कृष्ण ने मुझे हमेशा से ही प्रभावित रखा है. वैसे भी कृष्ण सर्वाधिक लोकप्रिय, रहस्यमयी, पठनीय और ह्रदय समीप विषय है. जितना अध्ययन करो कम है. कई कई सारी जानकारिया कृष्ण में दिलचस्पी पैदा करती है. और लगता है कि बस पढ़ते जाओ. मै कृष्ण को किसी धर्म विशेष की तुला पर नहीं बैठाता क्योंकि वो उससे परे का विषय है. कृष्ण हमारा पूरा एक जीवन है. इस जीवन की थाह पाना सचमुच कठिन है किन्तु गहरे जितना उतरो मोतियों का अपरम्पार खजाना हाथ लगते ही जाता है. बहुत पहले कृष्ण के एक विशेष विभाग पर शोधपरक कथा गढ़ने की ठानी थी.प्रारम्भ भी किया था वह कार्य.किन्तु रोजमर्या की आपाधापी ने उस महती कार्य को रोक दिया.रुका तो रुका ही रहा. अब एकबार फिर उसे नए सिरे से गूंथने का विचार है जो यथाशीघ्र प्रारम्भ कर दूंगा. ख़ैर..इसके पहले कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया लिखने का मन है. इसके नेपथ्य में दो बाते है, एक तो यह संग्रहित हो जायेंगी दूसरे आपको भी पढने में आनंद आयेगा .
कई सारी भ्रान्तिया है, कई सारे तर्क है, कई सारे आत्मविश्वास और अतिविश्वास है. कृष्ण का जन्म, कृष्ण का जीवनकाल आदि पर बहस-मुबाहस है. जो भी है वो सदा रहेगा किन्तु मै समझता हूँ अनुसंधान जिसे करना हो वो करे..जिसे प्रलाप करना हो वो करे. हमारे लिए तो कृष्ण सामने खड़ा है, बांसूरी की धुन पर मुग्ध कर रहा है. इसलिए प्रमाणिकता हमें हमारी खोज पर संतुष्ट करती है. बहरहाल, कृष्ण के विकास, स्वरूप को प्रकट करने से पहले पूर्व वैदिक देवता विष्णु के स्वरूप को समझना जरूरी हो जाता है ताकि कृष्ण के सन्दर्भ में हमें प्रमाणिकता प्राप्त हो सके. वेद सर्व प्रथम सूत्र है किन्तु कृष्ण वेदों में नहीं मिलता, पुरानो में मिलता है. ऐसे में भ्रम पैदा होना लाजिमी है. मेरा जो अध्ययन है उसके तहत चूंकि पुराण कृष्ण को विष्णु का अवतार और वृष्णि वंश का मानता है इसलिए वेद से भी जुड़ जाता है. कैसे ? ऋग्वेद में कही-कही विष्णु का उल्लेख है , विष्णु 'विष' धातु से बना, जिसका अर्थ व्याप्त होना है/ विष्णु कही मुख्य तो कही समानार्थक रूप में आया है. शक्ति के अर्थ में भी विष्णु का उल्लेख है. ऋग्वेद मन्त्र में विष्णु का सम्बन्ध गायो से भी बांधा है. ऋग्वेद के सातवे अध्याय में २९ वा सूक्त गाय, गोपाल, गौचारण से सम्बन्ध रखता है. इधर कृष्ण को 'गोपाल' भी कहा गया है. रिग्वेदी विष्णु और उसका गायो से सम्बद्ध होना मुझे कृष्ण के अवतार पर सहमत कराता है. कृष्ण जन्म के सन्दर्भ में ब्रह्म वैवर्त पुराण में कृष्ण का जैसा रूप-सौन्दर्य वर्णन है वो ठीक विष्णु से मिलता जुलता है. आप देखिये वैदिक विष्णु जो प्रथम कोटि का देवता नहीं है किन्तु धीरे धीरे देवत्व के सबसे उपरी आसन पर विराजमान हुआ है और इधर कृष्ण भी कुछ इसी प्रकार सर्वोपरि हुए/ ऋग्वेद में कृष्ण का नाम हमें जरूर मिलता है आठवे मंडल के ८५ वे ८६, ८७, और दसवे मंडल के ४२, ४३,४४, सूक्तो के ऋषि का नाम कृष्ण है. उन्ही के नाम पर कृष्णायन गौत्र चला.हालांकि यह वैदिक ऋषि कृष्ण हमारे कृष्ण नहीं है किन्तु यह मान्य करना पड़ जाता है कि उनके नाम पर ही वासुदेव ने अपने पुत्र का नाम कृष्ण रखा हो. ख़ैर..इस सन्दर्भ में भी विवेचन है. किन्तु कृष्ण जन्म को लेकर बहुत सारे तर्क-वितर्क है. देश-विदेश के खोजियों ने अपने-अपने तर्क दिए है. हापकिंस तो कहता है कि महाभारत में पहले कृष्ण का मनुष्य रूप ही है, बाद में वो देवत्व से युक्त कर दिया गया. कीथ भी इसे मानता है. ईसा से ४०० साल पहले कृष्ण के देवत्व का खूब प्रचार हो चला था. आप जानते है कि ईसा से ३०० वर्ष पूर्व मेगस्थनीज भारत आया था, उसने भी लिखा था कि मथुरा और कृष्ण पुर में कृष्ण की पूजा होती है. पुराण, पुराणकार, यात्री , लेखक, इतिहासकार आदि के तर्कों में भले ही थोड़ा बहुत अंतर रहा हो मगर यह सब मानते है कि कृष्ण नामक एक देवतुल्य पुरुष इस धरती पर जन्मा था...बहुत से शिध्परक संग्रहण है, मेरे पास भी है..और इन्ही सबकी वजह से कृष्ण का जादू छाया हुआ रहता है..समय समय पर कुछ लिख लिख कर खुद की कलम को भी साधुँगा ताकि अपने मूल शोधपरक कथा को बल मिले और मै उसे लिख सकने मै समर्थ बन सकू. फिलहाल इतना ही.
6 टिप्पणियां:
कृष्ण का चरित्र हमेशा से ही मुझे भी प्रभावित करता रहा है ... मनुष्य या देव ... पर वो देव के करीब जरूर है ...
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