रविवार, 26 जून 2016

अंततः


कितनी बलियां दे दी 
इच्छाओं की ,
आहूत किया श्रम 
और स्वेद कितना ,
जीवन कुंड इन समिधाओं से 
धधकता रहा 
किन्तु 
भाग्य था जो 
प्रसन्न नहीं हुआ। 

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कौन भाग्य को पार कर सका है ... उसका होना भी उतना जरूरी है जितना श्रम का ... हाँ एक अच्छी बात है श्रम करने वाले को कर्म न करने का दुःख नहीं होता ... आत्म शान्ति रहती है ...
आपका ब्लॉग पे आना सुखद लगा ... निरंतरता बनाइए तो बन जाएगी ...

Parul kanani ने कहा…


gagar mein sagar..