हौसला है मुझमें
पार कर लूंगा इस दर्द से
भरी बदरंगी नदी को,
उसकी आगत
उछाल मारती
लहरों पे नाचूंगा,
और इस चौडे दर्प से भरे
पर्वत को
चूर-चूर कर दूंगा
अपने कदमों तले,
अगर तुम साथ दो।
यूं तो क्षितिज कुछ होता नहीं
महज मरिचिका की तरह
प्रतीत होता है,
किंतु मैं
उस आकाश को
पकङ खींच लूंगा,
इस धरा पर ला पटकूंगा,
और यदि तुम
चाहो तो,
कदमों में तुम्हारे
उसे झुका दूंगा,
अगर तुम साथ दो।
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए,
सांसो को आपस में
टकराया जाए,
अधरो की कंपन को
अधरों से मिटाया जाए,
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
तुम्हें अपने अंतस में
बसा लूंगा,
अपनी गर्म सांसों को
सूरज की किरणों से मिला
तन तुम्हारा तर दूंगा
अगर तुम साथ दो।
21 टिप्पणियां:
क्या कहे जी सबसे पहले तो फोटो ने अपनी ओर खींचा। और फिर जब रचना पढी तो उसमें भीगता हुआ चला गया। और फिर दुबारा भीगने का मन किया तो दुबारा भी भीगा। सच अगर साथ मिले तो क्या नही हो सकता।
यूं तो क्षितिज कुछ होता नहीं
महज मरिचिका की तरह
प्रतीत होता है,
किंतु मैं
उस आकाश को
पकङ खींच लूंगा,
इस धरा पर ला पटकूंगा,
और यदि तुम
चाहो तो,
बहुत ही बेहतरीन शब्दों से जज्बें की बात कह दी। सच कहूँ तो मेरे पास शब्दों की कमी पड जाती है। वैसे एक और बात कह देते तो मुझे लगता यार ये तो मैने ही लिखी है। सच पूछिए तो मुझे बहुत पसंद आई।
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए,
सांसो को आपस में
टकराया जाए,
अधरो की कंपन को
अधरों से मिटाया जाए,
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
तुम्हें अपने अंतस में
बसा लूंगा,
अपनी गर्म सांसों को
सूरज की किरणों से मिला
तन तुम्हारा तर दूंगा
अगर तुम साथ दो।
इतने खुबसूरत भाव हो तो लिखना मुनासिब हो जाता है .......यही तो सच्ची प्रेम की अभिलाषा है ......अगर वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है .......प्रेम ही ताकत है उर्जा है और न जाने क्या क्या है...........बहुत ही खुब
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
बहुत कुछ छू गया मन को आपकी रचना पढ कर.
कोमलता और नायाब प्रवाह
बहुत सुन्दर
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए,kitna sahi kaha aapne...duriya or nazdeekiya ahsaas hi ki baat hai...wo kabhi juda na the...
Amitabhji,
kaafi arase baad blog par aaya.aor aapki tamaam rachna read kar gaya.
shbdo ke sahare bhavo ko abhivyakt karne ki kalaa aap bakhoobhi nibhate he. Vese bhi aap jese snvedanshil insaan jab koi kavita likhta he to usame anubhav aor ahsaas ka nichod hota he.ek sach ka aabhaas hota he. jo dil tak utar jaata he.
लाजवाब! गहरी अभिवयक्ति
अगर तुम साथ दो ....ये बात अपने आप में काफी है माहौल को गरमाए रखने में .... खूब बात कही है श्रीवास्तवा साहिब आपने... ये तीनो छोटी छोटी रचनाएँ अपने आपने ख़याल और सोच की ऊँची उड़ान को एक दुसरे के लिए विस्तृत जगह बना रही है ... बहुत बहुत बधाई ....और हाँ मेरी भावनाएं कितनी छोटी प्रतीत हो रही है आपके सोच के सामने .. हंसी आरही है अपने पे ...
अर्श
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए,
सांसो को आपस में
टकराया जाए,
अधरो की कंपन को
अधरों से मिटाया जाए,
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
lajawab,sunder ehsaas.
waah bhaiyya.. is kavita ne to dhadkan rok di..
Kajal
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए ........
बहुत सही है
अगर साथ मिले तो क्या नहीं किया जा सकता है, यही तो वह जज्बा है, जो इन्सान को शक्ति प्रदान करता है.
बेहतरीन भावः लिए आपकी इस रचना को मेरा नमन.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
प्रिय अमिताभजी
नयी शक्ति से ओत प्रोत कविता के लिए साधुवाद, इस कविता को पढ़ कर मुझे श्री हरिवंश राय बच्चन की याद आ गयी शीर्षक है " रात आधी "
रात आधी खींच कर मेरी हथेली इक अंगुली .. से लिखा था प्यार तुमने | .......
ना जाने क्या कुछ करने को कर दिया था तैयार तुमने |
मैं लगा दूं आग उस sansar मैं जिसमें है वोह असमर्थ कातर ...
----- कुछ इस तरीके की पंक्तियाँ याद हैं, आज वोही अभिव्यक्ति देख कर यही लगता है के आपके कदम हरी वंश राय बच्चन की तरफ बढ़ रहे हैं.| कल्पनाओं और कवितों मैं वोह समन्वय है और बहुत ही सादगी से बहुत सारगर्भित बातें कह देते हैं | आपकी रचनाओं को प्रणाम है |
यूं तो क्षितिज कुछ होता नहीं
महज मरिचिका की तरह
प्रतीत होता है,
किंतु मैं
उस आकाश को
पकङ खींच लूंगा,
इस धरा पर ला पटकूंगा,
और यदि तुम
चाहो तो,
कदमों में तुम्हारे
उसे झुका दूंगा,
अगर तुम साथ दो।
बहुत intjar के बाद
बहुत सुंदर भावः नई आशा का संचार करती अलग सी रचना |
बधाई और shubhkamnaye
मुझे अपनी sn ७२ की लिखी एक कविता की pnktiya याद गई
अगर बन जाते हमराही
जीवन की भूलभुलैया में
जीव जगत के इस मेले में
इस vaigyanik युग में
अपना लेते परोपकारी कोमल शाश्वत भावना
अगर बन जाते hamrahi
Dost,
Aap der aayad durust aayad...
aaspki lekhni ne yun hi nahi humein apna fan banaya hai...
...aur ye dosti door talak jaiyegi...
"Agar tum saath do !!"
हौसला है मुझमें
पार कर लूंगा इस दर्द से
भरी बदरंगी नदी को,
उसकी आगत
उछाल मारती
लहरों पे नाचूंगा,
और इस चौडे दर्प से भरे
पर्वत को
चूर-चूर कर दूंगा
अपने कदमों तले,
अगर तुम साथ दो।
naidyon se dard,
darp se parvat.....
aur kadmon se hosala ki upmaoon ka kayal hua .
Sach !!
यूं तो क्षितिज कुछ होता नहीं
महज मरिचिका की तरह
प्रतीत होता है,
किंतु मैं
उस आकाश को
पकङ खींच लूंगा,
इस धरा पर ला पटकूंगा,
maza aa gaya...
khaskaar is logic pe ki 'aakash jaisi koi cheez nahi hoti...
...bus dikhti hai.
pur us na dikhai dene wali cheez se ladne ki jijivisha, zid....
... Waah Bhai sa'ab !!
जरूरी नहीं कि
प्रेम में करीब ही रहा जाए,
सांसो को आपस में
टकराया जाए,
अधरो की कंपन को
अधरों से मिटाया जाए,
.....Tan se tan ka milan ho na paya to kya, man se man ka milan koi kum to nahi.
khushubu aati rahe door hi sa sahi, samne ho chaman koi kum to nahi.
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
तुम्हें अपने अंतस में
बसा लूंगा,
अपनी गर्म सांसों को
सूरज की किरणों से मिला
तन तुम्हारा तर दूंगा
अगर तुम साथ दो।
......bahut der tak pathakon ke saath rehne wali kavita.
aapki visheshta hai ki aap apni rachnaaon ko man aur dimag ka adbhoot samanjasya karke likhte hain.
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
तुम्हें अपने अंतस में
बसा लूंगा,
अपनी गर्म सांसों को
सूरज की किरणों से मिला
तन तुम्हारा तर दूंगा
VAAH AMITAABH JI .......PREN KE IS NAVEEN RANG SE AAPNE ANJAANE HI MULAAKAAT KARA DI ...... SACH MEIN JAROORI NAHI AALINGAN KE LIYE TUM PAAS HO .....HAVAAON KE SAHAARE BHI TO MILAN SAMBHAV HAI ....
BHAARAT AANE PAR AAPSE MULAAKAT NAHI HPO SAKI ISSA MUGAALTA RAHEGA ... KABHI MUMBAI AANA HUVA TO JAROOR MILENGE ...
एक बार फिर से मन किया तो चला आया आपकी प्यारी सी रचना को पढने।
मैं हवाओं के सहारे
आलिंगन कर लूंगा,
तुम्हें अपने अंतस में
बसा लूंगा,
अपनी गर्म सांसों को
सूरज की किरणों से मिला
तन तुम्हारा तर दूंगा
अगर तुम साथ दो।
विस्तारित समर्पण का कम शब्दों
में अदभूत समन्वय कर भावनाओ
का प्रकटीकरण खूब बन पड़ा है !
बेहद कोमल और नाजुक सा स्पर्श कराती सुंदर रचना.....और चित्र भी बेहद खुबसूरत....
regards
" खुशबू आती रहे दूर ही से सही , सामने हो चमन कोई कम तो नही .." ये अल्फाज़ याद आ गए ...बड़े टक्कर की रचना है !
"तनसे तन का मिलन हो न पाया तो क्या, मनसे मनका मिलन कोई कम तो नही..."
अमिताभ जी,
आपने ठीक ही कहा था कि एक नया प्रयोग किया है। शायद प्रेम भी अपनी इस नई अभिव्यक्ती पर इठलाया हो।
मन में गहरे समा जाने वाली रचना के सृजन पर हार्दिक बधाई।
श्री एम. वर्म सा., सुशील जी, ओम जी, दर्पण, आदि ने बिल्कुल ठीक ही कहा है लाजवाब रचना। रचना की निम्न पंक्तियाँ इश्क में हांसिल की जा सकने वाली ऊँचाईयों को एक नया आयाम दे रहीं हैं
:-
यूं तो क्षितिज कुछ होता नहीं
महज मरिचिका की तरह
प्रतीत होता है,
किंतु मैं
उस आकाश को
पकङ खींच लूंगा,
इस धरा पर ला पटकूंगा,
और यदि तुम
चाहो तो,
कदमों में तुम्हारे
उसे झुका दूंगा,
अगर तुम साथ दो।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जज्बात से लबालब रचना पढ़कर दिल खुश हो गया। अमिताभ श्रीवास्तव को सलाम।
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