बुधवार, 25 नवंबर 2009

वाह क्या विडम्बना है



मेरे दफ्तर पहुंचने से पहले ही वो वहां मौज़ूद था। मुझसे एकाध इंच लम्बा यानी वो होगा कोई 6 फिट 1 या 2 इंच का। गठीला बदन। साफ झलकता था कि कोई स्पोर्ट परसन है। हंसता हुआ चेहरा, उसकी मुस्कान में एक अलग ही शान थी,अपनत्व का भाव था, जिसने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया था। मुझे देखते ही उठा और गर्मजोशी से हाथ मिलाया। माय सेल्फ फारूख दिनशा..। मैने अपनी पास वाली कुर्सी पर उसे बैठने का इशारा करते हुए औपचारिक भाव से कहा, सोरी फारूख, मुझे आने मे लेट हो गया, आपको इंतजार करना पडा होगा... आईये, बैठिये और बताईये क्या बात है? वो हंसते हुए बैठ गया और कहने लगा- अमिताभजी, आपका नाम बहुत सुना है, आपसे मिलना था इसलिये आ गया.., वैसे आपसे मिलकर ऐसा लग रहा है कि अमिताभ बच्चन से मिल लिया..., और जोर से हंसने लगा। मैं भी मुसकुरा दिया उसकी बालसुलभ हंसी पर। मेने कहा- इस बात पर चाय हो जाये? उसने कहा- श्योर। यह बात होगी कोई 1995-96 की।
मार्शल आर्ट का विख्यात खिलाडी, बेहतरीन प्रशिक्षक, उम्दा खेल लेखक। अपनी नई पुस्तक के विमोचन का आमंत्रण देने आया था वो। साथ ही उसने बताया कि मार्शल आर्ट को लेकर उसने कितना कुछ किया है और कर रहा है। बच्चों से लेकर आर्मी के जवानो तक वो अपनी प्रतिभा का पूरा पूरा उपयोग करते हुए लोगों को जीवन जीना सिखा रहा था , आत्मरक्षा की कलाये सिखा रहा था, उनमें आगे बढने, लक्ष्य पाने की राह दिखा रहा था। हालांकि मैं किसी से इतनी जल्दी प्रभावित नहीं होता लिहाज़ा उससे उसके कार्यों के सन्दर्भ में पूछता रहा और सवालों के जवाब पाता रहा। शायद उसके विषय में मेरी इतनी रुचि, ज्ञान, गम्भीरता को देखते हुए वो मुझसे प्रभावित हो गया। कह उठा- ओह ग्रेट। यू आर रियली प्योर..। मैं हंस पडा..मैने कहा- ऐसी बात नहीं है, दरअसल मैं भी थोडा बहुत जानता हूं जूडो-कराटे..., हो सकता है कि इस वजह से आपसे पूछता चला गया। खैर उस मुलाकात के बाद फोन पर बातें, उसके कार्यक्रमों में मुलाकातों ने हमे करीब ला दिया। एक दोस्ताना रिश्ता बन गया जिसमें कोई स्वार्थ नहीं दिखा। मैं उसके किसी प्रोग्राम में नहीं जा पाता तो फोन पर नाराजगी जाहिर करता, पहुंच जाता तो इतना खुश हो जाता मानो मुख्य अतिथि ही पहुंच गया हो। इंतजार, मुलाकात, फोन पर बातचीत आदि हमारी दोस्ती में नये अध्याय जोडते गये। मेरी किसी बात को वो टालता नहीं, स्मृतियां बनती गईं। मैं कुछ व्यस्त हुआ तो मिलना जुलना कम हो गया, वो भी अपने कार्यों में व्यस्त किंतु न वो भूला न मैं। यदा कदा फोन और किसी कार्यक्र्म में बुलावा। उसका समर्पणभाव, किसी के लिये कुछ करने की ललक और हमेशा उपलब्ध रहने की आदत उसके इंसान होने का जीता जागता उदाहरण था। मेरी बच्ची को मैं सिखाना चाहता था मार्शल आर्ट, इसके लिये उसने कह दिया था- अमिताभ घर भिजवा दूंगा सिखाने वाला, मुझे बस कहभर देना कि कब शुरू करना है। किंतु ऐसा हो नहीं सका। हां वर्ष 2003-04 में मुझसे मेरी एक कलिग ने ऐसी इच्छा जाहिर की और मैने फारूख को फोन मिला दिया। कोई 3-4 साल बाद मैं उसे फोन कर रहा था। उसने प्रसन्नता से कहा- भेज दो उसे। मैने अपनी कलिग से कहा- देखो वो बहुत महंगा प्रशिक्षक है , पूछ लेना कितनी फीस वगेरह है। उसने पूछा, और जवाब में उसे मिला 'अमिताभ से कह देना आइन्दा ऐसी बात वो सोचे भी नहीं।' जिन्दादिली का दूसरा नाम था फारूख, मैं अपनी किस्मत पर खुश रहता कि इतना बेहतरीन इंसान मेरा दोस्त है। 27 नवम्बर 2008 को कोई एक बडा सा कार्यक्रम था स्पोर्ट का, मुझे उसमें आतिथ्य के लिये अपने परिचित कुछ बडे खिलाडी आमंत्रित करने थे। मैं लिस्ट बना रहा था जिसमें फारूख का नाम पहले नम्बर पर था। सोचा फारूख कभी मना नहीं कर सकता, सो पहले दूसरों को बुला लूं उसे 26 की रात फोन कर तय कर लूंगा। किंतु 26 को तो इधर आतंकी घटना घटित हो गई और सबकुछ उलट-पलट सा गया। कार्यक्रम स्थगित हो चुका था। किंतु फारूख की याद आ रही थी। और यकीन मानिये जब 29 तारीख को फोन किया तो वो बन्द। लैंड लाईन एंगेज़। ऐसा पहली बार हो रहा था। और शायद अंतिम बार भी। क्योंकि फारूख......।
26 की शाम अपने दोस्त के साथ ओबेराय में खाना खाने गया था वो। दोस्त को बचाने और एके 47 से दागी जा रही आतंकी द्वारा गोलियों को वो अपने सीने पर झेल गया। यह 30 नवम्बर को पता चला। अच्छा होता कि पता ही नहीं चलता...। अब तक वो मुझे बुलाता रहा था, मगर जब मेरी बारी आई तो...,उसने उसके फोन के 'स्वीच आन' का इंतजार मुझे थमा दिया। ऐसा इंतजार..जो कभी पूरा नहीं होना है...।
कुछ ऐसा ही इंतजार उन सब का भी होगा जिनके बेटे, मित्र, भाई, पति, पत्नी, बच्चे इस हमले के शिकार हुए..। होते रहते हैं...। और हम हमेशा बरसिया मनाते रहते हैं..सालों से बरसियां मनाई जा रही हैं, नई-नई बरसी आ जाती है और हम मनाते जा रहे हैं,मनाना खत्म नहीं होता..। वाह क्या विडम्बना है।

13 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत ही दर्दनाक वाक़या.
आपके दुख को समझ सकते हैं, ऐसा दोस्त खोने पर.
फ़ारूख़ की जिंदादिली को सलाम. .

अपूर्व ने कहा…

क्या कहूँ...!!
इतने जिंदादिल इंसान और आपके अजीज दोस्त के लिये एक शब्दहीन श्रद्धांजलि....बस!!!

कडुवासच ने कहा…

... ni:shabd !!!!!!!

seema gupta ने कहा…

बेहद ही दुखद....मन भर आया हमारी भी श्रद्धांजलि

regards

सुशील छौक्कर ने कहा…

अमिताभ जी कुछ इंसान शान से आते है और शान से चले जाते है। दूसरों को लड़ने के गुर सिखाते सिखाते एक दिन यूँ चला जाऐगा सोचा ना था जैसे फारुख भाई गए.... अब उस मोबाईल से वो जिंदादिल आवाज नही आऐगी। पर जब आप उस गली से गुजरेंगे तो लगेगा जैसे कोई पीछे से आवाज लगा रहा है.....
पर कभी कभी सोचता हूँ कि हम इन हादसों से कुछ सबक क्यों नही ले पाते है। एक के बाद दूसरा हादसा। भाषण बाजी खूब होती है पर जमीन पर कुछ नजर नही आता है। आज भी आदमी भगवान भरोसे ही घर से निकलता है....

Pratik Maheshwari ने कहा…

दुर्लभ दोस्त इतनी आसानी से खो जाते हैं.. इसका एहसास उसके खोने पर ही होता है..
सही ही कहा है - कल हो ना हो...

बहुत ही दुखद पर प्रेरणादायक वाकया.. आशा करता हूँ की इसे पढ़कर सब आज के लिए जीना सीख लेंगे...

आभार
प्रतीक

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

...
फ़ारूख़ के लिये एक श्रद्धांजलि.....

"अर्श" ने कहा…

amitabh ji dost khone ka gam samajh sakta hun... naman unko mere taraf se...



arsh

kishore ghildiyal ने कहा…

behad dukhad

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अमिताभ जी ... २६ नवम्बर के दिल दहलाने वाले वाकये को फारूक जैसे दोस्त कि याद में आपने जीवित रखा है .... ऐसे जिंदादिल लोगों कि यादें कभी भुलाई नहीं जा सकती हैं ,..... उस दिन न जाने कितने लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया .... आपने अपने दर्द को आज साझा किया है उन सभी के दर्द के साथ ........... आतंकवाद जब आता है तो आंधी कि तरह सब कुछ तहस नाहर कर जाता है ....... आपके दुख को समझ सकते हैं हम ..... भुलाना आसान नहीं है ......

शोभना चौरे ने कहा…

आँखे भीग गई दुखद संस्मरण पढ़ते पढ़ते|कुछ लोग अपने पन की मिसाले छोड़ जाते है |
ईश्वर उनकी इस क़ुरबानी से लोगो को सद्बुद्धि प्रदान करे |आपके इस परम प्रिय मित्र को खोने के दुःख में हम आपके साथ है |

Urmi ने कहा…

अमिताभ जी मैं बहुत अच्छी तरह से आपका दुःख समझ सकती हूँ! बहुत ही दुःख हुआ पढ़कर! इतने अच्छे और जिंदादिली इंसान की कमी को सिर्फ़ एक दोस्त ही समझ सकता है और एक सच्चा दोस्त खोने का गम बहुत ही गहरा होता है ! आपके अजीज़ दोस्त के लिए मेरी श्रधांजलि!

अपूर्व ने कहा…

अमिताभ जी..रहा नही गया तो सच बताने आया हूँ आपको..आपकी इस पोस्ट की विडम्बना की यह ’वाह’ एक थप्पड़ बन कर अभी तक गाल पे चिपकी है..कि सुबह उठ कर आइने मे सबसे पहले यही पाँच उँगलियाँ ही दिखायी देती हैं..विचलित हो गया हूँ इन श्रद्धांजलियों पर वाह कह कह कर....