शनिवार, 18 अप्रैल 2009

अधरों से मै पी लूं

अपनी चाह ---
सुख सारे तुमको दे दूं
दुःख तुमसे मै ले लूं
झर झर बहते ये अश्रु
अधरों से मै पी लूं॥
जानती हो? -----
संघर्ष सदा बदा है
जीवन संग लगा है
अथ- इति के मध्य
सुख-दुःख से रंगा है॥
और इसे भी मानो ----
मन को कुचल अपने
जीवन जो जिया है
विधि का उसने
स्वयम विधान रचा है॥
मै क्या हूँ--
अलस त्याग मै कूदा
जीवन के इस रण में
भाग्य लोट लगाता
मेरे पथ, कण कण में॥
सच तो यह है प्रिये--
कौन है जो यहाँ
कामना से हीन है
जगत-हृद के सागर में
हर कोई लीन है॥

17 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ati sundar.. bilkul dil ko chhuti hui kavita.. aur wo bhi bade alag dhung se prastuti ki hai aapne.bahut khoob..


aur haan main aapke blog ki sheersh tippnikaar ban gayi hoon..mere liye to bahut harsh ka vishay hai..likhte rahiye..

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!!!

Alpana Verma ने कहा…

'संघर्ष सदा बदा है जीवन संग लगा है अथ- इति के मध्य सुख-दुःख से रंगा है॥'

-शायद इन्हें ही छंद कहते हैं.

-सभी अपने आप में पूरे लगे .हर छंद एक सन्देश देते हुए है.बहुत खूब!



[अमिताभ जी टिप्पणी चाहें जितनी हों ,मेरे लिए हर एक की बहुत महत्ता है.चाहे वह ५० के बाद हो यह सब से पहली.जिन्हें हम अक्सर पढ़ते रहते हैं उन के कमेन्ट की अपने लिखे पर प्रतीक्षा रहती ही है.आप ने भी अपने विचार लिखे ,आभार.]

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अमिताभ जी
अलग अलग माध्यम से आपने अपने भावों को बहुत ही खोब्सूरती से लिखा है ..........

आपकी चाह............प्रियतम को मौन निमंत्रण ...........फिर आपका जीवन जीने का संघर्ष..........सारगर्भित है यह रचना

hem pandey ने कहा…

अलस त्याग मै कूदा
जीवन के इस रण में
भाग्य लोट लगाता
मेरे पथ, कण कण में॥

-आत्म विश्वास से भरी इन पंक्तियों के लिए साधुवाद.

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

sukh sare tumko de do.....nici n v true feelings....

सुशील छौक्कर ने कहा…

अमिताभ जी वाह दिल को छू गया आपका लिखा।
संघर्ष सदा बदा है जीवन संग लगा है
अथ- इति के मध्य सुख-दुःख से रंगा है।

सच कहा आपने।

मन को कुचल अपने जीवन जो जिया है
विधि का उसने स्वयम विधान रचा है

वाह क्या बात है। एक सफल जिदंग़ी के लिए हर गुण लिख दिये।

shama ने कहा…

Pehlee baar aayee hun, aapke blogpe...aur ek vilakshan sachhe aur samvedansheel manse parichay hua...
Mai nishabd hun...aur aage kya kahun?
Anek shubhkamnayen...
shama

GIRISH CHANDRA SHUKLA ने कहा…

bahut accha likhte hai........aapko bahut bahut badhai........

शोभना चौरे ने कहा…

जिस तरह अक नन्हा सा दीपक अपने आप को जलाकर अमावस की कालीमा को दूर करता है कुछ इसी
तरह आपके ये छन्द है मन को छू गये |
आभार
सुख सारे तुमको दे दूंदुःख तुमसे मै ले लूं झर झर बहते ये अश्रु अधरों से मै पी लूं॥ जानती हो?

गौतम राजऋषि ने कहा…

लेखनी के अद्‍भुत पाँच रंग...
मैं चमत्कृत हूँ अमिताभ भाई शब्दों की इस जादूगिरी पर...

Harshvardhan ने कहा…

sundar prastuti... bhaav gahare hai.........

vijay kumar sappatti ने कहा…

amitaabh ji

bahut hi sundar pankhtiyaan .. bhai padhkar aananad aa gaya .. upar se format bhi alag sa hai jo ki man ko choo gaya ..

dil se badhai ..

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com

manu ने कहा…

अलस त्याग मै कूदा
जीवन के इस रण में
भाग्य लोट लगाता मेरे पथ,
कण कण में॥

खूबसूरत और गहरी बात कही है अमित भाई,,,,,
अच्छे शब्दों में,,,,

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

गागर में सागर . बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।

sandhyagupta ने कहा…

मन को कुचल अपने
जीवन जो जिया है
विधि का उसने
स्वयम विधान रचा है॥

Bahut sundar.

जयंत - समर शेष ने कहा…

अमिताभ जी,

विगत कई दिनों से इस पर टिपण्णी लिखने की सोच रहा हूँ...
पर क्या कहूँ.... अच्चे और सटीक शब्द ही ढूंढ़ नहीं पा रहा हूँ...

आपने जो लिखा है, वो बेमिसाल है..
बस इतना ही कहता हूँ, वो कमाल है...

अति सुन्दर,
~Jayant