सोमवार, 9 अगस्त 2010

कशमकश



लगता है
अपनी ग्रेविटी खोये
ग्रह-नक्षत्रों ने
एटम बम की तरह
गिर-गिर कर
मेरी किस्मत को
चकनाचूर कर दिया है।
और दिमाग
किसी जापान की तरह
फिर उठने, किस्मत चमकाने,
संवरने की फिक़्र में
जुटा है।


इस जुटने में हो यह रहा है कि-

कभी-कभी दिल
हिटलर की तरह पेश आता है
और गान्धीवादी विचारधारा
उसके तमाम 'ब्लाकेज' को
क्लियर कर देती है।
यह जंग भी जारी है।

खून में लोहा है
और रगों में गुलामी से
लडने की ताक़त
शायद यही वजह है कि
अंग्रेजों की तरह
मेरे इन हालात ने
मुझे झौंक रखा है
एक नये विश्वयुद्ध में।

आज़ादी की सोच ने
हाथ-पैरों में गज़ब की
स्फूर्ति ला खडी की है
जो सुध-बुध खोकर
भिडे पडे हैं,
मगर अफसोस
इरविन-गांधी के बीच की सन्धि
दिमाग द्वारा दिल को
हमेशा परास्त कर दिया करती है।

देखिये इन फेफडों को
जो गोले-बारूद की गन्ध
के बावजूद सीने को
ताने रखने के भरसक प्रयास में हैं।
और अपने पीछे
रखे गये दिल को बचाने की
खातिर
किसी 'अस्थालिन' के 'पफ' से
सांसों को रास्ता दे रहे हैं।
आखिर कब तक
कृत्रिम रासायनिक हवा से
सांसो को काबू में रखा जा सकता है?

यूं तो खडे कर चुका हूं
अपनी उम्मीदों के
बडे बडे रडार,
जो दुश्मन की हर चाल
का पता लगाते हैं।
मगर अपने ही लोगों का
खिलाफत आन्दोलन
हर-हमेश ले डूबता है मुझे।
फिर भी
सागर की गहराई में किसी
डिस्कवरी चैनल की तरह
कैमरों से खोज करता हूं
उम्मीद का कोई
अजीबो-गरीब जलचर।

आखिर जापान की तरह
खत्म होकर जिन्दा होने की
कशमकश जो है।

13 टिप्‍पणियां:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

बाऊ जी,
नमस्ते!
तो आप हिस्ट्री के भी ज्ञाता हैं!
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना! (जितनी समझ में आयी)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

विज्ञानं , चिकित्सा , इतिहास , राजनीति --सब कुछ उंडेल दिया आपने इस अद्भुत रचना में ।
बहुत बढ़िया विचारों की प्रस्तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यह तो बहुत ज़बरदस्त कशमकश है....

Parul kanani ने कहा…

bahut hi alag..bahut hatkar likha hai..likhne mein tajgi hai..its amazing :)

रचना दीक्षित ने कहा…

कैमरों से खोज करता हूं
उम्मीद का कोई
अजीबो-गरीब जलचर।

आखिर जापान की तरह
खत्म होकर जिन्दा होने की
कशमकश जो है।

अद्भुत रचना
सही कश्म कश है

Alpana Verma ने कहा…

इस कशमकश के परिणाम में जो भी बदलाव हों वे अनुकूल हों बस यही शुभकामनाएं हैं.
'दिमाग द्वारा दिल को
हमेशा परास्त कर दिया करती है।'
--------
आखिर जापान की तरह
खत्म होकर जिन्दा होने की
कशमकश जो है।
-आज़ादी की सोच भर से भी स्फूर्ति मिलती ही है..
*कविता में मन की कशमकश को कुछ नए बिम्बों की सहायता से बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति दी है .

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सर्वविषय संपन्‍न कविता। एक नया इतिहास बनाएगी। विज्ञान के छात्रों को, इतिहास के संग, डॉक्‍टरों को भाएगी और इंसानियत नीति की रीति को सुखद बनाएगी।

Deepak chaubey ने कहा…

आखिर जापान की तरह
खत्म होकर जिन्दा होने की
कशमकश जो है।

शोभना चौरे ने कहा…

इतिहास ,भूगोल और बिज्ञान के साथ गुंथी ताजे फूलो की माला बहुत सुन्दर लगी |सारे साथ रहेंगे तो कशमकश तो होगी ही फिर उससे निकलने का रास्ता भी तो उचित ही है |
बढ़िया सशक्त प्रस्तुती \

Nipun Pandey ने कहा…

अमिताभ जी ,
सचमुच ये कैसी कशमकश है ...हम सब के साथ ..सच को .झुठला के खुश क्यूँ रहते हैं ना जाने :(

manu ने कहा…

किसी 'अस्थालिन' के 'पफ' से
सांसों को रास्ता दे रहे हैं।
आखिर कब तक
कृत्रिम रासायनिक हवा से
सांसो को काबू में रखा जा सकता है?



परेशान करती कविता...
बल्कि घबराहट पैदा करती हुई...
वैसी ही...जैसे अभी दर्पण के ब्लॉग पर कल ताजा पोस्ट पढ़ कर हुई थी...

manu ने कहा…

किसी 'अस्थालिन' के 'पफ' से
सांसों को रास्ता दे रहे हैं।
आखिर कब तक
कृत्रिम रासायनिक हवा से
सांसो को काबू में रखा जा सकता है?



परेशान करती कविता...
बल्कि घबराहट पैदा करती हुई...
वैसी ही...जैसे अभी दर्पण के ब्लॉग पर कल ताजा पोस्ट पढ़ कर हुई थी...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आखिर जापान की तरह
खत्म होकर जिन्दा होने की
कशमकश जो है ..

आज़ादी के ६३ वर्षों की कशमकश ..... ताज़ा हालात .... दुनिया की वर्तमान दिशा ... दिमाग़ में उठता बवंडर अक्सर ऐसे ख्यालों की जन्म देता है ... हताशा अजीब तरह की मनोस्थिति पैदा करती है जो कभी आग लगाना चाहता है कभी दुब्का रहता है ...
पर अंत में जिंदा रहने की कशमकश ही ज़रूरी है ... ये इच्छा ही कुछ कर गुज़रने की शक्ति देती है ....
बहुत प्रभावी रचना अमिताभ जी .... कुछ व्यक्तिगत मजबूरियों के चलते देरी से आने की माफी चाहता हूँ ....