बुधवार, 20 मई 2009

मन मत्स्य


बहुत चिकना होता है विचार पथ

जिस पर मन बार- बार फिसल जाता है,

फिसलकर भाव सरिता में बहने लग जाता है।

भावो की लहरों संग खूब तो उछलता है

डुबकिया लगाता है और किनारे आ-आ कर

साधु हृदय को चिढ़ाता है।

कभी बिल्कुल निरापद

तो कभी शैतान होकर

उसका चैन उडाता है।

खिलखिलाते नृत्यरत

ऐसे मन को क्या साधना?

किंतु

शब्द अपना जाल बुनते है

उसे पकड़ने के लिए स्याही के कांटे का उपयोग करते है।

और चारे की तरह अक्षर को कांटो में फंसा

सरिता में डालते है।

घंटो इन्तजार के पश्चात

अंततः झांसे में आ ही जाता है मन

अक्षर शब्दों के साथ पंक्तिबध्द

खड़े होकर मन को चीरने लग जाते है

फाड़ते है,

उसकी आजाद जिंदगी को

कविता के नाम पे

बलि चढ़ा दिया जाता है।

भुना जाता है और

काव्य जगत के बाज़ार में

परोस कर फ़िर

रसास्वादन होता है।

बेचारा मन मत्स्य ।




22 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कल जब फोन पर हमारी बात हो रही थी तब आपने कहा था आप लोग शरीर की चीर फाड करते हो तो हम मन की गहराइ से आत्मा तक का सफर अपनी ही तरह की चीर फाड से करते है. स्वस्थ दोनो होते व करते है. अब इस कविता मे पाया एक दूसरा सच भी. आपके साथ जुडने का मजा ही कुछ अलग है.क्या लिखते है आप,बहु बढिया.

dr. rajesh varma ने कहा…

कल जब फोन पर हमारी बात हो रही थी तब आपने कहा था आप लोग शरीर की चीर फाड करते हो तो हम मन की गहराइ से आत्मा तक का सफर अपनी ही तरह की चीर फाड से करते है. स्वस्थ दोनो होते व करते है. अब इस कविता मे पाया एक दूसरा सच भी. आपके साथ जुडने का मजाही कुछ अलग है.क्या लिखते है आप,बहु बढिया.

बेनामी ने कहा…

cheer faad ke jaisa hi to hai lekhan, kavita ke madhyam se dil khol ke rakh diya jata hai, fir log tareefo ke bhaav lagate hain..

man machhli sa tadapta bhi hai aur fisalta bhi ..

kitni sundar kavita hai Amitabh ji...

main to ye kahungi ki, kavita ko to achha ya bura kaha ja sakta hai, par koi bhaavnaao ko kaise maape ye tole.. uska kya maap-dund ho sakta hai..

do baar padhi ye kavita.. dil mein bahut gehre utarte hain aapke shabd Amitabh ji..

bus ye shabdo ka safar chalte rahe, ishwar se yahi prarthna hai..

Vinay ने कहा…

hriday ki gahra'iyon tak jaatee hui rachnaa...

गौतम राजऋषि ने कहा…

कविता की इस अद्‍भुत परिभाषा पर चकित हूँ...

सुंदर चीर-फाड़---precise

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

मन की फिसलन ही तो शब्द का भी बोध कराती है , जाल भी बुनवाती है पर लगता है की मन पकड में आ गया पर वह दर्पण के प्रतिविम्ब की मफिल या कहें की सरिता में चाँद के प्रतिबिम्ब को पकड़ने के माफिक है. हम मन को अपमी लेखनी से भले ही कितना बुरा भला कहें पर मन घर्षण रहित पकड़ में आएगा ही नहीं. मन बेचारा नहीं चंचल मन मत्स्य !!!!!!!!!!!!!!!!!!

आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त

कडुवासच ने कहा…

... उम्दा व अदभुत अभिव्यक्ति ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अमिताभ जी
कई बार पढ़ी आपकी कविता और हर बार एक नया मतलब समझ आये.............विचारों के माध्यम से मन वाकई फिसलता जाता है.................. कभी कहीं कभी किसी और..............नए नए शब्द बुनता है............तो कभी कुछ और ही करता है.............
बहुत ही गहरे जा कर लिखा है आपने...............मन की अभिव्यक्ति तो होती ही है.....फिर चाहे भाव शब्द बन कर मन की चीर फाड़ ही क्यों न करें

शाशाक्त और गहरी रचना.............. लाजवाब है

Urmi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए!
आपने इतना सुंदर कविता लिखा है कि मैं शब्दों में बयान नही कर सकती! बहुत ही गहरी रचना है ! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है! काफी समय बाद आपने कविता लिखा और वो भी एक उम्दा रचना! अगले कविता का इंतज़ार रहेगा!

manu ने कहा…

उसकी आजाद जिंदगी को

कविता के नाम पे

बलि चढ़ा दिया जाता है।

भुना जाता है और

काव्य जगत के बाज़ार में


क्या लिखा है अमित जी,,
वाह ,,,,
शानदार,,,,

जयंत - समर शेष ने कहा…

आह और वाह...

क्या कहें...
मन को चीर दें..
फिर भी उसे..
ना लिख सकें...

सुन्दर है इतनी..
कविता जनाब की...

~जयंत

neha ने कहा…

bahut hi behtarin kavita......aapne hridya ke bhavon ko bahut hi acchi tarah vyakt kiya hai......aisa kar pana sabke bas main nahi......itni sundar rachna ke liye dhanyawaad

tarachand sharma ने कहा…

aapki kalam main bhavon ki abhivyakti ki takat hai.

शोभना चौरे ने कहा…

घंटो इन्तजार के पश्चात

अंततः झांसे में आ ही जाता है मन

अक्षर शब्दों के साथ पंक्तिबध्द

खड़े होकर मन को चीरने लग जाते है
khte hai sabr ka fal meetha hota hai .bhut intjar ke bad itni khubsurat kavita .chachnl man ke sath asi sadhna .shubhkamnaye .

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह अमिताभ जी बहुत गहरी बात कह दी। बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने। कई बार पढी।

बहुत चिकना होता है विचार पथ
जिस पर मन बार- बार फिसल जाता है,
फिसलकर भाव सरिता में बहने लग जाता है।
भावो की लहरों संग खूब तो उछलता है
डुबकिया लगाता है और किनारे आ-आ कर
साधु हृदय को चिढ़ाता है।

सच्ची बात। खूबसूरत शब्दों में।

श्यामल सुमन ने कहा…

भावपूर्ण रचना लगी अच्छा लगा विचार।
ऐसे साधक को मिले सदा उचित सत्कार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

बहुत चिकना होता है विचार पथ

जिस पर मन बार- बार फिसल जाता है,man edhar udhar jata hai to hi wichaar ate hai.....nice one....

Alpana Verma ने कहा…

itni sundar rachna kaise miss ho gayi...

बहुत चिकना होता है विचार पथ
जिस पर मन बार- बार फिसल जाता है,

फिसलकर भाव सरिता में बहने लग जाता है।

kavita ki adhbbhut pribhasha hai yah...

aur poori kavita mein hi kavita ke srijn ki ' gazab ki kalpna ki gayi hai.

-umda rachna.

hempandey ने कहा…

कविता का इतना अद्भुत और चमत्कारपूर्ण वर्णन कविता में करते हुए एक कविता बन गयी. साधुवाद.

Priyanka Singh ने कहा…

बहुत चिकना होता है विचार पथ
जिस पर मन बार- बार फिसल जाता है,

very true... nice one...

vijay kumar sappatti ने कहा…

amithab ji

aaj aapki ye kavita padhkar bahut der se chup chaap baitha hoon ...
kya kahun


bus nishabd hoon

vijay

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

उसकी आजाद जिंदगी को

कविता के नाम पे

बलि चढ़ा दिया जाता है।

भुना जाता है और

काव्य जगत के बाज़ार में

baht khoob, kya baat hai..

swapna manjusha 'ada'