tag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post2547044844761826469..comments2023-11-03T21:13:09.282+05:30Comments on अमिताभ: डोरअमिताभ श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/12224535816596336049noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-37178260656731031272010-04-07T23:05:02.211+05:302010-04-07T23:05:02.211+05:30भई सबसे पहले तो 150 वी पोस्ट की बधाई । और कवि का र...भई सबसे पहले तो 150 वी पोस्ट की बधाई । और कवि का रक्त रगों मे है तो कविता तो निकलेगी ही । पिताजी की पुस्तक "रागाकाश " पढ़ रहा हूँ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-54241659039547734982010-04-05T18:54:37.129+05:302010-04-05T18:54:37.129+05:30वाह अमिताभ जी , घुमा कर बहुत बहुत कुछ कह गए ।
१५०...वाह अमिताभ जी , घुमा कर बहुत बहुत कुछ कह गए ।<br />१५० वीं पोस्ट की बधाई।<br />कविता अच्छी बन पड़ी है।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-26164402291741531802010-04-05T16:23:17.622+05:302010-04-05T16:23:17.622+05:30१५० वी पोस्ट की बधाई!१५० वी पोस्ट की बधाई!Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-84669235890303495242010-04-05T15:29:08.407+05:302010-04-05T15:29:08.407+05:30आज भी लटकी है वहीं,
अपने उसी बने मंझे हुए
धागे के ...आज भी लटकी है वहीं,<br />अपने उसी बने मंझे हुए<br />धागे के साथ, <br />जो हवा के संग इधर-उधर<br />पता नहीं कहां कहां <br />आधारहीन झूल रहा है।<br />वक़्त की मार सहता<br />रंगहीन, कमज़ोर, मज़बूर<br />बेचारा, यूं ही। <br />Bhaut gahare bhavon se saji aapki rachna samajik dhanche ke ek atuwee sachai ko bayan karti samajik bidambanon ko ingit kar man ko jhakjhor karti hai..<br />Bahut shubhkamnayneकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-16747393217200082162010-04-05T14:01:19.945+05:302010-04-05T14:01:19.945+05:30१५० वीं पोस्ट की बधाई.
वैसे इतनी मेहनत और डांट फटक...१५० वीं पोस्ट की बधाई.<br />वैसे इतनी मेहनत और डांट फटकार के बाद पेंच तो लड़ा ही लिए. पतंग आज भी वहीँ लटकी है.तो मतलब यही समझूं की आप के साथ ही है.हर दुःख सुख में साथ दे रही है न !!!!! <br />आज भी लटकी है वहीं,<br />अपने उसी बने मंझे हुए<br />धागे के साथ, <br />जो हवा के संग इधर-उधर<br />पता नहीं कहां कहां <br />आधारहीन झूल रहा है।<br />वक़्त की मार सहता<br />रंगहीन, कमज़ोर, मज़बूर<br />बेचारा, यूं ही।रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-16685459409260900892010-04-05T13:16:02.465+05:302010-04-05T13:16:02.465+05:30ऐसे ही अनगिनत डोरे पतंग़ो के साथ ना जाने कहाँ कहाँ...ऐसे ही अनगिनत डोरे पतंग़ो के साथ ना जाने कहाँ कहाँ अटकी होगी। और क्या पता कब वही पर तप कर फिर से एक हवा के झोंके से उड़ जाए और <br />कि एक दिन इस <br />आकाश में उडाऊंगा <br />अपनी भी पतंग।<br />और काटूंगा विरोध की<br />तमाम उन पतंगों को<br />जो रोज़ उडती हुई देखता हूं। <br /><br />ये सपना सच में ही सच हो जाए। अक्सर सपने ऐसे ही सच होते है। खैर एक दिल से निकली रचना पढकर जो आनंद आता है उसको बयान करना मुश्किल होता है। और हाँ 150वी पोस्ट के लिए बधाई हो।और एक हम है अभी 115 पर ही टिके है। और हाँ जो ये कहते है कि " काव्यात्मक रचना मेरे बस की नहीं" वही अच्छा काव्य लिखते है। और एक हम है बस तुकबंदी करते रहते है।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-89124848803736210692010-04-05T12:36:57.710+05:302010-04-05T12:36:57.710+05:30अरे रचना में इतना खो गया की १५० वी पोस्ट की बधाई ह...अरे रचना में इतना खो गया की १५० वी पोस्ट की बधाई ही भूल गया ... बहुत बहुत बधाई ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-38549886662363644932010-04-05T12:36:07.423+05:302010-04-05T12:36:07.423+05:30आज भी लटकी है वहीं,
अपने उसी बने मंझे हुए
धागे के ...आज भी लटकी है वहीं,<br />अपने उसी बने मंझे हुए<br />धागे के साथ, <br />जो हवा के संग इधर-उधर<br />पता नहीं कहां कहां <br />आधारहीन झूल रहा है।<br />वक़्त की मार सहता<br />रंगहीन, कमज़ोर, मज़बूर<br />बेचारा, यूं ही।<br /><br />ग़ज़ब .. अमिताभ जी .. इस पतंग को बिंब रख कर आपने जीवन का नामचा लिख दिया ... बचपन और पचपन से जुड़े पहलू वैसे भी आने वाले समय का आधार होते हैं .... और आपने ... आम आदमी के जीवन को उस नमालूम भविष्य को बाखूबी बयान किया है ... हवा में लटकते, आधारहीन ... वक़्त की मार सहते इंसान की दास्तान ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-23630257201257259812010-04-05T09:04:28.377+05:302010-04-05T09:04:28.377+05:30बेहद सुन्दर रचना..
regardsबेहद सुन्दर रचना..<br /><br />regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-84895968284505222392010-04-05T06:39:59.495+05:302010-04-05T06:39:59.495+05:30कि एक दिन इस
आकाश में उडाऊंगा
अपनी भी पतंग।
और काट...कि एक दिन इस<br />आकाश में उडाऊंगा<br />अपनी भी पतंग।<br />और काटूंगा विरोध की<br />तमाम उन पतंगों को<br />जो रोज़ उडती हुई देखता हूं। <br />..... बेहद प्रभावशाली रचना,बहुत बहुत बधाई!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-41876973132999267702010-04-05T04:04:56.642+05:302010-04-05T04:04:56.642+05:30150वी पोस्ट की हार्दिक बधाई.
सच पूछो तो पता नहीं थ...150वी पोस्ट की हार्दिक बधाई.<br />सच पूछो तो पता नहीं था<br />बाज़ार में बिकने वाले <br />रासायनिक पदार्थों से लिपटे<br />इन पक्के धागों के बारे में,<br />जो महंगे और मज़बूत थे<br />बिल्कुल समाज़ की तरह।<br />== <br />थोड़ा और कांच चाहिये<br />थोड़ी और धूप दिखानी होगी<br />इन हाथों को पेंच लड़ाने की <br />थोड़ी और हुनर सीखना होगा<br /><br />फिर तो ये रासायनिक डोर भी कट जायेंगे.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-5408214785092085922010-04-05T03:14:48.322+05:302010-04-05T03:14:48.322+05:30वाह!! बहुत उम्दा..आनन्द आया..
१५० वीं पोस्ट की बह...वाह!! बहुत उम्दा..आनन्द आया..<br /><br />१५० वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई..लिखते रहें.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-7927320891826676752010-04-05T03:10:42.598+05:302010-04-05T03:10:42.598+05:30हाँ ,शब्द तो कहीं अटके नहीं दिखे..प्रवाह बराबर है....हाँ ,शब्द तो कहीं अटके नहीं दिखे..प्रवाह बराबर है.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-13930993569685598632010-04-05T03:09:17.977+05:302010-04-05T03:09:17.977+05:30बहुत ही गहन भाव वाली इस कविता में पतंग हमारे सपने ...बहुत ही गहन भाव वाली इस कविता में पतंग हमारे सपने हैं जो ऊँचा उड़ते हैं दूर मजिल की तलाश में --या कहिये आसमान छूने के लिए !<br />कितने श्रम से /उत्साह से हम माँझा तैयार करते हैं ..जिसमें स्वेद /रक्त सब की भागीदारी होती है...लेकिन जब व्यवधान या जीवन की मुश्किलें<br />उन सपनो की राह में आ जाती हैं तो इसीतरह 'पतंग रूपी सपने झूलते रह जाते हैं..बेजान से...नाकाम से..<br />सही समझी न मैं?<br /><br />[***@अरे अमिताभ ,जी ये आप कह रहे हैं कि आप कवि नहीं ?प्रयास भर करते हैं?<br />आप की कवितायेँ मुझे साहित्यिक लगती हैं.उनमें शब्द चयन और गठन बेहद सुरुचिपूर्ण होता है.]Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-55932611924217468492010-04-05T01:50:49.212+05:302010-04-05T01:50:49.212+05:30बहुत दिनों बाद आपसे बात हुई, फिर आपके ब्लोग पर आ ग...बहुत दिनों बाद आपसे बात हुई, फिर आपके ब्लोग पर आ गया, सुकून मिला, या यूं कहें मुझे काफी दिनों बाद आनन्द आया। बहुत कुछ पढना बाकी था। आलेख और वो यदि दर्शन सम्बन्धित होते हैं तो लाज़वाब होते हैं। आपका अध्ययन, शोध और विषय की पकड हमेशा से उत्तम रही है। समीक्षा लिखने का आपका अपना अन्दाज़ है जो अन्यों से अलग खडा कर आपके टेलेंट को दर्शाता है। मुझे तो बहुत सी सामग्री मिल गई है पढने के लिये, सब एक-एक कर पढता हूं। <br />आपका-<br />डॉ.राजेश वर्माAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5485264961645180772.post-85490949750686466302010-04-05T00:51:33.338+05:302010-04-05T00:51:33.338+05:30अमिताभ जी
प्रेम की डोर न सही लेकिन आपके लेखन की ड...अमिताभ जी <br />प्रेम की डोर न सही लेकिन आपके लेखन की डोर काफी मजबूत हैसु-मन (Suman Kapoor)https://www.blogger.com/profile/15596735267934374745noreply@blogger.com