगी .....
और एक मैं
जिन्दगी के ताने-बाने में उलझा
डरता हूं, तब और ज्यादा जब
टैगोर को पढता हूं कि
मृत्यु है, उस के होने पर भी जीवन नष्ट नहीं होता।
बहुत सुन्दर रचना...
रक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई
महात्मा नहीं...
कभी कभी लगता है जैसे मजबूरी का नाम.....ज़िन्दगी हो..
जीवन तो जीना ही है ... और अपने शास्त्रों अनुसार जीवन के बाद भी जीवन जीना है ... मुक्ति तक इससे छुटकारा पाना संभव कहाँ है ..... कभी कभी उबाउ और कभी कभी परिश्रम किए बिना .... पर जीवन तो जीना पढ़ता है ...
जीवन के प्रति कुछ निराशा का भाव नज़र आ रहा है ... आशा है सब ठीक होगा अमिताभ जी .....
ज़िन्दगी मेरा पसंदीदा शब्द है...जाने क्या -क्या लिख दिया गया है इस्पे और कितना अभी बाकी है.एक बार नहीं कई बार पढ़ी ये कविता आपकी बेहतरीन कविताओं में से एक है..
मनु जी की टिप्पणी हौंट करती है भगत सिंह वाली...ज़िन्दगी के लिए यही ज़ज्बा जरूरी है...
किंतु देखो
जिजीविषा..कि
यह है तो जीवन है, जीवन रहेगा तो
अनंत संभावनायें भी रहेंगी।
'अनामदास का पोथा' खुलता है मगर
उधर ह्यूगो ग्रोशिय मानो इसे नकारते हुए
लिखता है
मैने अपना जीवन परिश्रमपूर्वक
कुछ भी नहीं करते हुए गुजार दिया।
.....Gahre jiwant bhavon se paripurn rachna
वाह !अमिताभ जी...
बहुत सुन्दर !जबरदस्त....
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ज़िन्दगी ...मेरे घर आना.....आना जिंदगी ....
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जबरदस्त.... जिंदगानी है...
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