सोमवार, 15 जून 2015

आमंत्रण

मुझे बुलाता है कैलाश मानसरोवर
और मैं आमंत्रण को हाथ में धरे खड़ा हूँ ,
कहाँ से शुरू करू यात्रा ?
रास्तो के तमाम नक़्शे हैं
यात्रा वृत्तांतों के टेके हैं 
लुभाती तस्वीरें हैं
और सारी सुविधाएं हैं
किन्तु सबकुछ होने के बाद भी
जरूरी नहीं होता कि सब कुछ हो जाए।
जो होता है , वो होने देना चाहिए
जैसे नहीं जा पाना
कभी जा पाना भी होगा।
ये 'होगा ' भी होना है।
शुक्र है
आमंत्रण सदा है। जैसे शिव।
( फिर एक यात्रा वृत्तांत , ढेर-ढेर वृत्तांत पढ़ लेना... … किताबो के हर पन्ने एक एक आमंत्रण बन जाते हैं )

गुरुवार, 4 जून 2015

'ऐसा नहीं है '

उदासी में बोझिल ही हुआ जाता है ऐसा नहीं है। 
ऐसा नहीं है कि प्रेमी निर्मोही न हो। 
निराशाएं तोड़ती हों 
असफलताएँ धैर्य खो देती हों 
और आदमी किसी काम का न हो 
ऐसा नहीं है।
बहुत कुछ है जो 'ऐसा नहीं है '
फिर क्यों इल्ज़ामात
कि तुम ऐसे हो , वैसे हो , कैसे हो ?
जैसा है , वह उसके होने का
उसके अस्तित्व का
उसके अपने ईश्वर का होना है
और उसे पूरे का पूरा स्वीकारना ही आदमीयत है।
शायद ।