बुधवार, 27 मई 2015

इसलिए अपनी आँखे खोलो

तुम्हारे और मेरे मध्य
अंतरिक्ष है।
इसीलिये गहरा सन्नाटा है।
न कोई वातावरण ,
न ही ध्वनि यात्रा का कोई माध्यम। 
शून्य
निपट सूने
सन्नाटे में डूबे
इस अंतरिक्ष में
रेडियो तरंगे ही होती हैं
जो संवाद स्थापित कर सकती हैं
इसलिए
अपनी आँखे खोलो।
(सुबह का आलाप : ध्यानावस्था में आँखे अंदर तो खोलनी पड़ती है )

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