किसी भी कलाकार का चले जाना कला क्षेत्र की क्षति है. कलाकार का न तो कोई देश होता है, न धर्म और न ही वो किसी जाति विशेष मे बन्धा होता है. वो होता है तो सिर्फ एक कलाकार होता है, लोग उसे सिर्फ कला के नाम से जानते हैं. इसलिये पिछ्ले दिनो जब मायकल जैक्सन का निधन हुआ तो एक अभूतपूर्व कला का भी अंत हो गया. अब उसकी कला बिखरी रहेगी किंतु वो नही होगा. यही कलाकार की पूंजी होती है कि उसके बाद भी उसका नाम अमर रहे. मै पक्का भरतीय हूं और इसीलिये कला प्रेमी भी हूं. मुझे मायकल का गुजर जाना व्यथित कर गया, क्योकि वो मेरे कालेज जमाने का हीरो रहा था. मुझे उसके हाल के विवाद और उसकी जीवनशैली से कोई मतलब नही, मुझे तो मतलब है उसकी कला से. मायकल जैक्सन का मेरे लिये मतलब है 'ब्रेक डांस',और गीत- संगीत का बेताज बादशाह.
बात बहुत पुरानी है, जब मै कालेज का छात्र हुआ करता था. उन दिनो हमारा शहर आधुनिकता मे बहुत पीछे था, पास ही इन्दोर जैसा बडा शहर जरूर था किंतु हमारे शहर मे उसकी हवा बहुत बाद मे पहुचती थी. मुझे फैशन भाती थी, कुछ नया करने व करते रहने की धुन बलवती रही. मै जानता हू उन दिनो घर की माली हालत. ऐसे मे मैरे शौक पूरे होना सम्भव नही थे, मुझसे बडे भाईसाहब की नौकरी जब मुम्बई मे लगी तो उनके माध्यम से मेरे पहनावे इत्यादि के शौक भी पूरे होने लगे.यानी मुम्बइया होने लगे. घर मे यदि फैशन आई तो सिर्फ मेरी ही वजह से, और ये भी यकीन के साथ कह सकता हूं कि शहर मे भी मै ही नई फैशन लाया था. दरअसल सिर्फ पहनावे से ही नही बल्कि मुझे हमेशा से ही आकर्षक दिखने की ललक रही थी, और इसके लिये मै खुद ही कुछ न कुछ ऐसा किया करता था कि वो सबसे अलग हो. उन दिनो फेशन का एक्मात्र स्त्रोत सिनेमा हुआ करता था, जबकी सिनेमा ने मुझे कभी अपनी ओर लुभाया नही. आज भी फिल्म से बहुत दूर हूं, हीरो-हीरोइने मुझे आकर्षित नही करते, फिर भी पता नही क्यों मेरे अन्दर अच्छा दिखने की ललक रही थी. खैर.. 'हिप्पी पना' न पिताजी को अच्छा लगता था न मां को. पर इतना जरूर कहूंगा कि मुझे कभी किसी ने रोका नही, शायद मै बहुत लाड का रहा. मेरे शहर मे उन इक्के दुक्के लोगो मे मै भी शरीक था जिन्हे बेहतरीन फेशनेबल कहा जाता था. दोनो भाई मेरे लिये मै जैसी मांग करता, वैसे परिधान लेकर आते,, 'ज़िंस' का शौकीन था, आज भी हूं, आज हालत ये है कि 'ज़िंस' पैंट के अलावा मुझे दूसरा कोई कपडा अच्छा नही लगता. किंतु तब 'ज़िंस' पैंट पहनना या खरीदना कठिन था. बावजूद इसके एक दिन जब पिताजी ने किसी व्यक्ति के माध्यम से 'जिंस' का कपडा बुलवाया तो मुझे हैरत हुई थी. मैरे लिये पिताजी की और से 'जिंस'?? वो पहला 'जिंस' का पैंट था, जिसे अपने मित्र बने टेलर से सिलवाया था, टेलर भी मुझसे खुश रहता क्योकि मै उससे अपने अन्दाज़ मे कपडे सिलवाता फिर वो उसी अन्दाज़ के ओरों को सिल के देता. बहरहाल वो जिंस का पैंट मेरे लिये बहुत कीमती था. कालेज मे मेरा जिंस पहनना भी एक अलग ही शान थी. शौको मे फेशन ही नही गीत-संगीत भी था. खेलकूद तो मुझे मानो विरासत से मिला ही था. मैं सोचता हूं यदि शहर पिछ्डा हुआ नही होता तो उन्नति के नाम पर बहुत कुछ पा जाता. विशेषतौर पर मेरे बडे भाई, जो टेनिस और टेबल-टेनिस के उन दिनो राज्य के बेहतरीन खिलाडी हुआ करते थे. खैर... बांसूरी बजाना, सिंथेसाईज़र बजाना मेरे शौक थे और ये शौक पूरा करते थे मेरे मुम्बई वाले भाई साहब. तब एक दिन मुझे ज्ञात हुआ कि कोई मायकल जैक्सन नामक प्राणी भी है जो गाता और नाचता जबरदस्त है. बस फिर क्या था, मुम्बई वाले भाईसाहब से पूछा, और उन्होने मुझे जैक्सन की कुछ किताबे व कैसेट भिजवा दी. तब मेने जाना जैक्सन को. फिर क्या था, मेरे शहर मे जैक्सन और उसका ब्रेक डांस अपने दोस्तो के माध्यम से फैलने लगा. मै उसकी दो कैसेट 'बेड' और 'थ्रीलर' बजाता, डांस करता. यकीन मानिये कुछ स्टेप तो मै बहुत ही जानदार करने लगा था. पर ये सब अपने घर मे पता नही चलने दिया था, क्योकि डर था कि डांट पडेगी. हमारे शहर मे विशेष दिन जैसे गणेश उत्सव, नवरात्रि आदि पर खूब कर्यक्रम होते थे, कालेज के गेदरिंग तो थे ही, जिनमे मेरा हिस्सा लेना जरूरी होता था. इधर ब्रेक डांस जैसी नई विधा से शहर अभी परिचित नही हुआ था. एमपीईबी मे ऐसे ही एक उत्सव मे सांस्क्रतिक कार्यक्रम था, मुझे याद है मै उस दिन बीमार था, घर पर आराम कर रहा था, एक दोस्त ने मुझे बताया कि अमिताभ् तुम्हे वहां डांस करना है और वो भी तुम्हरा नया डांस.. मै मना नही कर पाया. शाम हुई, रात आठ बजे से कार्यक्रम शुरू होना था. इधर मुझे किसी भी तरह जाना था, मगर बुखार ने रोक रखा था. फिर भी ठीक होने, अच्छा लगने का झूठ बोल कर थोडा बाहर घूम आने की इच्छा मां से व्यक्त की. जवाब मे 'ना' ही था. दीदी को पटाया.और किसी तरह एक झोले मे जिंस पैंट, टी शर्ट, कमीज़ डाल कर भाग निकला सीधे एमपीईबी. ऐलान हुआ. मै जल्दी तैयार होकर स्टेज़ पर जा पहुंचा. कैसेट थ्रीलर की थी, जिसका कोई गाना जिसमे म्यूजिक ज्यादा था, बजना शुरू और मैरा थिरकना भी. तालियो की आवाज़ से मेरा बुखार हवा हो चुका था. जब डांस खत्म हुआ तो ' एक बार और, एक बार और की आवाज़े कानो मे पड रही थी..किंतु मुझे तो जल्दी घर भागना था अन्यथा डांट मिलती. मै घर पहुच गया था. सोचा मम्मी-पापा को पता नही चला है. वाकई पता नही था. वो तो दूसरे दिन पापा को शहर मे फैली मेरे डांस की चर्चा से ज्ञात हुआ. इधर मेरे दोस्त ने बताया था कि तूने बहुत अच्छा डांस कर दिया भाई..पर मुझे भय था कि पापा को पता चल गया होगा और अब डांट के लिये तैयार हो जाऊं. पर जब पिताजी घर आये तो कुछ नही बोले..मुझे लगा उन्हे पता नही चला है. मायकल जैक्सन की बुक उठा कर उन्होने मुझसे इतना ही कहा कि पढाई भी जरूरी होती है.
कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि मायकल जैक्सन का बुखार तब से मुझ पर था, किंतु बाद के दिनो मे समय बदला, नौकरी की आपाधापी और भागादौडी ने मैरे तमाम शौको पर स्वतः ही ज़ंज़ीरे जकडना शुरू कर दी, और समय की रेत मे मेरा वो अलमस्त जीवन भी दबता रहा. मुम्बई आ गया, परिवेष बदला, भाषा बदली..रहन-सहन बदला. सोचने- समझने की शक़्ल बदली. गम्भीरता ने उस काल के उत्साह को हरा दिया. मै अपने कार्यो मे व्यस्त हो गया. पत्रकारिता के संघर्ष मे खुद को झोंक दिया. क्योकि यही जरूरी था. गाना-बजाना-नाचना सब बंद. एक अलग 'अमिताभ' बन गया.
मुझे पता चला कि शिवसेना मायकल जैक्सन को मुम्बई आमंत्रित कर रही है। बस उसे देखने-मिलने की इच्छा और उसके होने की याद 6 सालो बाद फिर कुलाचे मारने लगी. 30 अक्टूबर 1996 का वो दिन था, जब मेरा हीरो मुम्बई मे मुझे साक्शात दिखने वाला था. वो आया. मैने देखा, मिला. और मह्सूस किया कि आज भी अपने शहरवासियो से पहले उसे मेने देखा, जिसके नाम से मै चर्चित हुआ था कभी. दुनिया को जिसने अपने गीत संगीत से झूमने पर मज़बूर कर दिया हो ऐसा व्यक्ति साधारण तो हो नही सकता॥सचमुच जैक्सन साधारण नही था. उसका महज़ 50 वर्ष की आयु मे चला जाना मुझे अटपटा सा लग रहा है. मै जानता हूं मेरी तरह इस देश मे भी कितने होंगे जिन्हे जैक्सन भाता होगा..../ ऐसे जादूगर को कौन भूला सकता है.
बिमारी ... प्रेम की ...
1 हफ़्ते पहले
24 टिप्पणियां:
सच माईकल जादूगर थे डाँस के। और लोग उनके दीवाने थे। एक दीवाने से इस पोस्ट में मिल लिया। आपके कई पहलू आज इस पोस्ट के जरिए जान पाया। पर एक बात कल से बैचेन कर रही है कि एक इंसान शुरु में क्या था फिर क्या हुआ और अब क्या हुआ। एक जिदंगी में इतने सारे पडाव। कल से यही बात सोच रहा हूँ। खैर एक अच्छी यादगार पोस्ट एक दीवाने की।
मै तो जानता ही हू आपको, बेहत्रीन व्यक्तित्व वाला एक चेहरा, खास चेहरा.
मायकल भाई के हम भी दीवाने रहे है, आपकी वजह से ही कहिये. उम्र का दौर होता है, जिसमे हमे ढलना पडता है.../ ये ढ्लान हर पडाव दिखाती है...आप माहीर है, अपने पडावो को व्यक्त करने मे. उन्नति सिर्फ बडी पोस्ट, खूब पैसा ही तो नही होती, उन्नति अलमस्त जीवन जीना ही है. आपने उन्नति की है..जी कर .
माइकल जैक्सन के साथ साथ आपकी ज़िन्दगी से जुडी हुई कुछ बाते भी जानने को मिली जिसे पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,आप बहुत अच्छा लिखते है ,मेरे ब्लॉग पे आये और मैं यह रचना पढ़ पाई,इसके लिए आपको धन्यवाद .
MJ के बारे में क्या कहूँ, उनका संगीत करियर बहुत शानदार था।
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विज्ञान चर्चा
सच कहा माईकल jeksan daans के जादूगर थे और poori दुनिया में लोग उनके दीवाने थे, इतनी choti umr में जाना इस duniyaa को जरूर akhregaa और ये बात भी सच है की ऐसे लोग virle ही होते हैं.........आपने aapna raaj भी khola है इस पोस्ट के जरिए मजा आया आपको kareeb से जान कर.......................
अमिताभजी
आपका ये रूप बहुत ही पसंद आया |साहित्य की गहन अभिव्यक्ति रखने वालो की न्रत्य आदि में रूचि कम ही होती है |परन्तु हर चीज समय के साथ अपना महत्व रखती है |जब माइकल जेक्सन का प्रभाव था वो भी उम्र का महत्वपूर्ण पडाव था |
ये भी सही है की हम मध्यम वर्गीय परिवारों को उस जमाने में कम ही अवसर मिलते थे अपनी प्रतिभा को दर्शाने के लिए वो सिर्फ़ अपने शहरों तक ही सिमित रहती |मेरे बेटो को भी डांस का बहुत शोक था और करते भी अच्छा थे है एक अदद नौकरी के लिए वो सब पीछे छुट गया फ़िर पारिवारिक बंधन भी होते है तब डांस करने वालो को अच्छी नज़र से नही देखा जाता था |गणेशोत्सव तक ठीक था |जिस जमाने का अपने जिक्र किया है उस जमाने में मै भी iअपनी बहनों को को मुंबई से फिशनयके कपडे भेजती थी खंडवा में |आपकी यह पोस्ट अपनी सी लगी |
और मठ की शान्ति मेरे अपने जीवन और घर में भी रखने का प्रयास करती हुँ क्योकि मै ज्यादा कही जाती नही ओर कभी भी जिस शहर में जाती हुँ तो रामक्रष्ण मिशन ही सबसे पहले जाती हुँ |
धन्यवाद
एक अभूतपूर्व कला का भी अंत हो गया. अब उसकी कला बिखरी रहेगी किंतु वो नही होगा. यही कलाकार की पूंजी होती है
ऐसे जादूगर को कौन भूला सकता है.
सत्य वचन .
भावपूर्ण लेख पर हार्दिक आभार .
चन्द्र मोहन गुप्त
माइकल को एक अच्छी श्रद्धांजलि है।
मइकेल जैक्सन को श्रधांजलि अर्पित करती हूँ! मैं तो बहुत बड़ी फेन थी जैक्सन की और उनका अचानक इस तरह से चले जाना काफी आश्चर्य लगा! उनके जैसे गाना और बेहतरीन ब्रेक डांस करना फिर से कोई नहीं मिलेगा!
समय की रेत मे मेरा वो अलमस्त जीवन भी दबता रहा. .. गम्भीरता ने उस काल के उत्साह को हरा दिया.'
यही होता है...फिर भी मन के किसी कोने में वह उत्साह दबा रहता है...
माइकल जेक्सन एक असाधारण व्यक्तित्व वाला कलाकार था.भावभीनी श्रद्धांजलि
आपकी तरह माइकल के हम भी दीवाने हैं...all i wanna say is that they dont really care about us-मेरा सर्वकालिन फेवरिट नंबर और स्टेज पर इसके बीट्स पर हमने भी कदम थिरकाये हैं माइकल को कापी करने के प्रयास में...
dance-floor is never going to be the same!!!!!!!!!
MJ ki zindagi aur maut dono hi is baat ki aur ishara karti hai ki sitaron ki zindagi kitni khokhali aur tanha hoti hai.
माइकल की मृत्यु सचमुच में कला जगत के लोगो के लिए एक सदमें से भरा है । दुनिया में संगीत की छाप छोड़नेवाला कलाकार एक दिन इस तरह आंखे मूद लेगा शायद किसी को पता नही था । लेकिन एक सवाल बार-बार जेहन में आता है कि आखिर जैक्सन की मृत्यु किस तरह हुई । आखिर इसके पीछे का राज खुलना ही चाहिए । धन्यवाद
मुझसे कहते हो ,
जो बीत गया सो बीत गया ,
पर खुद किसी बहाने से ही ,
मस्त यादें कालेज की दोहराते हो ||
अभी तो यादें दोहराते हो कालेज की ,
क्यूँ की उम्र है अभी बयालीस की ,
आगे रह रह दोहराओगे यादें बचपन की ,
जब गुजरेगी उम्र पॉँच ऊपर पचपन की ||
खैर यह तो परिचय का अदान-प्रदान था , कबीरा पर टिप्पणी की शैली पसंद आई | आगमन का धन्यवाद |
कुछ भी कहें अपनी विधा का नायब रत्न था माइकल जैक्सन | अभी तो उसके क्षेत्र का कोई भी उभरता नाम ऐसा नहीं सुनाई देता है जो उसकी कला के के इतना निकट पहुंचा हो कि लगे कि ' वह ' माईकल जैक्सन के शून्य को भर पायेगा | क्या है कोई ऐसा ? हर एक का अपना-अपना युग होता है ; एल्विस का भी था और अभी भी उसका क्रेज ख़त्म नहीं है | इन्सान मरता है, कलाएं और कलाकार नहीं !?
smeeksha ke sandrbh me alochak ki bhumika hi mhtvpurn hoti hai aur rchnakar ke liye acha marg darshan hota hai lekhn ke liye .toaap apni bhumika nibhaiye aur hme marg darhan dijiye .
dhnywad
माइकल जक्सन "द मून वाकर" को आपके
ज़रिये और जानना अच्छा लगा और ख़ास तौर
पर माइकल के ज़रिय्र आपको जानना और भी रोचक रहा
आपका कला-प्रेम सराहनीय है
---मुफलिस---
अमिताभ जी,
माइकल जाक्सन की जगह अगले सौ वर्षो तक खाली ही रहेगी, वो क्या थे , कैसे थे इन सारे प्रश्नों का उत्तर भी गूगल में मिल ही जायेगा लेकिन आप क्या थे और अब क्या है यह हमें आपके लेख से ही पता चला, और सच तो ये है की इससे हम खुद को जोड़ पाए, शायद इसलिए की हम सब उसी परिवेश से आरहे हैं, मुझे लगा आप मेरी ही कहानी सुना रहे हैं, मैं भी छुप कर संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने गयी थी, वो तो मेरे पड़ोस के अंकल मेरे पिताजी को लेकर चले गए थे, जब सारे पुरस्कार मुझे मिलने लगे तो पिता जी आस-पास के दर्शकों से कहने लगे 'यह मेरी बेटी है' ऐसा मुझे बाद में पता चला,
तो हुई ना एक जैसी कहानी,
बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर ..
लिखते रहिये, हम आते रहेंगे ....
स्वप्न मंजूषा 'अदा'
http://swapnamanjusha.blogspot.com/
कलाएं मनुष्य की सांस्कृतिक और सृजनात्मक अभिव्यक्तियां है। मनुष्य अपने आनंद में इनमें कोई कुशलता की जरूरत महसूस नहीं करता। बस वह कर उठता है, और फिर इसे और बेहतर करने का प्रयास उसके सौन्दर्यबोध की जरूरत होती है जो भी आत्मिक आनंद से ही जुडी होती है।
यहां तक तो ठीक।
पर जब इसके जरिए मनुष्य की महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति, उद्देश्य बन जाती है तब यह अलग से विश्लेषण की मांग रखती है।
यहां इस समय इसकी दरकार नहीं है, इसलिए फिर कभी।
आपका कलाप्रेम कुछ खास लगा।
माइकल मेरे भी पसंदीदा रहे है इसलिए नहीं के वो डांस अच्छा करते थे बल्कि वो एक सम्पूर्ण कलाकार थे और इस महान कलाकार को मेरा बिनम्र नमन ..
अर्श
मायकल जैक्सन जैसे जादूगर को कौन भूला सकता है....इस सुन्दर लेख के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
मुझे कैसा भी डांस नहीं आता,,,
डांस की कोई समझ भी नहीं और कभी कोहिश भी नहीं की डांस करने की,,
पर जब भी कभी टी.वी. पर उसे देखा तो कभी भी चैनल नहीं पाल्टा गया,,,
मैं तो उसकी पर्सनेलिटी का दीवाना था,,
उसे देखना ही मुझे बहुत अच्छा लगता था..
मुझे कैसा भी डांस नहीं आता,,,
डांस की कोई समझ भी नहीं और कभी कोहिश भी नहीं की डांस करने की,,
पर जब भी कभी टी.वी. पर उसे देखा तो कभी भी चैनल नहीं पाल्टा गया,,,
मैं तो उसकी पर्सनेलिटी का दीवाना था,,
उसे देखना ही मुझे बहुत अच्छा लगता था..
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