सोमवार, 21 जनवरी 2019

जनक - जननी

ये वो समय था जब
चारों दिशाएं मुट्ठी में थीं
सारे ग्रह -नक्षत्र नाक की सीध में थे
और धरा जैसे अपनी
कनिष्ठा पर घूम रही थी।
यकीन जानो
माता-पिता संग
ब्रह्माण्ड की समस्त महाशक्तियां
एकत्रित होकर वास करती है देह में
और निस्तेज जान पड़ता है इंद्र का सिंहासन
अप्रभ होता है उसका फैला साम्राज्य।
इसलिए प्रिये
जितना सम्भव हो सके
जगत के समस्त प्रपंच त्याग कर
रह लो साथ जनक - जननी के
कि
ईश्वर भी इस सुख से अधिक वंचित ही रहा है।
(टुकड़ा-टुकड़ा डायरी / 20 जनवरी 2019 )

1 टिप्पणी:

जयंत - समर शेष ने कहा…

Badi maarmik baat hai..
मेरे मन में एक यह टीससदा रहती है की वो साथ नहीं रह पाते. किन्तु मैंसदा उनसे बात करता हूँ, और हर वर्ष एक यात्रा तीर्थ की आदि... यही बस कर सकता हूँ.