tag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post4729525929994745546..comments2023-11-03T21:13:09.282+05:30Comments on अमिताभ: पत्रकारिता यदि व्यवसाय है तो क्या व्यवसाय में आदर्श की हत्या माफ होती है?अमिताभ श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/12224535816596336049noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-26728801732729977462011-01-15T21:03:37.201+05:302011-01-15T21:03:37.201+05:30एक बेहद प्रभावशाली लेख..अपने मेसेज को पहुँचाने मे ...एक बेहद प्रभावशाली लेख..अपने मेसेज को पहुँचाने मे पूरी तरह सफ़ल है..पढ़ कर पत्र्कारिता के बारे मे कुछ अहम बातें पता चलीं और आपके कन्सर्न का अंदाजा भी लगता है..कोई भी पेशा कभी अपने आस-पास के समाज और उसके मूल्यों से अछूता नही रहता..और अगर किसी पेशे के लिये पैशन से ज्यादा पैसा और ग्लैमर आकर्षित करे तो उनसे उच्च मूल्यों के निर्वहन की अपेक्षा नही की जा सकती..और किसी भी पेशे की मूल्यहीनता की बड़ी वजह उसके उच्चतम आदर्शपुरुषों का पतन होना और निहित प्रतिबद्धता के मानकों का ह्रास होना है..आज जब कि बाजार-केंद्रित समाज और अर्थव्यवस्था हमारे सामाजिक ढ़ांचे के लिये सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही हो..वहाँ पत्रकारिता का अपनी भूमिका का सचेत निर्वहन सबसे बड़ी आवश्यकता..जबकि पत्रकारिता का अपने उद्धेश्य से विचलन एक गंभीर बात है...मगर आपके लेख के अंत का आशावाद खोखला नही है..और यही हमारे वक्त की एक बड़ी उम्मीद भी...<br />आभार विस्मृतियों के दौर मे इन जरूरी बातों की चर्चा करने के लिये..अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-91534407407702316622010-11-24T13:00:37.483+05:302010-11-24T13:00:37.483+05:30patrkarita ko lekar raveesh ji ki kain reports pad...patrkarita ko lekar raveesh ji ki kain reports padhi hai..mujhe bahut gyaan to nahi ..par phir bhi itna to padhkar keh sakti hoon..khara likha haiParul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-32968493824620324382010-11-23T21:59:04.275+05:302010-11-23T21:59:04.275+05:30आ गये आप अपने बेहतरीन अन्दाज़ में। यही खास होता है ...आ गये आप अपने बेहतरीन अन्दाज़ में। यही खास होता है आपके आलेखों में। पहले अखबारों में पढा करता था, नशा सा हो गया था आपको पढने का..अब ब्लॉग दुनिया में। मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। पत्रकारिता के इस बदलते परिवेश पर आपसे वैसे भी कई बार बात हो चुकी है मगर आलेख तो आलेख होता है और इसका मज़ा खास। अरे हां कवितायें काफी दिन हुए लिखी नहीं है आपने। मगर मैं तो आलेख के बाद नीचे खिसक आता हूं और फिर से कवितायें पढकर नये नये अर्थों के साथ आनंद ले लेता हूं।<br /><br />-डॉ.राजेश वर्माAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-27443928392092694362010-11-23T15:30:27.543+05:302010-11-23T15:30:27.543+05:30"सूट-बूट और टाई में, जेल लगे सलीके से जमे केश..."सूट-बूट और टाई में, जेल लगे सलीके से जमे केशों वाले प्रबुद्ध पत्रकार या बढी हुई दाढी और आधुनिक बुद्धिजीवी, जिसे आप अंग्रेजी में एक्स्ट्रा इंटलीजेंट कह सकते हैं, लोगों को इस कदर बेवकूफ बनाते हैं मानों उनके सिवा कोई पत्रकार नहीं है और ये ही चंद लोग अवार्ड या सम्मान पाते दिखते हैं। "<br />आपसे पूर्णत सहमत |<br />इस सामयिक आलेख पर कुछ भी कह पाने में असमर्थ प् रही हूँ आपने पत्रकारिता का उद्देश्य ,पत्रकारिता की सम्पूर्ण सफल ,असफल यात्रा को<br />बहुत ही बेबाकी के साथ लिखा है |<br />साधुवादशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-53418772526439604502010-11-22T19:38:53.925+05:302010-11-22T19:38:53.925+05:30अमिताभ एक शानदार लेख के लिए बधाई।अमिताभ एक शानदार लेख के लिए बधाई।Subhash Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/14552179429463517015noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-40974467945603169762010-11-22T17:34:29.811+05:302010-11-22T17:34:29.811+05:30bhaayi amitaabh ji aap to chupe rustm nikle aek am...bhaayi amitaabh ji aap to chupe rustm nikle aek amitaabh big b he to dusre aap amitaabh blogr ki duniyaa ke aaj se big b ghoshit hue mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthanआपका अख्तर खान अकेलाhttps://www.blogger.com/profile/13961090452499115999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-29470236734401873772010-11-22T15:21:11.962+05:302010-11-22T15:21:11.962+05:30ये बात तो तय है की मीडिया की अपनी मजबूरियाँ होती ...ये बात तो तय है की मीडिया की अपनी मजबूरियाँ होती हैं .... उनके भी कमाई करनी होती है ... खुद को चलाने के लिए ... और अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए ... पर आज का मंदी सच में इनसब से बहुत आगे है ... और इस चमकती दुनिया में पत्रकार भी इन सब बातों से अछूते नहीं हैं ... नमी गिरामी पत्रकार तो वैसे भी निष्पक्ष नहीं रह पाते ... किसी न किसी विचारधारा के प्रतिनिधित्व करते हैं ... और ऐसे लोग उनका पोषण भी करते हैं .... <br />अमिताभ जी एक बहुत ही प्रभावी, लाजवाब विश्लेषण भरा लेख है आपका ... सोचने को मजबूर करता है ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-64563836169893765102010-11-22T15:14:35.029+05:302010-11-22T15:14:35.029+05:30एक भारतीय मानसिकता यह भी कि "फिर भी उम्मीद है...एक भारतीय मानसिकता यह भी कि "फिर भी उम्मीद है किसी ऐसे वीर, जाबांज की जो भारत की भूमि से इस गंदगी से सनी पत्रकारिता को उज्जवल कर दिखायेगा और ताज्जुब मत कीजिये कि इस और कदम बढाये जा चुके हैं। क्योंकि अच्छाई सनातन है जिसे खत्म नहीं किया जा सकता और वो बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिये ही अवतार लेती है।"<br />Achha laga ki,is behtareen aalekh ka ant in ashawaadee khayalaat se hua!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-78484864204138111342010-11-22T13:04:09.179+05:302010-11-22T13:04:09.179+05:30अमिताभ जी एक शानदार और जानदार लेख के लिए बधाई. मैं...अमिताभ जी एक शानदार और जानदार लेख के लिए बधाई. मैं तो इतना कहना चाहूंगी कि ये मिडिया वाले रातों रात बिना किसी कारण के किसी कि छवि उभार सकते है बिगाड़ सकते हैं, या राजा को रंक और रंक को राजा बना सकते हैं. मैं अपने घर की ही बात बताऊँ पिछले साल की ही बात है एक सरकारी कंपनी (जो अपने क्षेत्र की देश की नंबर वन है और शायद विश्व में भी किसी एक काम के लिए अव्वल और प्रोफिट मेकिंग में १८ पायदान पर ) के लोग जब हड़ताल पर गए और देश में खूब शोर हुआ और सरकार की थू थू हुई तो सरकार ने खूब अनाप शनाप बातें (जो सत्य से कोसों दूर थीं)मिडिया के द्वारा फैलानी शुरू की. हम लोगों के द्वारा मीडिया से सम्पर्क करने और अपनी सफाई की बात चली तो देश के एक प्रतिष्ठित टी वी चेनेल वालों ने करोड़ों रूपये के लिए मुंह खोला. अब आगे तो कहने को कुछ बचा ही नहीं<br /> आभाररचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-9335679905791093842010-11-22T12:27:50.529+05:302010-11-22T12:27:50.529+05:30एक बेहतरीन लेख़ के लिए धन्यवाद्एक बेहतरीन लेख़ के लिए धन्यवाद्S.M.Masoomhttps://www.blogger.com/profile/00229817373609457341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-33650982151391829252010-11-22T12:25:06.231+05:302010-11-22T12:25:06.231+05:30और रिटर्न तब ही आऐगा जब ज्यादा एड आऐगी। और ज्यादा ...और रिटर्न तब ही आऐगा जब ज्यादा एड आऐगी। और ज्यादा एड तब आऐगी जब खबरों में मासाला आऐगा। और मसाला जब आऐगा। जब उसमें वो मुद्दे आऐगे जिसकी वजह से आपने ये लेख लिखा और उसका टाईटल रखा "पत्रकारिता यदि व्यवसायाहै तो क्या व्यवसाय में आर्दश की हत्या माफ होती है?"सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-87653032821149032792010-11-22T12:13:47.082+05:302010-11-22T12:13:47.082+05:30सबसे पहले अमिताभ जी एक शानदार लेख के लिए बधाई। मैं...सबसे पहले अमिताभ जी एक शानदार लेख के लिए बधाई। मैं कहने ही वाला था कि जैसे जैसे पत्रकारिता के आज के नायक भी मुखोटे लगाके घूमने लगे है तो एक लेख अवश्य लिखा जा चाहिए...। <br />अमिताभ जी कौन सी दुनिया में रहते हो आज के समय में व्यवसाय में भी कोई आर्दश होते है? व्यवसाय में सिर्फ होता है मुनाफा,बस। जैसे गाँधी के देश में गाँधी नही मिलते। वैसे ही मुनाफे के व्यवसाय में आर्द्श नही मिला करते अमिताभ जी। दरअसल बात कुछ यूँ हैकि पहले लोग पत्रकारिता में इसलिए जाया करतेथे कि उनका पहला मकसद जनता की मुशकिलों को उठानाऔर नए नए विचारों से लोगों जागरुक कर समाज में एक सार्थक बदलाव लाना। जहाँ पैसा इतना महत्व नहीं रखता था। बस उस पैसे घर ही चलाया जाता था। और कईबार तो हालात बत्तर होते थे पर और घर चलाना मुश्किल होता था पर पत्रकार अपनी पत्रकारिता नहीं छोड्ता था। तब लोग पत्रकार को सर आँखो पर रखतेथे पर उसके पेशे को अपने बच्चोंको नही अपनाने देते थे। पर अब मकसद बद्ल गया। सरोकार बदल गए है। अब पह्ला मकसद पैसा हो गया। और लोग अपने बच्चोंको शान से पत्रकार बनाते है। बैशक दूसरी तरफ उन्हें भला बुरा कहते है। अगर अमिताभ जी आज भी पत्रकारिता के मोटे मोटे पैकेज मिलने बंद हो जाए तो क्या आपको लगता है कि उतनी ही भीड आऐगी पत्रकार बनने जितनी की अब आती है? और कोई संस्थान मोटे मोटे पैकेज यूँ ही न्ही देगा। बद्ले मेंउसको कई गुना रिटर्न चाहिए।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.com