1, प्रतीक्षा के
अग्नि कुंड में
समय की समिधायें
डाल-डाल
उम्र को हवन कर दिया
और
इस तप का
प्रतिफल ये मिला कि
अब आस्तिक न रहा।
2, विरह की लपटों से
झुलसी
लगभग राख हुई उम्र
इस नंगी-रूखी
हवा के बदन से
लिपट
जीवन के चारों ओर
भंवर बना
नाचने लगी है
मानो यह
अंतिम नृत्य साधना है
किसी बलि के लिये।
3, स्मृतियों का पत्थर
आंखों के स्थिर
अश्रु ताल में
जब भी गिरता है
तो
हलचल मच जाती है,
फिर उम्र कितनी भी हो
गाल गीले हो ही जाते हैं।
सपना, काँच या ज़िन्दगी ...
1 घंटे पहले
33 टिप्पणियां:
...बेहतरीन रचनाएं,प्रसंशनीय !!!
प्रतिक्षा विरह स्मृतियों तीनो को बेहतरीन तरीके से समेटा आपने.स्मृतिया अच्छी या बुरी हमेशा हलचल मचाती है.आंखे नम हो ही जाती है.
teeno hi kavitaayein jabardast hain...waah...
प्रतिफल ये मिला कि
अब आस्तिक न रहा।...
बेहतर....
aisi rachnayen mujhe mook kar deti hain...khamosh daad deti hun..
अमिताभ जी तीनों ही रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं और लगता है मानों मेरे ही मन की हलचल को आप ने शब्द दे दिये हों
अमिताभ जी ,
तीनो ही रचनाएँ बेहद भावपूर्ण हैं |
सच कहूँ तो जीवन के इन अनुभवों को इतने भावपूर्ण तरीके से लिखा आपने ...और पढ़कर बहुत कुछ सीखने समझने को मिला .... थोड़ी मुश्किल हुई समझने में मुझे पर जो समझ आया तो अब मेरे पास शब्द नही हैं !....
आपकी रचनाएँ मन पर बहुत गहरा प्रभाव छोडती हैं और साथ ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है !
तीनों कविताएं
बीन बजा रही हैं
भावों की
ज्यों नावों की गति
लुभा रही हो पानी पर।
तीनों कविताएँ बहुत अच्छी हैं...बधाई.
एक लम्बे अंतराल के बाद आप के ब्लॉग का मौन टूटा.
तीनो कवितायेँ तीन बातें कहती लगीं मुझे.
एक में प्रतीक्षा के तप में खुद को कुंदन बना देने की बात कही गयी,जिसमें समर्पण और लगाव प्रेम से भक्ति बन गया.
प्रेम की उत्कृष्ट छवि को चंद पंक्तियों में कितनी खूबसूरती से समेट दिया.
अद्भुत!
teeno kavitaya bahut bahut acchhi he..bahut uttam alankaro se sushobhit. saraahniye.
दूसरी कविता के लिए क्या कहूँ बस..यही की मन विचलित कर गयी.
यह भी एक तरफ़ा प्रेम /प्रतीक्षा की ही परिणिति है .मुझे यह कविता तीनो में सब से अधिक प्रभावशाली और गूढ़ लगी.
तीसरी कविता में आप की लिखी यह पंक्ति 'स्मृतियों का पत्थर
आंखों के स्थिर
अश्रु ताल' बेहद सुन्दर लगी.
एक सामान्य सी बात को सुन्दर शब्दों में किस तरह से प्रस्तुत कर सकते हैं यह कविता एक अदाहरण है.
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एक बार फिर यही कहूंगी..आप की कवितायेँ कविताई विचारों को खुराक देती हैं..जहाँ सिर्फ 'सुन्दर प्रस्तुति कह कर 'चले जाने की इच्छा नहीं होती इसलिए इतना लिख गयी .
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"फिर उम्र कितनी भी हो
गाल गीले हो ही जाते हैं"
Ab aur kyaa kahun?
Aakhen to aakhen hi hain....
Man kaa darpan!!
Ati sundar.
Jayant
मित्र तीनो रचनाएं ....एक से बढ़कर एक है .....सभी बहुत तारीफ़ के काबिल है.....शब्दों का चयन भी लाजवाब है .....बधाई और प्रणाम आपको
बहुत दिनों बाद आपकी रचनाओं ने दस्तक दी हैं. और तीनो ही रचनाये बड़ी जबरदस्त लिखी हैं. लगता है अवकाश के दिनों में जीने के साथ साथ ये सब भी बीनते रहे. कहाँ से ले आते ये भाव. और एक हम है की बस जिन्दगी में ही उलझे हुए रहते हैं. तीनो ही रचनाये शानदार, जानदार हैं, पर तीसरी वाली कुछ ज्यादा ही दिल के करीब से गुजर गयी न जाने क्यूं? पर अमिताभ जी ऐसा क्यूं होता हैं की यादे अच्छी हो या ख़राब पर आँखे नाम क्यूं हो जाती हैं? और इतनी बेहतरीन रचनाये पढ़कर हमें भी कुछ लिखने की एनर्जी मिलती हैं जी. इसलिये बस लिखते रहा कीजिये जी.
Baujee,
Prateeksha ka agnikund....
Samay kee samidhaaen....
Umr ka havan....
Nateeja.... Nastikta!
Bahut Umda....
अति सुन्दर...
प्रतीक्षा के
अग्नि कुंड में
समय की समिधायें......बहुत खूबसूरत शब्द और मन से निकले भाव...बस एक आह निकल कर रह गयी
मानो यह
अंतिम नृत्य साधना है
किसी बलि के लिये। ..ओह...कितनी गहरी बात कही है...
स्मृतियों का पत्थर
आंखों के स्थिर
अश्रु ताल में
जब भी गिरता है.....सच उम्र कोई भी हो आँखें तो गीली हो ही जाएँगी...मन को स्पर्श कर गयीं तीनो रचनाएँ
2, विरह की लपटों से
झुलसी
लगभग राख हुई उम्र
इस नंगी-रूखी
हवा के बदन से
लिपट
जीवन के चारों ओर
भंवर बना
नाचने लगी है
मानो यह
अंतिम नृत्य साधना है
किसी बलि के लिये।
बेहद प्रभावित किया इन पंक्तियों ने
regards
emotional
beautiful poems
जलजला ने माफी मांगी http://nukkadh.blogspot.com/2010/05/blog-post_601.html और जलजला गुजर गया।
amitaabh ji blog par aane ka bahut bahut shuqriya.. :) aap ko mere blog par aa kar sukun mila.....aur main aap ki tesari kavita padh kar bechain ho utha... :) teenon kavitayen behad achhi lagi ..treesari wali ne mujhse thodi nazdiki bana li hai ..
kavitaye to bahut phle hi padh lithi
fir net bar bar dga de rha tha aur ab itni khubsurat aur sarthak tippniyo ke bad kuchh khne ko shesh nhi .
fir bhi arthpoorn sampoorn kavitaye .
प्रतीक्षा के
अग्नि कुंड में
समय की समिधायें
डाल-डाल
उम्र को हवन कर दिया
और
इस तप का
प्रतिफल ये मिला कि
अब आस्तिक न रहा।
speechless!
स्मृतियों का पत्थर
आंखों के स्थिर
अश्रु ताल में
जब भी गिरता है
तो
हलचल मच जाती है,
फिर उम्र कितनी भी हो
गाल गीले हो ही जाते हैं ...
बेहद भावपूर्ण ... बहुत समय बाद कोई रचना लिखी है आपने अमिताभ जी ... और तीनों में जीवन के यथार्थ को उडेल दिया है आपने ...
प्रतीक्षा .. समय के साथ साथ तपा देती है पर हक़ीकत में अस्तित्व खो जाता है ...
और तीसरी रचना तो दिल को छू जाती है ... स्मृतियाँ सच में जीवन भर उथल पुथल मचाती रहती हैं ...
khurdure yatharth bodh ki marmik abhivyakti.Der aye par durust aye.
प्रतीक्षा के
अग्नि कुंड में
समय की समिधायें
डाल-डाल
उम्र को हवन कर दिया
तीनों क्षणिकाएं सोचने पर मजबूर करती हैं....उम्दा रचनाएं
aah......
kafi marmik rachna...
aankhein bheeg aayin padhkar.....
behtareen.........
इस तप का
प्रतिफल ये मिला कि
अब आस्तिक न रहा।
फिर उम्र कितनी भी हो
गाल गीले हो ही जाते हैं।
मानो यह
अंतिम नृत्य साधना है
किसी बलि के लिये।
देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.तीनों कवितायेँ एक से बढ़कर एक हैं जीवन दर्शन का ज्ञान लिए हुए और काफी मर्मस्पर्शी
तीनों ही कवितायें ब्लॉग जगत में आने वाली श्रेष्ठ कविताओं में शामिल किये जाने योग्य हैं.साधुवाद.
स्मृतियों का पत्थर
आंखों के स्थिर
अश्रु ताल में
जब भी गिरता है
तो
हलचल मच जाती है,
फिर उम्र कितनी भी हो
गाल गीले हो ही जाते हैं ...
...gahri bhavpurn rachna
तीनों छोटी कविताएं जीवन के छोटे बड़े अनुभव हैं...
जिन्हें आपने सलीके से उतारा है..
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